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ज्योतिष शास्त्र के अनुसार ग्रहों का एक विशेष अवस्था होती है। किसी भी राशि में वह विशेष अवस्था उसे उच्च या नीच का बना देती है। ऐसा सभी ग्रहों के साथ होता है। सभी ग्रहों में चंद्रमा भी ऐसा ही एक ग्रह है। खगोलीय दृष्टिकोण से चंद्रमा एक उपग्रह है लेकिन ज्योतिष शास्त्र में उसे एक ग्रह के रूप में ही देखा जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार चंद्रमा मन का कारक है और वह किसी भी राशि में लगभग सवा दो दिन तक रहता है। चंद्रमा का यही गुण व्यक्ति के भीतर भी तीव्रता, परिवर्तन, मूड में होने वाले बदलाव को दिखाता है। चंद्रमा को वृश्चिक राशि में नीच अवस्था का कारक माना जाता है और वृषभ राशि में वह उच्च अवस्था में होता है।
चंद्रमा के उच्च होने का प्रभाव
- चंद्रमा के उच्च होने के कारण लोग धैर्यवान होते हैं।
- कुंडली में जहां कहीं भी चंद्रमा होता है, यदि उस भाव, राशि, नक्षत्र से संबंधित गुणों में खुद को शामिल करता है तो मन को शांत रहता है और वह जीवन में संतुलन भी बना पाता है।
- जब चंद्रमा उच्च में होता है, तो यह व्यक्ति वित्त, धन, जीवन के ऐश्वर्य के बारे में ज्यादा विचार नहीं करता।
- भविष्य की चिंता किए बिना, चंद्र की स्थिति व्यक्ति को मजबूत आयाम देती है।
चंद्रमा के नीच होने का प्रभाव
- चंद्र नीच का होने से जातक बेहद इमोशनल और छोटी-छोटी बातों पर शोक मनाने वाला होता है। जन्मकुंडली में चंद्र किसी ग्रह से पीड़ित हो तो यह व्यक्ति को मानसिक रोग और डिप्रेशन देता है।
- वैदिक ज्योतिष के अनुसार जन्मकुंडली में पीड़ित और अशुभ चंद्रमा के कारण व्यक्ति को मानसिक पीड़ा होती है।
- व्यक्ति की स्मृति कमज़ोर हो जाती है और उसे डिप्रेशन की समस्या होती है, साथ ही जातक की मां को किसी न किसी प्रकार की दिक्कत बनी रहती है। चंद्रमा अगर कुंडली में नीच का है तो आपको पानी से डर लगेगा, मन में अवसाद के कारण कई बार सुसाइड के ख्याल भी आते है।
- वहीं चंद्रमा कुंडली में अशुभ होने से खांसी-जुकाम, अस्थमा, सांस या फेफड़ों से संबंधित बीमारियां परेशान करती हैं। वहीं एकाग्रता की कमी, नींद न आना और दिमाग को विचलित करने वाली सभी समस्याओं की वजह भी चंद्र का अशुभ होना ही है।
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