क्यों इतने महत्वपुर्ण है ये देव, क्या इनके दर्शन इतने फलदायी हैं

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पुराणों में मंगल ग्रह का जन्म स्थान उज्जैन में माना गया है। इसलिए मंगल ग्रह की शांति के लिए यथा संभव अंगारेश्वर महादेव में विशेष पूजा फलदायी मानी गई है। धार्मिक मान्यता है कि इस पूजा से मंगल ग्रह दोष की शांति होती है और विवाह योग्य युवक-युवतियों के विवाह

पुराणों में मंगल ग्रह का जन्म स्थान उज्जैन में माना गया है। इसलिए मंगल ग्रह की शांति के लिए यथा संभव अंगारेश्वर महादेव में विशेष पूजा फलदायी मानी गई है। धार्मिक मान्यता है कि इस पूजा से मंगल ग्रह दोष की शांति होती है और विवाह योग्य युवक-युवतियों के विवाह में मांगलिक दोषों के कारण आ रही समस्याएं हल हो जाती है।

श्री अंगारेश्वर महादेव (उज्जैन) ही भूमि पुत्र मंगल हैं अवंतिका कि प्राचीन 84 महादेवों में स्थित 43वे महादेव श्री अंगारेश्वर महादेव जो कि सिद्ध्वट (वट्व्रक्ष) के सामने शिप्रा के उस पर स्थित हैं, जिन्हें मंगल देव (गृह) भी कहा जाता हैं। माना जाता है कि जो व्यक्ति प्रतिदिन इस महालिंग श्री अंगारेश्वर का दर्शन करेगा उनका फिर जन्म नही होगा। जो इस लिंग का पूजन मंगलवार को करेगा वह इस युग में कृतार्थ हो जाएगा, इसमे कोइ संशय नही हैं। जो मंगलवार कि चतुर्थी के दिन अंगारेश्वर का दर्शन-व्रत-पूजन करेंगे वह संतान, धन, भूमि, सम्पत्ति, यश को प्राप्त करेगा। मनाान जाता है कि इनके दर्शन-पूजन से वास्तुदोष, भुमिदोष का भी निवारण होता हैं। न्यायालय में विजय प्राप्त होती हैं। इस लिंग पर भात पूजन करने से मंगल दोष, भूमि दोष का भी निवारण होता

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार नवग्रहों में विशेष स्थान रखने वाले मंगल ग्रह का जन्म स्थान उज्जैन यानि प्राचीन नगरी अवन्तिका को माना गया है। देश के सभी स्थानों से मंगल पीड़ा निवारण और अनुग्रह प्राप्त करने के लिए लोग यहां आते हैं। जनमान्यताओं के अनुसार मंगल की जन्म स्थली पर भात पूजा कराने से मंगलजन्य कष्ट से व्यक्ति को शांति मिलती है। मंगल को नवग्रहों में सेनापति के पद से शुशोभित किया गया है। जन्म कुंडली में मंगल की प्रधानता जहां मंगल दोष उत्पन्न करती है, वहीं व्यक्ति को सेना, पुलिस या पराक्रमी पदो पर शुशोभित कर यश और कीर्ति भी दिलाती है।

ब्रह्मवर्त पुराण के अनुसार मंगल पृथ्वी से अलग हुआ एक ग्रह है। इसीलिए इसे भूमि पुत्र माना गया है। इसे विष्णु पुत्र भी कहते हैं। स्कंध पुराण के अनुसार अवन्तिका में दैत्य अंधकासुर ने भगवान शिव की तपस्या कर यह वरदान प्राप्त किया था कि उसके शरीर से जितनी भी रक्त की बूंदे गिरेंगी वहां उतने ही राक्षस पैदा हो जाएंगे। वरदान के अनुसार तपस्या के बल पर अंधकासुर ने अपार शक्ति प्राप्त कर ली और पृथ्वी पर वह अनियंत्रित उत्पाद मचाने लगा। उसके उत्पादों से बचने के लिए व इंद्रादि देवताओं की रक्षा के लिए स्वयं भगवान शिव को उससे लडऩा पड़ा था। लड़ते-लड़ते जब शिव थक गए तो उनके ललाट से पसीने की बूंदें गिरी। इससे एक भारी विस्फोट हुआ और एक बालक अंगारक की उत्पत्ति हुई। इसी बालक ने दैत्य के रक्त को भस्म कर दिया और अंधकासुर का अंत हुआ।

