क्यों खंडित शिवलिंग की पूजा हो सकती है परन्तू खंडित शिव मूर्ति की नहीं?
शिव को दुनिया का सर्वोत्कृष्ट तपस्वी या आत्मसंयमी कहा जाता है। वह सजगता की साक्षात मूरत हैं। लेकिन साथ ही मदमस्त व्यक्ति भी हैं। एक तरफ तो उन्हें सुंदरता की मूर्ति कहा जाता है तो दूसरी ओर उनका औघड़ व डरावना रूप भी है। शिव एक ऐसे शख्स है, जिनके न तो माता-पिता हैं, न कोई बचपन और न ही बुढ़ापा। उन्होंने अपना निर्माण स्वयं किया है। वह अपने आप में स्वयभू हैं।
ऐसे में अगर यह बात समझी जाऐ कि हम उनके खंडित शिवलिंग की पूजा करते हैं। परन्तू कभी हमनें उनकी खंडित मूर्ति की पूजा नहीं करतें हैं। तो ऐसा क्यों? ऐसा इस लिए है कि भगवान भोलेनाथ की दो रूपों में पूजा की जाती है मूर्ति रूप और शिवलिंग रूप में। शास्त्रों में भगवान शिव की मूर्ति की पूजा को श्रेष्ठ तो उनके शिवलिंग की पूजा को सर्वश्रेष्ठ माना गया हैें। शास्त्रों में किसी भी रूप से खंडित मूर्ति की पूजा को निषेद माना गया हैं। और उनको अपने पूजा-घर में रखना भी। यह बात सिर्फ शिव मूर्ति पर भी लागू हैं। परन्तू अगर हम शिवलिंग की बात करें तो यह नियम यहां पर लागू नहीं होती।
क्योंकि भगवान शिव ब्रह्मरूप होने के कारण निष्कल अर्थात निराकार कहे गए हैं। भोलेनाथ का कोई रूप नहीं है उनका कोई आकार नहीं है वे निराकार हैं। शिव का ना तो आदि है और ना ही अंत। लिंग को शिवजी का निराकार रूप ही माना गया हैं। जबकि शिव मूर्ति को उनका साकार रूप। केवल शिव ही निराकार लिंग के रूप में पूजे जाते है। इस रूप मे समस्त ब्रह्मांड का पूजन हो जाता है क्योंकि वे ही समस्त जगत के मूल कारण माने गए हैं। शिवलिंग बहुत ज्यादा टूट जाने पर भी पूजनीय है। क्योंकि शिवलिंग एक अपवाद हैें। अत: हर परिस्थिति में शिवलिंग का पूजन सभी मनोकामनाओं को पूरा करने वाला माना जाता हैं।