ग्रह दृष्टि का अर्थ वो स्थान है, जहां ग्रह देखता है। ग्रह भी मानव की तरह देखते हैं, जन्मपत्री में बैठा ग्रह अपना पूर्ण प्रभाव जिस जगह पर बैठा है, वहां तो डालता ही है, अपितु जहां पर उसकी नजर जाती है, वहां भी ग्रह प्रभाव रखते हैं। कहने का तात्पर्य है, एक घर में स्थित होने पर भी ग्रह अन्य घरों पर एवं उसमें स्थित ग्रहों को वहीं बैठे-बैठे अपनी सुदृष्टि अथवा कुदृष्टि द्वारा प्रभावित करता है। शुभ ग्रहों की दृष्टि जिस ग्रह या जिस भाव पर पड़ती है, वह उस ग्रह और भाव के अच्छे परिणाम में वृद्धि करते हैं।
अशुभ ग्रहों की दृष्टि जिस ग्रह और भाव पर पड़ती है वह उनके अच्छे प्रभावों में कमी लाते हैं। ज्योतिष शास्त्र का सिद्धान्त है, यदि एक शुभ ग्रह, एक पाप ग्रह को देखे तो पाप ग्रह का दुष्प्रभाव कम हो जाता है। इसके विपरीत एक पाप ग्रह, एक शुभ ग्रह को देखे तो शुभ ग्रह की शुभता में कमी आ जाती है। प्रत्येक ग्रह जहां बैठा है, उससे सातवें भाव अथवा स्थान पर उसकी पूर्ण दृष्टि होती है। जैसे कि सूर्य अगर प्रथम भाव में है तो वह सप्तम भाव पर पूर्ण दृष्टि डालेगा। वैसे ग्रहों की चार प्रकार की दृष्टि मानी गई है, एकपाद दृष्टि, द्विपाद दृष्टि, त्रिपाद दृष्टि एवं पूर्ण दृष्टि, अन्य दृष्टियों की अपेक्षा पूर्ण दृष्टि का सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है, ग्रह दृष्टि की गणना करते समय ध्यान रखने के विषय में एक उपयोगी दोहा याद रखने की आवश्यकता है,
सभी ग्रह अपने से सातवें स्थान को पूर्ण दृष्टि से देखते हैं लेकिन मंगल, बृहस्पति, शनि इन तीन ग्रहों की विशेष दृष्टियां हैं, जिसके चलते इन तीनों ग्रहों की सातवें भाव पर पूर्ण दृष्टि के अतिरिक्त कुछ अन्य भावों पर भी पूर्ण दृष्टि पड़ती है।
- मंगल सातवें भाव के साथ चतुर्थ और अष्टम भाव को भी पूर्ण दृष्टि से देखता है।
- बृहस्पति सातवें भाव के साथ पंचम और नवम भाव को भी पूर्ण दृष्टि से देखता है।
- शनि सातवें भाव के साथ तीसरे और दसवें भाव को भी पूर्ण दृष्टि से देखता है।
ग्रहों की पूर्ण दृष्टि का रहस्य – कभी-कभी मन में जिज्ञासा उत्पन्न होती है कि शनि, मंगल, गुरू इन तीन ग्रहों को ही विशेष दृष्टियां क्यों प्रदान की गईं हैं। मंगल सप्तम भाव के अरिक्ति चतुर्थ और अष्टम भाव को पूर्ण दृष्टि से क्यों देखता है, इसी प्रकार बृहस्पति सप्तम भाव के साथ-साथ पंचम और नवम भाव को पूर्ण दृष्टि से क्यों देखता है, तथा शनिदेव की सप्तम दृष्टि के अतिरिक्त तीसरी और दसवीं दृष्टि, पूर्ण दृष्टि क्यों मानी जाती है।
जिसके उत्तर में विद्वान ज्योतिषाचार्यों के अनुसार मंगल ग्रह को सेनापति माना गया है, सेनापति अपनी स्त्री यानि सप्तम भाव के अतिरिक्त चतुर्थ सुख भाव व अष्टम जीवनरक्षा भाव के लिए जिम्मेदारी अथवा उत्तरदायित्व रखता है। इसलिए मंगल ग्रह की सप्तम भाव के साथ-साथ चौथे और आठवें भाव पर भी पूर्ण दृष्टि रहती है। इसी तरह देवगुरू बृहस्पति पंचम विद्या भाव व नवम धर्म भाव पर एवं शनि सेवक होने के कारण तीसरा पराक्रम व दशम राज्य व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए सप्तम भाव के अतिरिक्त बृहस्पति की पंचम, नवम और शनि की तीन, दस भावों पर पूर्ण दृष्टि रहती है।
अपनी पत्रिका पर विमोचना के लिए अभी कॉल करें 7699171717