Surya Kiran Upchaar se Aswasth Sarir sang kare Kharab Graho ka bhi Upchaar

0
1773
views
Like
Like Love Haha Wow Sad Angry
1

सूर्य किरण उपचार(कलर थेरेपी) से अस्वस्थ शरीर संग करे खराब ग्रहों का भी उपचार

सूर्य की रोशनी के ७ रंगों का क्या महत्व है !
रंगों से इलाज की क्या है आयुर्वेदिक पद्दति !
रंग हमारे व्यक्तित्व को कैसे परिभाषित करते हैं !
सफेद और नीले रंग की क्या खासियत है !

Surya kirad upchaar paddati

भोजन, रंग और स्वास्थ्य का संबंध-

लाल रंग- लाइकोपीन के कारण लाल रंग आता है। यह कैंसर की रोकथाम में प्रभावी है सेब, स्ट्रॉबेरी, लाल मिर्च, बेरी, टमाटर, तरबूज आदि से लाल रंग की प्राप्ति होती हैं।

पीला रंग- गाजर, आम, शकरकंद एवं कद्दू में पीला रंग होता है ऐसा फल व सब्जियां बीटा-केरोटीन से युक्त होती हैं यह आंखों और त्वचा के लिए लाभप्रद होती है

हरा रंग- ब्रोकली, पालक, बंदगोभी एवं शिमला मिर्च से हरा रंग प्राप्त होता है। ये फल व सब्जियां कैंसर की रोकथाम में सहायक हैं

        हमारी सोच, विचार व व्यवहार यह रंगों से प्रभावित होती है स्वेत रंग से अलग तरह का व्यक्तित्व बनता है। उसी प्रकार से हरे से अलग प्रकार का निले से अलग प्रकार का और पीले से अलग प्रकार का व्यक्तित्व बनता है। यह भी कहा जा सकता है कि अलग-अलग प्रकार के लोगों को अलग-अलग प्रकार के रंग सुहाते है। रंग और उसके प्रकृति का सिधा संबंध है। हर रंग की अपनी अलग-अलग खासियत होती है। जिसे यदि हम समझेगें तो जीवन में बहुत सारी चीजे समझ में आ जायेगा। उदाहरण तौर पर देखें तो बच्चों के खिलौने हमेशा सफेद रंग के होते हैं।

        जानिए तनाव को कैसे दूर भगाएगा रंग। रंग और उनकी प्रकृति का संबंध होने से हमें कई प्रकार के लाभ मिलते है। कई शोध यह साबित करते हैं।

लाल रंग- यह रंग व्ययाम व योगासन के समय प्रयोग में आता हैं। यह सबसे चमकीला रंग होता है यह शरीर में स्फूर्ति व तनाव व गुस्से में कमी लाता है।

हरा रंग- इसका प्रयोग आंखों को शांति प्रदान करता है।

पीला रंग- यह दिमाग में सेरोटोनिन नामक रसायन बनाता है। यह हमारी एकाग्रता को बढ़ाता है।

        सूर्य किरण चिकित्सा बहुत प्रसिद्ध आयुर्वेदिक पद्दति है लेकिन हम इसके बारे में बहुत कम जानते हैं। जिसके फलस्वरूप इसको बनाना थोड़ा कठिन हो जाता है सायद इसी वजह से यह प्रयोग में बहुत नही आता है। सूर्य किरण चिकित्सा(कलर थेरेपी) को क्रोमों थेरेपी भी कहा जाता हैं। इस थेरेपी से रंगों के सकारात्मक प्रभाव शरीर में प्रवेश कराये जाते है। जिससे शरीर की ऊर्जा को शन्तुलित कर शरीर को स्वस्थ किया जा सकता है जिससे अंग बेहतर तरह से कार्य करने लगते है। यदि शरीर में ऊर्जा सही नहीं है तो शारीरीक, मानसीक और परेशानियां उत्पन्न होगीं ही। तो कलर थेरेपी व क्रोमो थेरेपी इन्हें दूर करने में एक सहायक माध्यम साबित होता है। यूं तो पूरे जगत में इस पद्दति पर बहुत शोध हो रहा है लेकिन हम कितने भाग्यशाली हैं। कि हम सूर्य से यह औषधि अपने घर में स्वयं तैयार कर सकते है। इसमेंं खर्चा न के बराबर आता हैं। सूर्य के द्वारा कि जाने वाली यह चिकित्सा पूरी तरह से प्राकृतिक होती है। सूर्य चिकित्सा के अन्तर्गत अनन्त प्रकृति से अनन्त पुराणों की सूरक्षा की जाती है। इस चिकित्सा में किसी प्रकार की जड़ी-बूटी का प्रयोग नही होता हैं। इसमें उपचार का माध्यम सिर्फ सूर्य की किरणें ही होती हैं।

