अंग्रेजों ने अपने शियासत काल में कई क्रांतिकारियों को गोली मारी और कई क्रांतिकारियों को जिंदा दफना दिया था। इनके नरसंहार से हमारें क्रान्तिकारियों के पैर कभी भी नहीं डगमगायें थें। जिसके परिणाम स्वरूप आज हम खुले आंसमान के निचे स्वतंत्र रूप से सास ले रहे हैं। बता दें कि अमृतसर के समीप अजनाला गांव में मौजूद ‘‘कालों का कुआं’’ हैं। यह वहीं कुआं है जिसमें १८५७ की क्रान्ति के दौरान अंग्रेजी फौजों ने २८३ क्रान्तिकारियों को जिन्दा दफना दिया था। जिसे २ मार्च २०१४, यानि १५७ साल बाद जब इस कुएं की खुदाई की गई तो इस कुएं से एक के बाद एक २८३ क्रान्तिकारियों के नरकंकाल मिले।
और ईस्ट इंडिया कंपनी की मुहर वाले सिक्के और ज्वैलरी निकाली गई है। जिसके बाद शहीदों की अस्थियों को हरिद्वार और गोइंदवाल साहिब में प्रवाहित कर दिया गया। जिसके बाद अब इस कालों का कुआं को ‘‘शहीदां दा खू’’ के नाम से जाना जाता हैं।
बता दें कि सिख इतिहासकार सुरिन्दर कोचर के हवाले से बताया गया है किे अगस्त १८५७ में अमृतसर के तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर फ्रेडरिक हैनरी कूपर और कर्नल जेम्स जॉर्ज ने इस नरसंहार की योजना बनाई थी। कूपर ने अपनी पुस्तक ‘‘द क्राइसिस ऑफ पंजाब’’ में भी इस घटना का उल्लेख किया था। नरसंहार में मारे गए क्रान्तिकारी अंग्रेजों की बंगाल नेटिव इन्फेंट्री से संबंध थे, जिन्होंने बगावत कर दी थी। इनमें से अंग्रेजी सेनाओं ने १५० को गोली मार दी, जबकि २८३ सिपाहियों को रस्सियों से बांध कर अजनाला लाया गया और इस कुएं में फेंक दिया गया था।