1.कालसर्प दोष –
जन्म के समय ग्रहों की दशा के कारण कालसर्प दोष होता है. यदि जन्म के समय सभी ग्रह एक तरफ हो और राहु-केतु आमने-सामने हो तो कालसर्प दोष होता है. कालसर्प दोष के होने से जातक को जीवन में कई उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ता है.
2.गुरु चांडाल दोष –
व्यक्ति की कुंडली के किसी भी भाव में बृहस्पति के साथ राहु के होने पर गुरु चांडाल दोष होता है. यह दोष जातक को खूब परेशान करता है. गुरुवार को राहु नक्षत्र में राहु के मंत्रों का जाप करने से इस दोष को शांत किया जा सकता है.3.मंगल दोष –
यदि जातक की कुंडली में मंगल लग्न चौथे, सातवें, आठवें और बारहवें भाव में हो तो मंगल दोष होता है. मंगल दोष के कारण व्यक्ति की शादी में परेशानी होती है.4.विष दोष –
चंद्र और शनि के एक साथ किसी भी भाव में बैठे होने से जातक को विष दोष का सामना करना पड़ता है. इस दोष को दूर करने के लिए जातक को पंचमी तिथि खासकर नागपंचमी का व्रत करना चाहिए.
5.पितृ दोष –
व्यक्ति की कुंडली के नौवें भाव में राहु, बुध या शुक्र ग्रह के होने से पितृ दोष होता है. कुंडली के दशवें भाव में गुरु के होने से वह शापित माना जाता है ऐसे में पितृ दोष होता है. जन्मपत्री में सूर्य पर शनि या राहु-केतु की दृष्टि हो तो व्यक्ति की कुंडली में पितृ ऋण की स्थिति होती है.
6.केन्द्राधिपति दोष –
केन्द्राधिपति दोष का केंद्र भाव जातक की कुंडली का पहला, सातवां और दसंवा भाव होता है. मिथुन और कन्या राशि के जातकों की कुंडली में बृहस्पति ग्रह के चौथे, सातवें और दसवें भाव में होने से और मीन धनु राशि के पहले, चौथे, सातवें और दसवें भाव में बुध के होने से केन्द्राधिपति दोष दोष होता है.
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