क्यों वर्जित है शास्त्रों में श्री गणेश जी के पीठ का दर्शन?

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Ganeshहिन्दू सभ्यता में भगवान श्री गणेश को सभी देवी-देवताओं से प्रथम स्थान पर पूज्नीय बताया गया हैं। उनका स्वरूप अकल्पनीय हैं। इनकें दर्शन मात्र से ही सारे दु:खों का नाश हो जाता हैं। वहीं सभी पापों से मुक्ति मिल जाती हैं। और अक्षय पुण्य प्राप्त होता हैं। इन्हें विध्नहर्ता के नाम से सम्बोधन किया जाता है। जिसका मतलब है कि जो सभी कष्टो से मुक्ति प्रदान करें। और शत्रुओं से अभय दान दें। इनके नाम मात्र लेने से सारे कार्य सफल हो जाते है। इनके दर्शन करना शुभ माना जाता हैं परन्तु अगर हम इनके पीठ के दर्शन करते है तो शास्त्रों में ऐसा करना वर्जित माना गया हैं।

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बता दें कि गणेश जी को रिद्धि-सिद्धि का दाता माना गया है। इनके शरीर पर जीवन और ब्रह्माण्ड से जुड़े अंग निवास करते हैं। गणेशजी की सूंड पर धर्म विद्यमान है तो कानों पर ऋचाएं, दाएं हाथ में वर, बाएं हाथ में अन्न, पेट में समृद्धि, नाभी में ब्रह्माण्ड, आंखों में लक्ष्य, पैरों में सातों लोक और मस्तक में ब्रह्मलोक विद्यमान हैं। गणेशजी के सामने से दर्शन करने पर उपरोक्त सभी सुख-शांति और समृद्धि प्राप्त हो जाती हैं। वहीं दूसरी तरफ उनके पीठ की बात की जाये तो उनके पीठ पर दरिद्रता का वास होता है। मान्यता है अगर गलती से भी कोई धनवान उनके पीठ के दर्शन करले तो उसे उसका दुष परिणाम भुगतना पड़ता हैं। उसके घर एवं व्यवसाय से सुख और समृद्धि चली जाती है और दरिद्रता अपना वास बना लेती हैं। अगर आप से यह गलती हो गई है तो चिंतीत न हो। भगवान श्री गणेश जी से अपने हुई गलती की क्षमा मांग कर उनकी श्रद्धा पूर्ण रूप से पूजा करें।

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