शहर की शान अकबर का किला
आइये जाने कुछ अनसुने-अनदेखी बातें
हर वर्ष विश्व में केवल भारत में चार स्थान पर लगने वाले अलग-अलग समय पर कुंभ व माघ मेला जिसमें उत्तर प्रदेश का प्रयाग(इलाहाबाद) शामिल है इस दौरान शहर प्रयाग नाम के स्थान पर तम्बूओं की नगरी के नाम से चलन में हो जाता हैं। इस समय कल्पवासी पुण्य अर्जित करने की गठरी सर पर लाद कर यहां पर एक माह प्रवास करते है। माघ में किले के पुरोहित के कथन अनुसार केवल एक दिन के लिए प्रयाग की रेती पर तकरीबन 434 वर्ष पूर्व स्थापत्य संगम के पास अकबर का किला को कल्पवासी एवं पर्यटकों के लियें इसी के भीतर पुण्य प्रदायक अक्षयवट जिसका उल्लेख द्वापर युग के रामायन पुराण में राम, सीता और लक्ष्मण के 14 वर्ष वनवास के दौरान किया गया है पूजा करने के पश्चात् आमजनमानस के देखने के लिए जाने दिया जाता है। जिसके बाद पूरे वर्ष शहर की शान रहे किले में सेना का कब्जा एवं शस्त्रागार होने से इसके भीतर पर्यटकों का प्रवेश निषेध कर केवल किले के एक छोर पर पातालपुरी मंदिर के साथ एक तरफ स्थापित अक्षयवट की ही पूजा करने की अनुमती होती है। किला शिल्प के बेजोड़ नमूने के साथ संगम आने वाले पर्यटकों का आकर्षण का केन्द्र रहता है। इस पर सेना का कब्जा होने के कारण किले के कई जगहों पर पर्यटकों का प्रवेश निषेध है। त्रिवेणी स्नान के साथ लेकर आए लाखों श्रद्धालु की पदचाप से किले का पातालपुरी मंदिर पुरे वर्ष गुंजायमान रहता है। किले में ऐतिहासिक अशोक स्तंभ भी है।
बता दें कि किले की नींव 14 नवंबर 1583 को सम्राट अकबर की ओर से डाली गई थी। जिसके निर्माण में 45 बरस का समय लगा। सन् 1867 की परगना चायल की मिसिल के मुताबिक तकरीबन हजार बीघे में तैयार किले में 23 महल, तीन ख्वाबगाह, 25 दरवाजे, 23 बुर्ज, 277 मकान, झरोखे, 176 कोठरियां, दो खासोआम, सात तहखाने, एक दालान, 20 तबेले, पांच कुएं, एक बावली सहित यमुना के लिए एक नहर भी बनाई गयी थी। वहीं शाहजादा सलीम, राजा टोडरमल, मुशरिफ, सईद खां, मुस्लिम खां, भारथदीवान, प्रयागदास के संरक्षण में बने किले में महासिंगार, अमरावती और आनंद आदि महल शामिल हैं।
पर्यटकों का प्रवेश निषेध-
शहर की शान रहे किले में सेना का शस्त्रागार एवं कब्जा होने से इसके भीतर पर्यटकों का प्रवेश निषेध किया गया है। सिर्फ किले की एक ओर स्थापित पातालपुरी मंदिर में दर्शन के लिए ही श्राद्धालु को अनुमति है। पातालपुरी मंदिर में दुर्लभ प्रतिमाओं को देख लोगों में जिज्ञासा घर कर जाती है और किले के सम्बन्ध में और जानने की ललक में आगे जाने पर रोक लगे होने से मायूस ही उलटे पैर लौटना पड़ता है। वहीं प्रयाग दर्शन को आने वाले पर्यटक किला का भ्रमण किए बिना अपनी यात्रा अधूरी मानते है। जिससे लोगों में सेना के प्रति आक्रोश भी रहता है।
कई निजी समितियों ने सरकार से लिखित निवेदन किया है कि किले को आमजनमानस के लियें खोल दिया जाये। जिससे लोगों के साथ ही साथ पर्यटन विभाग को भी आर्थिक लाभ होगा।