हमारे जीवन में पानी का बहुत महत्व है, क्योंकि पानी के बिना जीवन संभव ही नहीं है। धर्म ग्रंथों में भी पानी से संबंधित कई महत्वपूर्ण बातें बताई गई हैं। उसके अनुसार जिस घर में पानी का दुरुपयोग होता है वहां सदैव धन का अभाव रहता है और धन की देवी मां लक्ष्मी भी ऐसे घर में नहीं ठहरतीं। यही बात वास्तु शास्त्र में भी कही गई है।
- वास्तु शास्त्र के अनुसार, जिस घर के नलों में व्यर्थ पानी टपकता रहता है। उस घर में हमेशा धन का अभाव रहता है। नल से व्यर्थ टपकते पानी की आवाज उस घर के आभा मंडल को भी प्रभावित करती है। इसलिए इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि घर के नलों से पानी व्यर्थ नहीं टपके।
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- बहुत से लोगों को रात में भी स्नान करने की आदत होती है। किंतु शास्त्रों में रात के स्नान को वर्जित माना गया है। यानी रात के समय नहीं नहाना चाहिए-
निशायां चैव न स्नाचात्सन्ध्यायां ग्रहणं विना।
अर्थात– रात के समय स्नान नहीं करना चाहिए। जिस दिन ग्रहण हो केवल उस दिन ही रात के समय स्नान करना उचित रहता है। रात के समय स्नान करना जल का दुरुपयोग करने के समान है। जो भी जल का ऐसा दुरुपयोग करता है, उसके घर में सदैव धन का अभाव रहता है।
- बहुत से लोगों को रात में भी स्नान करने की आदत होती है। किंतु शास्त्रों में रात के स्नान को वर्जित माना गया है। यानी रात के समय नहीं नहाना चाहिए-
- हमारे धर्म शास्त्रों में एवं पुराणों में जल को बचाने के लिए जल को अंजली (हाथों से) से पीने को निषेध बताया गया है।
न वार्यञ्जलिना पिबेत (मनुस्मृति)
जलं पिबेन्नाञ्जलिना (याज्ञववल्क्यस्मृति)क्योंकि इससे जल पीने में कम हाथों के आस पास से ढुलता ज्यादा है। इस संबंध में एक कथा भी प्रचलित है- समुद्र मंथन के समय लक्ष्मीजी से पहले उनकी बड़ी बहन अलक्ष्मी अर्थात दरिद्रता उत्पन्न हुई थी। उनको रहने के लिए स्थान बताते समय लोमष ऋषि ने जो स्थान बताए थे उनमें एक स्थान यह भी था कि जिस घर में जल का व्यय ज्यादा किया जाता हो वहां तुम अपने पति अधर्म के साथ सदैव निवास करना। अर्थात जिस घर में पानी को व्यर्थ बहाया जाता है, वहां दरिद्रता अपने पति अधर्म के साथ निवास करती है।
- .श्रीमद्भागवत में एक प्रसंग आता है जब गोपियां निर्वस्त्र होकर यमुना में स्नान कर रही होती हैं तब श्रीकृष्ण कहते हैं-
यूयं विवस्त्रा यदपो धृतव्रता व्यगाहतैत्तदु देवहेलनम्।
बद्ध्वाञ्जलिं मूध्न्र्यपनुत्तयेंहस: कृत्वा नमोधो वसनं प्रगृह्यताम्।।श्रीकृष्ण ने अपनी परमप्रिय गोपियों से कहा कि- तुमने निर्वस्त्र होकर यमुना नदी में स्नान किया इससे जल के देवता वरुण और यमुनाजी दोनों का अपमान हुआ अत:दोनों हाथ जोड़कर उनसे क्षमा मांगों।
भगवान इस प्रसंग से हमें ये सीख देते हैं कि जहां पर भी संग्रहित जल हो उस स्थान के स्वामी वरुण देवता होते है। उसको गंदा करने से या दूषित करने से जल के देवता का अपमान होता है व ऐसे लोग सदैव धन के अभाव में जीते हैं। - 5.स्कदंपुराण के अनुसार-
मलं मूत्रं पुरीषं च श्लेष्मनिष्ठिवितं तथा
गण्डूषमप्सु मुञ्चन्ति ये ते ब्रह्मभिः समाःअर्थात– जो मनुष्य नदी, तालाब या कुंओं के जल में मल मूत्र, थूक, कुल्ला करते हैं या उसमें कचरा फेंकते हैं, उनको ब्रह्महत्या का पाप लगता है।