सूर्य की किरणों से रंग बनाने का तरीका-

        सूर्य की किरणें जीवन शक्ति का भंण्डार है, जहां सूर्य की किरणें पहूंचती है वहां रोग के किटाणू स्वतह ही मर जाते है। अथर्ववेद में कहा गया है। कि सूर्य उदय के समय सूर्य की लाल किरणों के प्रकाश में खूले शरीर बैठनें से हृदय तथा पीलिया के रोगों में लाभ होता है।

        सूर्य चिकित्सा पूर्ण रूप से प्राकृतिक उपचार है अब यह वैज्ञानिक पद्दति भी है और धार्मिक अनुष्ठान भी है। सूर्य चिकित्सा इसी लिये इतनी कारगर है कि इसमें सातों रंग है। सूर्य कि किरण में हमें सफेद, कभी पूरा लाल या कभी पूरा पीला सा दिखायी पड़ता है लेकिन उसमें सातों रंग होते है। और उन्हीं रंगों का पानी में परवेश करा के उनसे जो ऊर्जा उत्पन्न होती है। उससे हम ठीक होना शुरू हो जाते है। हमारे शरीर के जिस अंग में जो रंग की कमी होना शुरू हो जाती है उसी के रंग का शरीर के अंदर परवेश कराके उस रंग को शक्ति प्रदान की जा सकती है।

१.लाल रंग- ज्वार, दमा, खाँसी, मलेरिया, सर्दी, जुकाम, सिर दर्द व पेट के विकार में लाभप्रद होते हैं।

२.हरा रंग- स्नायुरोग, नाड़ी संस्थान के रोग, लिवर के रोग व श्वास रोग में लाभदायक होते हैं।

३.पीला रंग- चोट, धाव, रक्तस्त्राव, उच्च रक्तचाप व दिल के रोग अतिसार में लाभकारी होते हैं।

४.नीला रंग- दाह, अपच, मधुमेह से मुक्ति में सहायक होते हैं।

५.बैगनी रंग- श्वास रोग, सर्दी, खाँसी, मिर्गी व दन्तरोग में लाभदायक होते हैं।

६.नारंगी रंग- वात रोग, अम्लपित, अनिद्रा व कान के रोगों से मुक्ति दिलाते हैं।

७.आसमानी रंग- स्नायु रोग, यौनरोग, सिर दर्द व सर्दी-जुकाम में सहायक होते है।

        इन सातो रंगों को विभिन्न प्रकार के बिमारियों के लिये चुना जाता है। इन्हें सूरक्षा के दृष्टि से तीन भागों में बाट सकते हैं।

पहला समूह है- लाल, पीला और नांरगी
दूसरा समूह है- हरा
तीसरा समूह है- नीला, आसमानी और बैंगनी

पहला समूह में मुख्य रंग है नांरगी
दूसरा समूह में मुख्य रंग है हरा
तीसरा समूह में मुख्य रंग है नीला

        अन्य रंग गौर होते है। जो इन तीन रंगों की सहायता करते है।

नारंगी रंग- इसकी प्रकृति गर्म होती है। यह आयोडीन की कमी को दूर करता है। यह रंग कफजनित खाँसी, इन्फ्लूएंजा, निमोनिया, बुखार, क्षय रोग में लाभप्रद होते हैं। गैस, फेफड़े के रोग, स्नायु रोग, गँठिया और खून में लाल रक्त कणों की कमी आदि में लाभकारी है। स्नायु दुर्बलता, पक्षाधात, हृदय रोग, बदहजमी, भूख बढ़ाने, मोटापा तथा शारीरिक दुर्बलता में भी लाभप्रद हैं।

