Kaise pada Bhagwan Shiv ki nagari Kashi Naam se Banarash naam?

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कैसे पड़ा भगवान शिव की नगरी काशी नाम से बनारस नाम?

भगवान शिव ने खुद काशी नगरी का किया था निर्माण!
तो फिर क्यों शिव के परम भक्त श्रीकृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से काशी को जला का भस्म कर दिया था?
Apne sudershn se krishna ne kashi ko jala ker bhasm ker diya tha------------3

        भगवान शिव के परम भक्त विष्णु और विष्णु के परम भक्त शिव दोनों एक दूसरे की निरन्तर वदना करते रहते है। वहीं द्वापर युग में अवतारित हुए श्रीकृष्ण(विष्णु) ने भला क्यों अपने इष्ट के द्वारा बसायी गयी काशी नगरी को अपने सुदर्शन चक्र से जला कर नष्ट कर दिया। कैसे दुबारा वह नगरी बसी। आज इसी बात से हम आपको को रूबरू करायेंगे। जानते है कुछ सूनी-अनसूनी बातें।

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बता दें कि द्वापर युग में दुष्टों का नाश करने एवं भक्तों की रक्षा करने हेतू भगवान विष्णु ने मथुरा के कारागार में माता देवकी की गर्भ से जन्म लिया था। जिसको अपना काल समझने वाला श्रीकृष्ण का मामा कंस ने श्रीकृष्ण को मारने का अनैक असफल प्रयास किया था। जिसके बाद श्रीकृष्ण के एक मुष्ठा प्रहार से कंस का संहार हुआ। राजा कंस की मरने की खबर सुनकर कंस का ससूर मगध का राजा जरासंध जो की एक बहुत शक्तिशाली और क्रूर राजा था। उसके पास अनगिनत सैनिक और दिव्य अस्त्र-शस्त्र थे। इसी वजह से उसके पड़ोसी राज्य के लोग जरासंध से बैर करने के स्थान पर मित्रता भाव रखते थे। वे श्रीकृष्ण से अपने दामाद की मौत का बदला लेने के हेतू अनैका-अनैक बार श्रीकृष्ण की मथुरा नगरी पर आक्रमण किया करता था। एवं श्रीकृष्ण के द्वारा युद्ध में मुह की खाने के बाद भी दुबार फिर से मथुरा पर हमला बोल देता था। एक बार जरासंध ने अपने संग अपने पड़ोस के राज्य के कलिंगराज पौंड्रक और काशीराज के साथ मिलकर उनके नगरी मथुरा पर आक्रमण किया। लेकिन भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें भी पराजित कर दिया। हारने के बाद जरासंध तो युद्ध क्षेत्र से भाग निकला किंतु पौंड्रक और काशीराज भगवान के हाथों मारे गए। काशीराज के बाद उसका पुत्र काशीराज बना और श्रीकृष्ण से अपने पिता के मौत का बदला लेने का निश्चय किया। वह श्रीकृष्ण की शक्ति जानता था।   इसलिए उसने घोर तपस्या कर भगवान शिव को श्रीकृष्ण को मारने हेतू एक दिव्य अस्त्र की मांग करने लगा। भगवान शिव ने उसे कोई अन्य वर मांगने को कहा। किंतु वह अपनी मांग पर अड़ा रहा। तब भगवान शिव ने मंत्रों से एक भयंकर कृत्या का निर्माण कर उसे देते हुए सावधान किया और बोले हे वत्स! तुम इसे जिस दिशा में जाने का आदेश दोगे यह उसी दिशा में स्थित राज्य को जलाकर भस्म कर देगी। लेकिन एक बात का बोध रहें कि इसे किसी ब्राह्मण भक्त पर मत छोड़ना। वरना इसका प्रभाव निष्फल हो जाएगा। यह कहकर भगवान अंतर्धान हो गए।
इधर, दुष्ट कालयवन का वध करने के बारद श्रीकृष्ण ने अपने मथुरा वासियों को अपने द्वारा बसाई गयी समुंद्र किनारे द्ववारिका नगरी में साथ लेकर आ गए थे। काशीराज ने श्रीकृष्ण के द्ववारिका नगरी में होने की खबर सून कर भगवान शिव द्वारा प्राप्त कृत्या अस्त्र को द्ववारिका में श्रीकृष्ण का वध करने हेतू भेज दिया। काशीराज को यह ज्ञान नहीं था कि श्रीकृष्ण एक ब्राह्मण भक्त हैं। इसलिए द्ववारिका पहुंचकर भी कृत्या उनका कुछ अहित न कर पाई।
Shri Krishna sang Shiv----1

बल्कि भगवान श्रीकृष्ण ने अपना सुदर्शन चक्र उसकी ओर चला दिया। सुदर्शन भयंकर अग्नि उगलते हुए कृत्या की ओर झपटा। प्राण संकट में देख कृत्या भयभीत होकर काशी की ओर भागी। सुदर्शन चक्र भी उसका पीछा करते हुए काशी जा पहुंचा। काशी पहुंचकर सुदर्शन ने कृत्या को भस्म कर दिया। किंतु इस पर भी सुदर्शन का क्रोध शांत नहीं हुआ और उसने काशी को जला कर भस्म कर दिया।

”कालान्तर में वारा और असि नामक दो नदियों के मध्य यह नगर पुन: बसा। वारा और असि नदियों के मध्य बसे होने के कारण इस नगर का नाम वाराणसी पड़ गया। इस प्रकार काशी का वाराणसी के रूप में पुनर्जन्म हुआ।”

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