सनातन धर्म में रुद्राक्ष का प्रयोग भगवान शिव के अंश के रूप में किया जाता है। रुद्राक्ष का महत्व इसलिए भी अधिक है क्योंकि माना जाता है कि रुद्राक्ष का जन्म भगवान शिव के अश्रुओं से हुआ था। शास्त्रों में इस सन्दर्भ में कई बातों को विस्तार से बताया गया है। साथ ही रुद्राक्ष के जन्म से जन्म से जुड़ी कथा का भी वर्णन मिलता है।
जानिए रुद्राक्ष के जन्म से जुड़ी कुछ रोचक बातें।
HIGHLIGHTS
- सनातन धर्म में रुद्राक्ष को भगवान शिव के अंश के रूप में पूजा जाता है।
- माना जाता है कि रुद्राक्ष का जन्म भगवान शिव के अश्रुओं से हुआ था।
- जानते हैं, रुद्राक्ष के उतपत्ति से जुड़ी कुछ रोचक बातें।
भगवान शिव और रुद्राक्ष के संबंध को शास्त्रों में बहुत ही विस्तार से बताया गया है। साथ ही यह भी बताया है कि रुद्राक्ष कैसे उत्पन्न हुआ था। अध्यात्मिक मान्यता है कि रुद्राक्ष को भगवान शिव का अंश माना जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि माना जाता है कि रुद्राक्ष की उत्पत्ति भगवान शिव के अश्रुओं से हुई थी। इसलिए शिवजी की उपासना में रुद्राक्ष के प्रयोग को धार्मिक दृष्टिकोण से बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है। यह मान्यता भी है कि रुद्राक्ष धारण करने वाले व्यक्ति से देवाधिदेव महादेव सर्वाधिक प्रसन्न रहते हैं। आइए जानते हैं, कैसे हुआ था रुद्राक्ष का जन्म और इससे जुड़ी पौराणिक कथा?
रुद्राक्ष के जन्म से जुड़ी पौराणिक कथा
किंवदंतियों के अनुसार, त्रिपुरासुर नामक दैत्य को अपनी शक्ति का बहुत घमंड हो गया था। इस वजह से उसने धरती लोक के साथ साथ देव लोक में भी हाहाकार मचा दिया था। त्रिपुरासुर को कोई भी देवता या अस्त्र परास्त नहीं कर पा रहे थे, जिस वजह से वह सभी भोलेनाथ के पास अपनी प्रार्थना लेकर पहुंचे और उन्होंने त्रिपुरासुर के आतंक से मुक्ति के लिए महादेव से विनती की। देवता जब कैलाश पर्वत पर पहुंचे तब उस समय भगवान शिव योग मुद्रा में अपने नेत्रों को बंद कर गहन तप में लीन थे।
जब भगवान शिव ने अपना नेत्र खोला तब उनकी आंखों से कुछ अश्रु छलक कर धरती पर गिर गए, जिससे रुद्राक्ष के वृक्ष का जन्म हुआ। जहां-जहां भगवान शिव के आंसू गिरे, वहां-वहां रुद्राक्ष के वृक्ष उग आए। इसलिए रुद्राक्ष को भगवान शिव के तीसरे नेत्र का स्वरूप मानकर पूजा जाता है। इसके बाद भगवान शिव ने अपने त्रिशूल से त्रिपुरासुर का वध किया और उसके अत्याचारों से सभी को मुक्त कराया।
रुद्राक्ष की जन्म से जुड़ी एक और पौराणिक कथा
एक अन्य किंवदंती के अनुसार, जब माता सती ने अग्नि में स्वयं को समाहित कर आत्मदाह किया था। तब महादेव अत्यंत विचलित हो उठे थे और उन्होंने माता सती के शरीर को लेकर तीनों लोकों में विलाप करते हुए विचरण किया था। इस दौरान भगवान शिव जिस-जिस स्थान से गुजरे वहां उनके आंसू गिरते रहे और जहां-जहां भगवान शिव के अश्रु गिरे, वहां-वहां रुद्राक्ष के वृक्ष का जन्म हुआ। वृक्ष में लगे फलों को रुद्राक्ष के नाम से जाना गया।
रुद्राक्ष के हैं 14 प्रकार
भगवान शिव के प्रिय रुद्राक्ष के 14 प्रकार हैं। इनमें से एक मुखी रुद्राक्ष को भगवान शिव का अंश माना जाता है। दो मुखी रुद्राक्ष अर्धनारीश्वर, तीन मुखी रुद्राक्ष को अग्नि का स्वरूप माना जाता है। चार मुखी रुद्राक्ष को ब्रह्म, पांच मुखी रुद्राक्ष को कालाग्नि और 6 मुखी रुद्राक्ष को कार्तिकेय का स्वरूप मानकर पूजा जाता है। इसके साथ 7 मुखी रुद्राक्ष को कामदेव, 8 मुखी रुद्राक्ष को भगवान श्री गणेश और भगवान कालभैरव का स्वरूप माना जाता है।
शास्त्रों में यह भी बताया गया है कि 9 मुखी रुद्राक्ष मां भगवती और शक्ति का स्वरुप है। 10 मुखी रुद्राक्ष दसों दिशाओं और यम हैं, 11 मुखी रुद्राक्ष को साक्षात भगवान रुद्र का स्वरूप माना जाता है। 12 मुखी रुद्राक्ष सूर्य, अग्नि और तेज, 13 मुखी रुद्राक्ष विजय और सफलता और अंत में 14 मुखी रुद्राक्ष को भगवान शंकर का स्वरूप माना गया है।
रुद्राक्ष से जुड़े कुछ चमत्कारी रहस्य
धर्म ग्रंथो में यह बताया गया है कि जिस घर में रुद्राक्ष की पूजा की जाती है, वहां सदैव माता लक्ष्मी वास करती हैं। साथ ही रुद्राक्ष धारण करने वाले व्यक्ति को दीर्घायु का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इसके साथ रुद्राक्ष पहनने से मानसिक परेशानियां व हृदय रोग जैसा खतरा भी टल जाता है। जो व्यक्ति नितदिन रुद्राक्ष की माला से ‘ॐ नमः शिवाय’ महामंत्र का जाप करता है। उन्हें भगवान शिव का आशीर्वाद जरूर प्राप्त होता है। शास्त्रों में यह भी बताया गया है कि रुद्राक्ष धारण करने से ज्ञान की प्राप्ति होती है।
रुद्राक्ष का वैज्ञानिक महत्व
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी रुद्राक्ष को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। रुद्राक्ष में ऐसे वानस्पतिक गुण होते हैं जो शारीरिक जल स्पर्श से विद्युत शक्ति पैदा करते हैं। मंत्रों का जाप करते समय जब उंगलियों में रुद्राक्ष का स्पर्श होता है तो शरीर के अंदर रोग से लड़ने की शक्ति जागृत होती है, जिससे आक्रामक रोगों से मुक्ति प्राप्त करने में सहायता मिलती है।
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