क्या है श्रावण माह? क्यों वर्जित है यह १० कार्य?
क्या होता है श्रावण माह? एवं साल में कब आता है?-
चैत्र का पांचवा महीना सावन के महीने को भगवान शिव का महीना कहा जाता है। इसे श्रावण भी कहा जाता है। इस बार अग्रेंजी कलेण्डर के अनुसार १० जुलाई २०१७ से शुरू हो रहा है और ७ अगस्त २०१७ को समापन होगा। वहीं हिन्दी पंचाग के अनुसार कृष्ण पक्ष के सूर्योदय के ५:१५ बजे से श्रावण माह शुरू होगा और शुक्ल पक्ष पूर्णिमा के रात्रि के ११:०२ बजे में श्रावण माह का समापन हो जायेगा। इस सावन के महीने में भगवान श्री हरि विष्णु निद्रा अवस्था में रहते है। एवं तीनों लोकों का पालनकर्ता सिर्फ भगवान शिव ही होते है। इसका मतलब ये हुआ कि सावन के महीने में त्रिदेवों की सारी शक्ति भगवान शिव के पास होती हैं। वहीं दूसरी तरफ इस माह के सभी दिन धार्मिक दृष्टिकोण से बहुत महत्व माना जाता है। अगर गइराई से समझा जाए तो इस माह के प्रत्येक दिन एक त्यौहार की तरह मनाया जाता है।
बता दें कि हिन्दू धर्म, अनेक मान्यताओं और विभिन्न प्रकार के संकलन से बना है। सावन के महीने से जुड़ी एक पौराणिक कथा के अनुसार सागर मंथन के दौरान निकले विष को भगवान शिव ने अपने गले में धारण कर लिया था जिससे उनके शरीर का ताप तेज गति से बढ़ने लगा था। जिसको लेकर सभी देवों मे कोतूहल का विषय बन गया। जिसपर शरीर को शीतल रखने के लिए देवराज इन्द्र ने मूसलाधार बारिश कर दी। और सभी देवों ने भी उन पर जल की वर्षा करने लगे। इसी वजह से सावन के महीने में अत्याधिक बारिश होती है। जिससे भोलेनाथ प्रसन्न होते हैं। वहीं भगवान शिव के भक्त कावड़ ले जाकर गंगा का पानी शिवलिंग पर अर्पित कर उन्हें प्रसन्न करने का प्रयत्न करते हैं। इसके अलावा सावन माह के प्रत्येक सोमवार को भगवान शिव पर जल चढ़ाना शुभ और फलदायी होता है और पूजन करने और अपने इष्ट देवों को जल्द ही प्रसन्न करने के लिए इस माह का प्रत्येक दिन सबसे उपयुक्त माना जाता है। और अगर इस माह में व्रत रखें तो उसक विशेष फल मिलता है। इसके पीछे भी एक कथा हैं कि जिसमें माता पार्वती ने सावन के सभी सोमवार का व्रत रखा था। फलस्वरूप उन्हें भगवान शिव पति रूप में मिले।
क्या वर्जित है इस माह में करना?-
हिन्दू धर्म के अनुयायी इस बात से अच्छी तरह से वाकिफ रहते हैं कि हिन्दू जीवनशैली में क्या चीज अनिवार्य है और क्या पूरी तरह से वर्जित। यही वजह है कि अधिकांश हिंदू परिवारों में नीति-नियमों का भरपूर पालन किया जाता है। हालांकि मॉडर्न होती जीवनशैली और बाहरी चकाचौंध के चक्कर में लोग अपने वास्तविक मूल्यों को दरकिनार कर पाश्चात्य कल्चर को अपनाते जा रहे हैं लेकिन फिर भी कहीं ना कहीं कुछ तो है जो उन्हें अपने मूल्यों के साथ जोड़े रहता है। ऐेसे ही कुल १० बातें है जिसे सावन माह में करना पूरी तरह से वर्जित माना गया हैं। जो धार्मिक से संबंधित के साथ ही साथ वैज्ञानिक के दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।
१.मांसाहार भोजन न करें-
इस माह में हमें मांसाहार यानी नॉनवेज के खान-पान से दूर रहना चाहिए। क्यों कि नॉनवेज भोजन को बनाने के लिए जीव हत्या की जाती है। जो की बहुत बड़ा पाप होता है। वैज्ञानिक दृष्टि से सावन में काफी वर्षा होती है और आसमान में बादल छाए रहते हैं। इस कारण कई बार सूर्य और चंद्रमा दिखाई नहीं देते हैं। जिस कारण उनकी किरणें हम तक नहीं पहूंचती है एवं हमारी पाचन शक्ति कमजोर हो जाती है। जिससे नॉनवेज का भोजन करने के बाद सही रूप में पाचन न होने पाने से स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां हो सकती है।
२.शिवलिंग पर कभी भी हल्दी नहीं चढ़ाना चाहिए-
हल्दी स्त्री से संबंधित वस्तु होती है। एवं शिवलिंग पुरूष तत्व से संबंधित है और ये शिवजी का प्रतीक है। इस कारण शिवलिंग पर हल्दी नहीं चढ़ानी चाहिए। जो कि स्त्री से संबंधित होने से इसको माता पार्वती पर अर्पित करने से आप माता का विशेष कृपा पा सकते है।
३.सावन में बैंगन खाना वर्जित माना गया है-
बैंगन को सावन में खाना पूरी तरह से वर्जित माना गया है। इसका धार्मिक कारण यह है कि बैंगन को शास्त्रों में अशुद कहा गया है। यही कारण है कि कार्तिक महीने में भी कार्तिक माह का व्रत रखने वाले व्यक्ति बैंगन नहीं खाते हैं। वैज्ञानिक कारण यह कि सावन के दरम्यान बैंगन में किड़े अधिक लगते हैं। ऐसे में बैंगन का स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है।
