आइए जानें भारत की सबसे पवित्र नदियों में से एक और महाकाल की नगरी में बहने वाली शिप्रा नदी के उद्गम की कहानी।
हमारे देश में नदियों का इतिहास काफी पुराना है। समय ने जैसे -जैसे करवट बदली है न जाने कितनी चीजें बदलती गईं , लेकिन नदियों ने न तो अपनी दिशा बदली और न ही कभी बदलेंगी। हमेशा से एक ही दिशा में बहने वाली नदियां हम सभी को सदियों से अपने जल से लाभ पहुंचाती आ रही हैं। भारत की सबसे प्रमुख पवित्र नदियों में से एक है शिप्रा नदी। इस नदी का इतिहास काफी पुराना है और वास्तव में भगवान् शिव की उज्जैन नगरी में बहने वाली यह नदी विशेष रूप से अपनी पवित्रता को बनाए हुए है। आइए जानें इस नदी के इतिहास की कहानी और इससे जुड़े कुछ रोचक तथ्यों के बारे में।
कहां से बहती है शिप्रा नदी
शिप्रा, जिसे क्षिप्रा के नाम से भी जाना जाता है यह मध्य भारत के मध्य प्रदेश राज्य की एक नदी है। नदी धार जिले के उत्तर में निकलती है और मंदसौर जिले में मध्यप्रदेश के राजस्थान सीमा पर चंबल नदी में शामिल होने के लिए मालवा पठार के उत्तर में बहती है। यह हिंदू धर्म की सबसे पवित्र नदियों में से एक है। जब बात आती है इसकी पवित्रता की तब उज्जैन का पवित्र शहर इसके पूर्वी तट पर स्थित है। इस स्थान पर हर 12 साल में सिंहस्थ मेला भी लगता है जिसे कुंभ मेला भी कहा जाता है। यह नदी 195 किमी लंबी है.इसे हिंदुओं द्वारा गंगा नदी के रूप में पवित्र माना जाता है। शिप्रा की प्रमुख सहायक नदियां खान और गंभीर हैं।
शिप्रा नदी के किनारे स्थित हैं कई हिंदू मंदिर
शिप्रा नदी के किनारे सैकड़ों हिंदू मंदिर हैं। यह एक बारहमासी नदी है और हिंदुओं द्वारा गंगा नदी के समान पवित्र मानी जाती है। शिप्रा शब्द का प्रयोग “पवित्रता” आत्मा, भावनाओं, शरीर आदि या “पवित्रता” या “स्पष्टता” के प्रतीक के रूप में किया जाता है। शिप्रा नदी भारत की उन पवित्र नदियों में से एक है जिसे लोग पूजते हैं और उससे जुड़ी कई रोचक कथाएं भी प्रचलित हैं। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि शिप्रा की उत्पत्ति वराह के हृदय से हुई थी और भगवान विष्णु ने एक सुअर के रूप में अवतार लिया था। इसके अलावा शिप्रा के तट पर ऋषि संदीपनी का आश्रम या आश्रम है जहां भगवान विष्णु के आठवें अवतार नीले भगवान कृष्ण ने अध्ययन किया था।(जानें ब्रह्मपुत्र नदी का किया था
सूखने लगा है शिप्रा का जल
यदि शिप्रा के जल की बात की जाए तो इसका जल अपने उद्गम स्थान से सूखने लगा है जिसे पुनः जीवित करने के लिए सरकार ने कई कदम उठाने शुरू किये हैं। अपने उद्गम स्थान से सूखने वाली शिप्रा नदी को करीब 432 करोड़ रुपये की लागत वाली परियोजना के जरिये नर्मदा के सहयोग से जीवित किया गया है। प्रदेश सरकार के नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण ने दोनों नदियों यानी कि शिप्रा और नर्मदा को नर्मदा-क्षिप्रा सिंहस्थ लिंक परियोजना के जरिए जोड़ा गया है। दरअसल नदी में आमतौर पर गर्मियों में सूखकर नाले में तब्दील हो जाती है और इसका पानी इतना कम होने लगता है कि उससे जल की प्राप्ति संभव ही नहीं होती है।
क्या है नर्मदा शिप्रा सिहस्थ लिंक परियोजना
नर्मदा शिप्रा सिहस्थ लिंक परियोजना, मुंडला दोसदार – शिप्रा नदी को नर्मदा नदी से जोड़ने वाली एक परियोजना है जो 2012 में शुरू हुई थी और 2015 में सफलतापूर्वक पूरी हुई थी। इस परियोजना में बिजली का उपयोग करके नर्मदा नदी से पानी उठाकर इसे पाइप के माध्यम से शिप्रा नदी के स्रोत तक पहुंचाया जाता है। लिंक परियोजना 8000 करोड़ रुपये की नर्मदा-मालवा लिंक परियोजना का पहला चरण है।
शिप्रा नदी का पौराणिक महत्व
मोक्षदायनी नदी शिप्रा नदी का काफी पौराणिक महत्व भी है और यह मध्य प्रदेश की धार्मिक और ऐतिहासिक नगरी उज्जैन से होकर गुजरती है। किदवंतियों के अनुसार शिप्रा नदी विष्णु जी के रक्त से उत्पन्न हुई थी। ब्रह्मपुराण में भी शिप्रा नदी का उल्लेख मिलता है। संस्कृत के महाकवि कालिदास ने अपने काव्य ग्रंथ ‘मेघदूत’ में शिप्रा का प्रयोग किया है, जिसमें इसे अवंति राज्य की प्रधान नदी कहा गया है। महाकाल की नगरी उज्जैन, शिप्रा के तट पर बसी है। स्कंद पुराण में शिप्रा नदी की महिमा लिखी है। पुराण के अनुसार यह नदी अपने उद्गम स्थल बहते हुए चंबल नदी से मिल जाती है। प्राचीन मान्यता है कि प्राचीन समय में इसके तेज बहाव के कारण ही इसका नाम शिप्रा प्रचलित हुआ है।
सदियों से भारत में प्रवाहित होने वाली शिप्रा नदी की कहानी अन्य नदियों से थोड़ी अलग है और इसका अस्तित्व बनाए रखने के लिए निरंतर प्रयास किया जा रहा है।
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