महाराष्ट्र के नासिक शहर में गोदावरी नदी के तट पर स्थित ‘कपालेश्वर महादेव मंदिर’ बेहद मशहूर है क्योंकि ये एकमात्र स्थान है जहां शिव वाहन नंदी उनके साथ मौजूद नहीं है, जाने क्यों
नंदी के बिना महादेव
शिव की पहचान उनके त्रिशूल, नाग और डमरू के साथ साथ वाहन नंदी के बिना भी अधूरी लगती है। भारत के महाराष्ट्र राज्य का शहर नासिक जो कुंभ मेले के कारण तो जाना ही जाता है पर इसके अलावा वो एक और वजह से भी मशहूर है। यहां गोदावरी नदी के तट पर बना है प्रसिद्ध ‘कपालेश्वर महादेव मंदिर’ और ऐसा माना जाता है कि संसार का यह एक मात्र शिवमंदिर है जहां उनके वाहन नंदी मंदिर में स्थापित नहीं है। पौराणिक हिंदू कथाओं में उल्लेख मिलता है कि ‘कपालेश्वर महादेव मंदिर में एक समय भगवान शिवजी ने निवास किया था।
क्या है नंदी की अनुपस्थिति की वजह
कहते हैं उस समय ब्रह्मदेव के पांच मुख थे। वे चार मुख वेदोच्चारण करते थे, और पांचवां निंदा करता था। निंदा वाले मुख से शिव नाराज हो गए और उन्होंने उस मुख को ब्रह्माजी के शरीर से अलग कर दिया। इसके चलते शिव जी को ब्रह्महत्या का पाप लगा। उस पाप से मुक्ति पाने के लिए शिवजी ब्रह्मांड में हर जगह घूमे लेकिन कोई उपाय नहीं मिला। ऐसे में जब वे सोमेश्वर में बैठे थे, तब एक बछड़े द्वारा उन्हें इस पाप से मुक्ति का उपाय बताया गया। वह बछड़ा वास्तव में नंदी थे। वह शिव जी के साथ गोदावरी के रामकुंड तक गए और कुंड में स्नान करने को कहा। स्नान के बाद शिव जी ब्रह्महत्या के पाप से मुक्त हो सके। नंदी के कारण ही शिवजी की ब्रह्म हत्या से मुक्ति हुई थी। इसलिए उन्होंने नंदी को गुरु माना और यहां शिवलिंग के रूप में स्थापित हो गए। चूंकि यहां नंदी महादेव के गुरू बन गए थे इसीलिए उन्होंने इस मंदिर में उन्हें अपने सामने बैठने से मना कर दिया, तभी से इस मंदिर में शिव बिना नंदी के स्थापित हैं।
नासिक शहर के प्रसिद्ध पंचवटी इलाके में गोदावरी तट के पास कपालेश्वर महादेव मंदिर स्थित है। भगवान शिव जी ने यहां निवास किया था ऐसा पुराणों में कहा गया है। यह देश में पहला मंदिर है जहां भगवान शिव जी के सामने नंदी नहीं हैं। यही इसकी विशेषता है। यहां नंदी के अभाव की कहानी बड़ी रोचक है। एक दिन भरी इंद्र सभा में ब्रह्मदेव और शंकर में विवाद उत्पन्न हो गया। उस वक्त ब्रह्मदेव के पांच मुख थे। चार मुख वेदोच्चारण करते थे और पांचवां निंदा करता था। उस निंदा से संतप्त शिव जी ने उस मुख को काट डाला। वह मुख उन्हें चिपक कर बैठ गया। इस घटना के कारण शिव जी को ब्रह्महत्या का पाप लग गया। उस पाप से मुक्ती पाने के लिए शिव जी ब्रह्मांड में घुम रहे थे लेकिन उन्हें मुक्ती का उपाय नहीं मिल रहा था।
एक दिन वह सोमेश्वर में बैठे थे तब उनके सामने ही एक गाय और उसका बछड़ा एक ब्राह्मण के घर के सामने खड़े थे। वह ब्राह्मण बछड़े के नाक में रस्सी डालने वाला था। बछड़ा उसके विरोध में था। ब्राह्मण की कृती के विरोध में बछड़ा उसे मारना चाहता था। उस वक्त गाय ने उसे कहा कि,” ऐसा मत करो, तुम्हें ब्रह्महत्या का पातक लग जाएगा।”
बछड़े ने उत्तर दिया, “ब्रह्महत्या के पातक से मुक्ती का उपाय मुझे मालूम है।”
यह संवाद सुन रहे शिव जी के मन में उत्सुकता जागृत हुई। बछड़े ने नाक में रस्सी डालने के लिए आए ब्राह्मण को अपने सिंग से मारा। ब्राह्मण मर गया। ब्रह्महत्या से बछड़े का अंग काला पड़ गया। उसके बाद बछड़ा निकल पड़ा। शिव जी भी उसके पीछे-पीछे चलते गए। बछड़ा गोदावरी नदी के राम कुंड में गया। उस ने वहां स्नान किया। उस स्नान से ब्रह्म हत्या के पातक का क्षालन हो गया। बछड़े को अपना सफेद रंग पुनः मिल गया।
बछड़े के स्नान करने के बाद भगवान शिव ने भी राम कुंड में स्नान किया। उन्हें भी ब्रह्म हत्या के पातक से मुक्ती मिली। इसी गोदावरी नदी के पास एक टेकरी थी। शिव जी वहां चले गए। उन्हे वहां जाते देख गाय का बछड़ा (नंदी) भी वहां आया। नंदी के कारण ही शिव जी की ब्रह्म हत्या से मुक्ती हुई थी इसलिए उन्होंने नंदी को गुरु माना और अपने सामने बैठने को मना किया। इसी कारण इस मंदिर में नंदी नहीं है। ऐसा कहा जाता है की यह नंदी गोदावरी के रामकुंड में ही स्थित है। इस मंदिर का बड़ा महत्त्व है। बारह ज्योतिर्लिंगों के उपरांत इस मंदिर का महत्त्व है, ऐसे माना जाता है।
पुरातन काल में इस टेकरी पर शिव जी की पिंडी थी लेकिन अब वहां एक विशाल मंदिर है। पेशवाओं के कार्यकाल में इस मंदिर का जीर्णोद्धार हुआ। मंदिर की सीढ़ियां उतरते ही सामने गोदावरी नदी बहती नजर आती है। उसी में प्रसिद्ध राम कुंड है। भगवान राम ने इसी कुंड में अपने पिता राजा दशरथ का श्राद्ध किया था। इसके अतिरिक्त इस परिसर में काफी मंदिर हैं।
कपालेश्वर मंदिर के ठीक सामने गोदावरी नदी के पार प्राचीन सुंदर नारायण मंदिर है। साल में एक बार हरिहर महोत्सव होता है। उस वक्त कपालेश्वर और सुंदर नारायण दोनों भगवानों के मुखौटे गोदावरी नदी पर लाए जाते हैं, वहां उन्हें एक-दूसरे से मिलाया जाता है और अभिषेक किया जाता है। इसके अतिरिक्त महाशिवरात्री को कपालेश्वर मंदिर में बड़ा उत्सव होता है। सावन के सोमवार को यहां काफी भीड़ रहती है।
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