४.हरी पत्तेदार साग-सब्जी भी खाने से बचे-
हम सभी जानते है कि हरी पत्तेदार साग-सब्जी स्वास्थ्य के लिए फायदेंमद होती है फिर भी सावन के समय इसे खाने पर पूरी तरह से वर्जित माना गया है। क्योंकि सावन में साग मे वात बढ़ाने वाले तत्व की मात्रा अधिक हो जाती है। इसलिए इसके गुणकारी नहीं रह जाता है। वैज्ञानिक कारण यह भी है कि इन दिनों किट पतंगों की संख्या बढ़ जाती है और साग के साथ घास-फूस भी उग जाते हैं जो सेहत के लिए हानिकारक होेते हैं। साग के साथ मिलकर हानिकारक तत्व हमारे शरीर में नहीं पहुंचे इसलिए सावन में साग खाने की मनाही की गई हैं।
५. निम्न लोगों का अपमान करने से बचें-
बुजुर्गों का, माता-पिता, गुरूओं का, जीवन साथी, मित्र, ज्ञानी पूरूषों का और भाई-बहन का भूल से भी अपमान न करें और ऐसा करने का विचार भी मन में न लाये।
६.दूध का सेवन न करें-
सावन में शिवलिंग पर दूध से अभिषेक किया जाता है। इसलिए ऐसी मान्यता है कि सावन माह में दूध का सेवन नहीं करना चाहिए। वैज्ञानिक दृष्टि से इस माह में दूध में वात बढ़ाने का काम करता है। अगर फिर भी दूध का सेवन करना हो तो दूध को खूब उबालकर प्रयोग में लाएं। कभी भी कच्चा दूध का सेवन न करें।
७.मन में बुरें विचारों को न लाऐं-
बुरें विचार यानी दूसरों के प्रति नुकसान पहुुंचाने के लिए योजना बनाना, अधार्मिक काम करने के लिए सोचना, स्त्रियों के लिए गलत विचार और किसी का धन हड़पना आदि जैसे विचार लाना। इस दौरान अच्छे संगत, अच्छे साहित्य या धर्म संबंधी किताबों का अध्ययन करना चाहिए। जिससे कि आप का मन विचलित न होकर भगवान शिव की आराधना में पूर्ण रूप से लगे।
८. क्रोध नहीं करना चाहिए-
क्रोध करने से हमारें मन की एकाग्रता पूरी तरह से नष्ट हो जाती है और सोचने-समझने की शक्ति खत्म हो जाती है। इस अवस्था में लिया गया निर्णय भी हमेशा खुद को हानि पहुंचाता है। क्रोध से हुए अशांत मन से कभी पूजा में मन नहीं लगता है और पूजा से आपकों किसी प्रकार का फल प्राप्त नहीं होता है। ऐसे में अगर भगवान शिव की कृपा पानी हो तो ऐसे बुराईयों से दूर रहें।
९. सुबह जल्दी जागना चाहिए-
सुबह का वक्त भगवान के ध्यान एवं पूजन के लिए सर्वश्रेष्ठ माना गया है। जल्दी जागने से आपमें आलस्य नही रहता है। एवं सुबह जल्दी जागने से मन के शांती के साथ ही साथ पूरी एकाग्रता से पूजन में मन लगता है जिससे कि हमें शुभ फल की प्राप्ती होती है।
१०. दाम्पत्य जीवन में कभी भी कलह न हों-
अक्सर देखा गया है कि छोटी-छोटी बातों को लेकर पति-पत्नी के बिच में वाद-विवाद होता रहता है ऐसे में ऐसे घरों में कैसे भगवान का वास हो। और जहां कलह हो वहां भगवान नहीं रहते है। सावन माह में इस बात का विशेष ध्यान रखें कि घर में क्लेश ना हो। और अगर शिव जी की कृपा पानी हो तो घर में प्रेम बनाए रखें और एक-दूसरे की गलतियों को भूलकर आगे बढ़ें। घर में शांति रहेगी तो जीवन सुखद बना रहेगा। मन प्रसन्न रहेगा। और प्रसन्न मन से की गई पूजा जल्दी फलदायी होती हैं।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से वर्जित-
सावन के पूरे माह में भरपूर बारिश होती है जिससे कि किड़े-मकोड़े सक्रिय हो जाते हैं। इसके अलावा इस मौसम में उनका प्रजनन भी अधिक मात्रा में होता है। इसलिए बाहर के खाने का सेवन सही नहीं माना जाता है। आयुर्वेद में भी इस बात का जिक्र है कि सावन के महीने में मांस के संक्रमित होने की संभावना बहुत ज्यादा होती है, इसलिए इस पूरे माह मांस-मछली या अन्य मांसाहार के सेवन से बचना चाहिए। सावन के महीने को प्रेम और प्रजनन का महीना कहा जाता है। इसा माह मे मछलियां और पशु-पक्षी सभी में गर्भाधारन की संभावना होती है। किसी भी गर्भवती मादा की हत्या हिन्दू धर्म में एक पाप माना गया है इसलिए सावन के महीने में जीव को मारकर उसका सेवन नहीं किया जाता हैं। पशु-पक्षी जिस माहौल में रहते हैं वहां साफ-सफाई का विशेष ध्यान नहीं रखा जाता, जिससे कि उनके भी संक्रमित होने की संभावना बढ़ती है। इसलिए मांसाहार को वर्जित कहा गया है।