एक अन्य कथा के अनुसार देवाधिदेव भगवान शंकर से एक समय पार्वती जी का वार्तालाप हो रहा था। इसी चर्चा के दौरान पार्वती जी ने भगवान शंकर से पूछा की उन्हें मंगलकारी अंगारक के जन्म के बारे में जानने की बहुत इच्छा हैं। तब देवाधिदेव भगवान शंकर ने पार्वती जी से कहा की हे पर्वत की कन्या उज्जैन में तिरालीसवां ज्योतिर्लिंग अंगारेश्वर का हैं जिनके दर्शन मात्र से सर्व सम्पदा प्राप्त होती हैं।

पूर्व समय में लाल शरीर की शोभवाला और टेड़े शरीर वाला क्रोध से युक्त यह बालक मेरे द्वारा ही उत्पन्न हुआ में ने उसे पृथ्वी पर रख दिया इसलिए उसका नाम भूमि पुत्र हुआ। पैदा होते ही स्थूल शरीर वाला वह बालक भय देने लगा। उसके कोप से पृथ्वी कम्पित होने लगी। मनुष्य और देवतादि सब दुखी हो गए। समुद्रों में तूफान आने लगी। पर्वत हिलने लगे। उसी के प्रभाव स्वरूप देवता मनुष्य आदि परेशान होने लगे।

अंत में परेशान होकर सभी ऋषि देवता इंद्रा सभी देवगुरु वृहस्पति के पास गए और उनसे चर्चा कर उन्हें अपने साथ लेकर ब्रह्मलोक गए। और पितामह ब्रह्मा जी को सारा वृतांत सुनाया की किस प्रकार भगवान शंकर के शरीर से बालक का जन्म हुआ और उत्पन्न होने के कुछ ही समय में उसने तीनो लोकों का भ्रमण कर डाला। अनेकों का भक्षण कर लिया और सभी को परेशान कर दिया।

सभी की बातें सुनकर प्रजापिता ब्रह्मा जी ने मुझसे कैलाश पर्वत पर आकर मिलाने का निर्णय किया। मेरे पास आकर सभी ने भय पूरक मेरे शरीर से उत्पन्न उस बालक के क्रिया कलापों का वर्णन किया की किस प्रकार उस बालक ने सभी को डरा दिया और अनेकों का भक्षण कर लिया।

यह सुनकर मेने उस बालक को बुलाया और उससे पूछा की ऐसा क्यों कर रहे हो। तब उस बालक ने कहा की प्रभु में कौन सा काम करूं। मेने उसे समझाया की जगत को त्रास मत दो। ऐसा कहकर मेने उसे बार-बार समझाया। मेने उसे कहा की मेरे शरीर की राजस प्रकृति से तुम्हारा जन्म हुआ हैं। इसीलिए तुम्हारा नाम अंगारक हुआ हैं तुम लोगो का मंगल करो,उन्हें प्रसन्न और आनंदित रखो यही तुम्हारा कर्म हैं। इस समय तुमसे भूलवश वक्री कार्य हुए हैं इसलिए विद्वान लोग तुम्हें वक्र नाम से पुकारेंगे।

