कैसे हुआ जन्म नारियल का? जानें नारियल के पिछे छिपा रहस्य!

0
3166
views
Like
Like Love Haha Wow Sad Angry
11

कैसे हुआ जन्म नारियल का? जानें नारियल के पिछे छिपा रहस्य!
हिन्दू धर्म में देवी-देवताओं की पूजा का अभिन्य अंग नारियल को माना गया हैं। इसका विशेष महत्व हैं। हम जानतें हैं कि हमारें धर्म में नारियल के बिना कोई भी धार्मिेक कार्यक्रम संपन्न नहीं होता हैं। हम नारियल शब्द और कैसे होता हैं नारियल, इसे हम भलीभांति रूप से जानते हैं। परन्तु कभी भी हमने यह नहीं सोचा की कैसे हुआ नारियल का जन्म एवं क्या है इसके पिछे छिपी पौराणिक कथा? आज हम इसी क्रम में आपको नारियल के जन्म से जुड़ी कथा से रूबरू करायेंगे।

Nariyal
यह कहानी प्राचीन काल के एक राजा सत्यव्रत से जुड़ी है। जिनके राज्य में सभी प्रजागण अपने राजा से संतुष्ट एंव प्रसन्न रहा करते थें। इस बात से राजा भी परिचीत था। उसके मन में बस शरीर सहित स्वर्ग में जाने की हमेशा से मंसा रहती थी। पर इसे सकार करने का कोई भी उपाय उसके पास एवं दरबार में मौजूद किसी भी सभासद के पास नहीं थी। उसी समय उनके राज्य में रह रहें ऋषि विश्वामित्र अपने परिवार संग रह कर तपस्या किया करते थें। एक दिन ऋषि विश्वामित्र तपस्या हेतू अपने घर से काफी दूर निकल गयें थे। और लम्बे समय से वापस नहीं आए थे। उनकी गैर हाजरी में क्षेत्र में सूखा पड़ा गया और उनका परिवार भूखा-प्यासा भटक रहा था। तब राजा सत्यव्रत ने उनके परिवार की सहायता की और उनकी देख-रेख की जिम्मेदारी ली। जब ऋषि विश्वामित्र वापस लौटे तो उन्हें परिवार वालों ने राजा की अच्छाई बताई। वे राजा से मिलने उनके दरबार पहुंचे और धन्यवाद किया। शुक्रिया के रूप में राजा ने ऋषि विश्वामित्र द्वारा उन्हें एक वर देने के लिए आग्रह किया। ऋषि विश्वामित्र ने भी उन्हें आज्ञा दी। तब राजा बोले की वो स्वर्गलोक जाना चाहते हैं, तो क्या ऋषि विश्वामित्र अपनी तपोबल से उनके लिए स्वर्ग जाने का मार्ग बना सकते हैं? तब अपने तपोबल से ऋषि विश्वामित्र ने जल्द ही एक ऐसा मार्ग तैयार किया जो सीधा स्वर्गलोक को जाता था। राजा उस मार्ग से स्वर्ग को पहुंच गया। जिसपर स्वर्ग का राजा ईन्द्र ने राजा सत्यवर्त को पृथ्वी की ओर धकेल दिया। पृथ्वी पर गिरे राजा ने ऋषि विश्वामित्र को आपबिति बताई। जिसपर ऋषि विश्वामित्र अति क्रोधित हो गए। उनके क्रोध से बचने हेतू ईन्द्र ने ऋषि विश्वामित्र को पृथ्वी और स्वर्गलोक के बिच में एक स्वर्गलोक की भाति स्वर्ग बनाने की बात रखी। जिससे ना ही राजा को कोई परेशानी हो और ना ही देवी-देवताओं को। राजा सत्यव्रत भी इस सुझाव से बेहद प्रसन्न हुए, किन्तु ना जाने ऋषि विश्वामित्र को एक चिंता ने घेरा हुआ था। उन्हें यह बात सता रही थी कि धरती और स्वर्गलोक के बिच होने के कारण कहीं हवा के जोर से यह नया स्वर्गलोक डगमगा ना जाए। यदि ऐसा हुआ तो राजा फिर से धरती पर आ गिरेंगे। इसका हल निकालते हुए ऋषि विश्वामित्र ने नए स्वर्गलोक के नीचे एक खम्बें का निर्माण किया जिससे उसे सहारा दिया जा सकें।

Nariyal ka ped
बता दें कि यही खम्बा सयम आने पर एक पेड़ के मोटे तने के रूप में बदल गया और राजा सत्यव्रत का सिर एक फल बन गया। इसी पेड़ के तने को नारियल का पेड़ और सत्यव्रत के सिर को नारियल कहा जाने लगा। इसीलिए आज के समय में भी नारियल का पेड़ काफी ऊंचाई पर लगता हैं। इसके बाद राजा सत्यव्रत को एक ऐसी उपाधि दी गई ‘जो ना ही इधर का है और ना ही उधर का’। यानी कि एक ऐसा इंसान जो दो धुरों के बीच में लटका हुआ हैं।

Like
Like Love Haha Wow Sad Angry
11

Warning: A non-numeric value encountered in /home/gyaansagar/public_html/wp-content/themes/ionMag/includes/wp_booster/td_block.php on line 1008

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here