चार वेद की संपूर्ण जानकारी और महत्व, संक्षिप्त परिचय 

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2) यजुर्वेद:-
यजुर्वेद चार वेदों में से एक महत्त्वपूर्ण श्रुति धर्मग्रन्थ है। यजुर्वेद का अर्थ यजुष् के नाम पर ही वेद का नाम यजुष्+वेद = यजुर्वेद शब्दों की संधि से बना है। यज् का अर्थ समर्पण से होता है। यजुर्वेद में यज्ञ की असल प्रक्रिया के लिए गद्य और पद्य मन्त्र है। यजुर्वेद अधिकांशतः यज्ञों के नियम और और विधान हैं, अतः इसलिए यह वेद कर्मकाण्ड प्रधान भी कहा जाता है। यजुर्वेद वेद दो शाखाओ में बटा हुआ हैं शुक्ल और कृष्ण।

3) सामवेद:-
सामवेद गीत-संगीत का मुख्य वेद है। प्राचीन आर्यों द्वारा सामवेद का गान किया जाता था। सामवेद में 1875 श्लोक है, इसमे से 1504 ऋगवेद से लिए गए हैं। इस वेद में 75 ऋचाएं, 3 शाखाओ में सविता, अग्नि और इंद्र आदि देवी देवताओं के बारे में वर्णन मिलता है। सामवेद चारो वेदो में छोटा है, परंतु यह चारो वेदो का सर रूप है, और चारो वेदो के अंश इसमें शामिल किये गए है।

4) अथर्ववेद:-
सनातन धर्म के पवित्रतम चार वेदो में से चौथा वेद अथर्वेद है। महर्षि अंगिरा रचित अथर्वेद में 20 अध्याय, 730 सूक्त, 5687 श्लोक और 8 खण्ड है, जिसमे देवताओं की स्तुति के साथ, चिकित्सा, आयुर्वेद, रहस्यमयी विद्याओं, विज्ञान आदि मिलते हैं। अथर्वेद में ब्रह्माजी की सर्वत्र चर्चा होने कारण इस वेद को ब्रह्मवेद भी कहा जाता है।

वेदों के उपवेद:-

मानव सभ्यता के सबसे पुराने लिखित दस्तावेज वेद को ही माना जाता है। भारत के पुणे में भंडारकर ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट’ में वेदों की 28 हजार पांडुलिपियाँ रखी हुई हैं। इस पांडुलिपि में 30 पांडुलिपियाँ ऋग्वेद की बहुत ही महत्वपूर्ण जिन्हें यूनेस्को ने विरासत सूची में शामिल किया गया है। यूनेस्को द्वारा ऋग्वेद की 1800 से 1500 ई.पू. की 30 पांडुलिपियों को सांस्कृतिक धरोहरों की सूची में शामिल किया गया है। यूनेस्को की महत्वपूर्ण 158 सूची में भारत की महत्वपूर्ण की सूची 38 है।

ब्रह्माजी द्वारा वेदो का ज्ञान सर्वप्रथम चार ऋषिओ अग्नि, वायु, अंगिरा और आदित्य को सुनाया गया था। वेद ही वैदिककाल परंपरा की सर्वोत्तम कृति है। यह पिछले छह-सात हजार ईस्वी पूर्व से पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आ रही है। संहिता, ब्राह्मण, आरण्यक और उपनिषद के संयोग को विद्वानों ने वेद कहा है।

विद्वानों के अनुसार वेदो का रचनाकाल 4500 ई.पु. से माना जाता है। वेद धीरे-धीरे रचे गए और पहले तीन वेद संकलित किये गये थे ऋग्वेद यजुर्वेद और सामवेद इसे वेदत्रीय भी कहा जाता है। फिर अथर्वा ऋषि द्वारा अथर्ववेद की रचना की गई है।

वेद सनातन धर्म के मूलाधार है। वेद ही तो एकमात्र ऐसा ग्रंथ है, जो आर्यों की संस्कृति और सभ्यता की पहचान करवाते है। मनुष्य ने अपने शैशव में धर्म और समाज का विकास किया इसका ज्ञान केवल वेदों में ही मिलता है। वेदों से मनुष्य जाती को जीवन जीने की विभिन्न जानकारियां मिलती हैं।

वेदो में वर्ण एवं आश्रम पद्धतियां की जानकारी के साथ-साथ रीति रिवाज एवं परंपराओं का वर्णन और विभिन्न व्यवसाय के बारे में वर्णन किया गया है।

महर्षि याज्ञवल्क्य कहते हैं की
यज्ञानां तपसाञ्चैव शुभानां चैव कर्मणाम् ।
वेद एव द्विजातीनां निःश्रेयसकरः परः ।।
अर्थात: यज्ञ के विषय में, तप के सम्बन्ध में और शुभ-कर्मों के ज्ञानार्थ द्विजों के लिए वेद ही परम कल्याण का साधन है।

प्राचीन काल से वेदों के अध्ययन और व्याख्या की परम्परा भारत में रही है। विद्वानों के अनुसार आर्षयुग में परमपिता ब्रह्मा, जैमिनि ऋषि और आदि ऋषि-मुनियों ने शब्द प्रमाण के रूप में वेद को माना हैं, और वेद के आधार पर अपने ग्रन्थों का निर्माण भी किया हैं। जैमिनि ऋषि, पराशर ऋषि, कात्यायन ऋषि, याज्ञवल्क्य ऋषि, व्यास ऋषि, आदि को प्राचीन काल के वेद वक्ता कहते हैं।

वेदों का सार:-

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