अक्षय तृतीया को करें पितरों के लिए पिंडदान एवं जानें विष्णु तथा लक्ष्मी की पूजन विधान!
हिन्दू कलेण्डर की मुख्य तिथियों में से एक है अक्षय तृतीया। यह हिन्दुओं के लिए बहुत ही पवित्र दिन होता है। अक्षय तृतीया का पावन पर्व वैशाख महीने की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता हैं। शुक्ल पक्ष अर्थात अमावस्या के बाद के पंद्रह दिन जिनमें चंद्रमा बढ़ता है। इसे अखाती तीज भी कहते हैं। जो इस वर्ष २०१८ के १८ अप्रैल में पड़ रहीं हैं।
क्या महत्व है अक्षय तृतीया का
मान्यता के अनुसार इस दिन बिना किसी पंचाग या बिना किसी मृहुर्त के भी शुभ कार्य किया जा सकता हैं। क्योंकि इस दिन का मतलब हैं जिसका कभी क्षय ना हो यानी जो कभी नष्ट ना हो। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन जो भी शुभ कार्य किए जाते हैं उनका अनेक गुना फल मिलता हैं। भविष्य पुराण के अनुसार सतयुग और त्रेतायुग की शुरूआत इस तिथि से हुआ था। इस दिन सोना खरीदना का चलन हैं। परन्तू अगर आप की आर्थिक स्थिति सही नहीं है तो बिल्कुल परेशान ना हों। हमारें शास्त्र में बताया गया है कि इस दिन अगर हम दान भी करते हैं। तो हमारा आनें वाला समय अच्छा होगा, इसके साथ चल रही परेशानियों से छूटकारा भी मिलेगा। और घर में सुख-समृद्धि का वर्ष भर वास रहेगा।
पिंडदान का महत्व
पुराणों में कहा गया है कि अगर हम इस दिन गंगा स्नान के बाद पूजन और अपनें पितरों के लिए पिंडदान या कोई भी दान करें तो इसका हमें अक्षय फल मिलता हैें।
अक्षय पूजन विधि
इस दिन भगवान विष्णु तथा लक्ष्मी की पूजा का महत्व है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना की जाती है तथा विष्णुजी को चावल चढ़ाना विशेष लाभकारी होता है। विष्णु तथा लक्ष्मीजी की आराधना कर उन्हें तुलसी के पत्तों के साथ भोजन अर्पित किया जाता है। सभी विधि विधान पूर्ण कर भगवान की धूपबत्ती से आरती की जाती हैें। गर्मी के मौसम में आने वाले आम तथा इमली को भगवान को चढ़ा कर पूरे वर्ष अच्छी फसल तथा वर्षा के लिए आशीर्वाद मांगा जाता है। कई जगह इस दिन मिट्टी से बने घड़े पानी भर कर उसमें कच्चा आम, इमली तथा गुड़ को पानी में मिला कर भगवान को चढ़ाया जाता हैं।