इस प्रकार मेरे समझाने पर उस बालक ने पूछा की बिना आहार के मेरी तृप्ति कैसे होगी। उसने कहा की हे देवाधिदेव आप मुझे अच्छा स्थान दो,स्वामित्व दो,शक्ति दो और आहार भी जल्दी से दे दो। उस पुत्र के ऐसे वचन सुनकर मेने सोचा की यह बालक हैं और प्रिय भी हैं ऐसा विचार कर उत्तम स्थान अक्षय देना चाहिए यह सोचकर मेने उसे अपनी गोद में बिठा लिया और प्रेम से कहा की हे पुत्र मेने तुझे महाकाल वन (उज्जैन नगरी) में गंगेश्वर से पूर्व में स्थान दिया हैं। उस स्थान पर शिप्र और खगर्ता का शुभ संगम हुआ हैं। जब मेने गंगा को मस्तक पर धारण किया था उस समय वह गुस्से से चन्द्र मंडल से नीचे गिरी थी तब वह महाकाल वन क्षेत्र में गिरी थी उस समय गंगा आकाश से नीचे आई थी इसीलिए उसका नाम खगर्ता हुआ और इसीलिए मेने वहां पर अवतार लिया में यहां पर लिंग (महादेव) के रूप में निवास करता हूं। और सभी देवतादिक मेरी पूजा करते हैं। यह स्थान देवतों को भी दुर्लभ हैं अत: हैं प्रिय पुत्र तुम शीघ्र वहां के लिए प्रस्थान करो और उस संगम पर मेरी पूजा करो वह संगम का स्थल तुम्हारे नाम से जग में प्रसिद्द होगा और ग्रहों के बीच में तेरा आधिपत्य होगा। तुझे मैं ने तीसरा स्थान दिया हैं। वहां तुम्हें तृप्ति प्राप्त होगी। ग्रहों के बीच तुम्हारी पूजा होगी और तिथियों में मैं ने तुम्हें चतुर्थी तिथि प्रदान की हैं, इस चतुर्थी को जो भी तुम्हारी प्रसन्नता के लिए व्रत, शांति दक्षिणा सहित पूजन करेंगे उससे तुम्हें तृप्ति होगी, भोजन मिलेगा और मैं ने तुम्हें वार मंगलवार दिया हैं जिससे सभी को मंगल की प्राप्ति होगी। जो भी मनुष्य मंगलवार को विद्यारम्भ करेगा, नए वस्त्राभूषण धारण करेगा या फिर शरीर पर तेल लगाएगा उसे इस सभी कर्मो का फल नहीं मिलेगा।

मेरी कही बातें सुनकर उस वक्रांग मंगल पुत्र ने स्वीकार कर ली और उसका नाम अंगारकेश्वर हो गया और इस प्रकार मेरे वचन अनुसार वह अवंतिकापुरी (वर्तमान उज्जैन,मध्यप्रदेश) में अवस्थित हो गया। उस वक्रांग मंगल पुत्र ने जब शिप्रा जी के पावन तट पर रमणीय खगर्ता नदी के संगम पर मुझे लिंग रूप में देखा तो तो वह परम शांति को प्राप्त हो गया और मेने उसे देखकर आलिंगन किया, उसे आशीर्वाद दिया की हैं पुत्र तेरे सभी वांछित कार्य पूर्ण होंगे। हैं मंगल में तुझ से प्रसन्न हुं। आज से तेरा नाम अंगारकेश्वर तीनो लोकों में प्रसिद्द होगा इसमें कोई संशय नहीं हैं जो कोई भी मेरे दर्शन प्रतिदिन इस संमेश्वर के पास करेगा उसका इस पृथ्वी पर पुन: जन्म नहीं होगा जो मेरा पूजन मंगलवार के दिन इस अंगारकेश्वर पर करेंगे वह इस कलियुग में कृतार्थ हो जायेगा इसमें कोई संशय नहीं हैं जो लोग मंगलवार की चतुर्थी को मेरा व्रत, पूजन और दर्शन करेंगे वह इस घोर दुखों युक्त संसार में पुन: जन्म नहीं लेंगे।

तुम मनुष्य मात्र की कुंडलियों में योग कारक रहोगे। योग की अनुकूलता के लिए जो व्यक्ति यहां आकर तुम्हारी पूजा करेगा, उसका मंगल होगा। तभी से लोग मंगल की पूजा के लिए उज्जैन में आते हैं और अपनी श्रद्धा अनुसार अंगारेश्वर महादेव मंदिर में पूजा करके मंगल की अनुकूलता प्राप्त करते हैं।

जब मंगलवार को अमावस्या हो तब खगर्ता संगम पर देवता पूजित हैं उस दिन यहां दर्शन और पूजा-स्नान से वाराणसी,प्रयाग, गयाजी और करुक्षेत्र में एवं पुष्कर में स्नान-पूजन का जो पुण्य मिलता हैं उससे भी अधिक पुण्य फल यहां पूजन और दर्शन से प्राप्त होगा

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