आज के दौर में हम तरक्की पाने के होड़ में जाने-अनजाने में कई शत्रु बना लेते हैं। कोई शत्रु प्रत्यक्ष रूप से होते है तो कोई अप्रत्यक्ष रूप से। जिस कारण हम अक्सर परेशान रहते हैं। शत्रु भय से हर कोई छुटकारा पाना चाहता हैं। इसके साथ जीवन में सबकुछ अच्छा हो ऐसी भी कामना होती हैं। परिणाम स्वरूप हम हर तरह के उपाय करते हैं। परन्तु मन में हमेशा शत्रु का भय बना रहता हैं। ऐसे में आज हम आपके लिए एक एैसा मददगार नील सरस्वती स्तोत्र लाये हैं। जिसे आप अष्टमी, नवमी तथा चतुर्दशी के दिन अथवा प्रतिदिन इसका पाठ करकें अपने सभी शत्रुओं का नाश कर सकते हैं एवं मन का भय भी समाप्त हो जाता हैं।
नील सरस्वती स्तोत्र
घोररूपे महारावे सर्वशत्रुभयंकरि।
भक्तेभ्यो वरदे देवि त्राहि मां शरणागतम्।।१।।
ॐ सुरासुरार्चिते देवि सिद्धगन्धर्वसेविते।
जाड्यपापहरे देवि त्राहि मां शरणागतम्।।२।।
जटाजूटसमायुक्ते लोलजिह्वान्तकारिणि।
द्रुतबुद्धिकरे देवि त्राहि मां शरणागतम्।।३।।
सौम्यक्रोधधरे रूपे चण्डरूपे नमोएस्तु ते।
सृष्टिरूपे नमस्तुभ्यं त्राहि मां शरणागतम्।।४।।
जडानां जडतां हन्ति भक्तानां भक्तवत्सला।
मूढ़तां हर मे देवि त्राहि मां शरणागतम्।।५।।
वं ह्रूं ह्रूं कामये देवि बलिहोमप्रिये नम:।
उग्रतारे नमो नित्यं त्राहि मां शरणागतम्।।६।।
बुद्धिं देहि यशो देहि कवित्वं देहि देहि मे।
मूढत्वं च हरेद्देवि त्राहि मां शरणागतम्।।७।।
इन्द्रादिविलसदद्वन्द्ववन्दिते करुणामयि।
तारे ताराधिनाथास्ये त्राहि मां शरणागतम्।।८।।
अष्टभ्यां च चतुर्दश्यां नवम्यां य: पठेन्नर:।
षण्मासै: सिद्धिमाप्नोति नात्र कार्या विचारणा।।९।।
मोक्षार्थी लभते मोक्षं धनार्थी लभते धनम्।
विद्यार्थी लभते विद्यां विद्यां तर्कव्याकरणादिकम।।१०।।
इदं स्तोत्रं पठेद्यस्तु सततं श्रद्धयाएन्वित:।
तस्य शत्रु: क्षयं याति महाप्रज्ञा प्रजायते।।११।।
पीडायां वापि संग्रामे जाड्ये दाने तथा भये।
य इदं पठति स्तोत्रं शुभं तस्य न संशय:।।१२।।
इति प्रणम्य स्तुत्वा च योनिमुद्रां प्रदर्शयेत।।१३।।