ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, 9 ग्रहों में से बुध ग्रह को सबसे अहम माना जाता है. सभी नौ ग्रहों में बुध ग्रह को राजा की संज्ञा दी गई है. बुध ग्रह सुख, समृद्धि और शांति का प्रतीक है. बुधवार भगवान गणेश और श्रीकृष्ण को समर्पित है, इसलिए बुधवार को बुध ग्रह की विशेष पूजा की जाती है. बुध ग्रह शुभ होने के साथ ही फलदायी भी होता है. बुधदेव की निरंतर पूजा करने से सभी तरह के कष्ट दूर होते हैं, लेकिन क्या आपको पता है कि बुध का जन्म कैसे हुआ? बुध की उत्पत्ति को लेकर एक पौराणिक कथा प्रचलित है.
बुध ग्रह के जन्म की कथा
एक पौराणिक कथा में उल्लेख है कि एक बार चंद्रदेव ने बृहस्पति देव की अर्धांगिनी तारा को देखा. तब चंद्रदेव तारा की खूबसूरती देखकर इतने मोहित हो गए कि उसे पाना चाहते थे. परंतु तारा पहले से ही शादीशुदा थी, ऐसे में तारा को अपनाया नहीं जा सकता था. तब चंद्रदेव ने तारा का अपहरण कर लिया. यह बात जब बृहस्पति देव को पता चली तो वे आग बबूला हो गए.
बृहस्पति ने चंद्रदेव से तारा को छोड़ने के लिए कहा, लेकिन वे नहीं माने और युद्ध के लिए ललकार दिया. इसी बीच तारा ने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम बुध पड़ा. चंद्रदेव और बृहस्पति देव के साथ युद्ध शुरू होने से पृथ्वी लोक पर कोहराम मच गया, जिस पर ब्रह्माजी से युद्ध रोकने की गुहार लगाई गई.
ब्रह्माजी की मध्यस्थता के चलते युद्ध का विराम हो गया, परंतु तारा के पुत्र बुध को लेकर दोबारा चंद्रदेव और बृहस्पति के बीच वाक् युद्ध छिड़ गया. इस पर तारा ने ब्रह्माजी को बताया कि बुध के जनक चंद्रदेव हैं. कथा के अनुसार, बुध चंद्र देव के पुत्र थे और बाद में बृहस्पति ने भी उन्हें पुत्र स्वरूप स्वीकार कर लिया था.