हरा रंग- ठँडी प्रकृति का होता है। यह शरीर में एकत्रित विषाक्त पदार्थों को नष्ट करता है। यह पसीना, पेशाब, कफ तथा मल आदि के रूप में शरीर से अपशिष्ट पदार्थों को निष्कासन में सहायक होता हैं। वात प्रकोप के निमार्ण व संक्रामक जीवाणुओं को नहीं पनपने देता। अपनी ठँडी प्रकृति के लिए यह रंग मस्तिष्क को शांत व तेज करता है। चर्म रोगों में लाभकारी होता हैं। इसका नियमित प्रयोग त्वचा की रौनक बढ़ाता हैै। मन को शांति व स्थिरिता प्रदान करता है। पंचविकारों से मुक्ति दिलाता हैंं।

नीला रंग- इसकी प्रकृति शीतल होती है। इस रंग की दवा का प्रयोग कीटाणुनाशक व वायरस रोधी होता है। इस रंग के वातावरण में जीवाणु ज्यादा समय तक जीवित नही रह सकते है। मुंह, गला तथा सिर तक के रोगों से मुक्ति दिलाता है। किसी प्रकार के दाह के शमन में प्रयोग होता है। गर्मी के मौसम में उत्पन्न रोगाणुओं को भी यह नष्ट करता है। शरीर में किसी भी अंग में पस बनने की प्रक्रिया को रोकने में इस रंग का परिणाम सामने आता है, गर्मी के मौसम में उत्पन्न रोगाणुओं को भी यह नष्ट करता है। हिस्टीरिया, पागलपन एवं उन्माद जैसे मानसिक रोगों में भी लाभप्रद होता है। मानसिक उत्तेजना से मुक्ति दिलाता है। व्यक्ति को आध्यात्मिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है। इस रंग का प्रयोग व्यक्ति को एकाग्रचित भी बनाता है।

      लोग अपने आप को नियंत्रण नही कर पाते तो ऐसे स्थिती में ज्योतिषों के उपायों से या रंग थेरेपी से इस समस्या से निजात पाया जा सकता है।

Sat Rang ke Botal

        इसे बनाना बहुत सरल है एक सफेद कांच की बोतल लिजिये, उसमें लगभग तीन चौथाई ताजा जल भर दिजीये। फिर सम्भव हो सके तो लकड़ी के ढक्कन से इसे बन्द किजिये या कॉक के ढक्कन से इसे बन्द किजीये। फिर जिस भी रंग का जल बनाना है उसी रंग की शैलोफीन पेपर(रंगीन पन्नी) उस सफेद बोतल पर लपेट दिजीये। फिर जमीन पर लकड़ी का पिड़ा रख करके उस पर बोतल रखे। लगभग ७-८ घण्टे धूप में बोतल को रखें। जब बोतल के उपरी सिरे पर ओस की भाप या बूंदे दिखाई दे तो समझ लिजीये की जल तैयार हो चूका है सूर्य की किरणों के असर से यह जल तप्त हो जाता है जिसके बाद यह सूर्य तप्त जल कहलाता है और यह जल अब औषधी बन गया है। इस औषधी मेंं रोग निवारक खनिज, रासायन और विटामिन भी मिल जाते है। इसे सुर्यास्त के पूर्व इसे पिड़ा सहित निचे अपने कमरे में रखें, एक बात का विशेष ध्यान देना है कि बोतल को जमीन पर न रखें, उसे पीड़ा पर ही रहने दे और खूद ही ठँडा हो जाने दें। ठँडा करने के लिये इसे फ्रिज में न रखें। इस जल को तीन दिनों तक इस्तेमाल में लाया जा सकता है।

        इसी प्रकार से जो ग्रह आपका खराब हो उसी ग्रह के रंग का जल बनाकर उसका सेवन करें तो वह ग्रह अपना बूरा फल देना खत्म कर देता है। किस ग्रह का क्या रंग है यह बहुत गहराई से पता होना चाहिये।

Like
Like Love Haha Wow Sad Angry
1

Warning: A non-numeric value encountered in /home/gyaansagar/public_html/wp-content/themes/ionMag/includes/wp_booster/td_block.php on line 1008

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here