‘नारद पुराण’ एक वैष्णव पुराण है। इस पुराण के विषय में कहा जाता है कि इसका श्रवण करने से पापी व्यक्ति भी पाप मुक्त हो जाते हैं। इस पुराण में बताया गया है कि अगर कोई व्यक्ति ब्रह्महत्या का दोषी है, मदिरापान करता है, मांस भक्षण करता है, वेश्यागमन करता है, लहसुन-प्याज खाता है तथा चोरी करता है, वह पापी है। ऐसे व्यक्ति को इस जीवन में क्या किसी भी जीवन में पाप से मुक्ति नहीं मिलती हैं। सिर्फ विष्णु भक्ति से ही सारे पापों से मुक्ति मिल सकती हैं। इसी पुराण में भगवान विष्णु की पूजन-अर्चन के संबंध में भी बताया गया है कि अगर हम ४ ऐसी भावनाओ के साथ पूजा करते है तो हमें उसका फल कभी नहीं मिलता है। बल्कि शुभ फल के स्थान पर अशुभ फल की प्राप्ति होती है। जानते है ऐसे ४ भावनाओ के बारे में-
१. पूजा के दौरान भय होना-
अगर पूजा के समय या फिर पूजा के पूर्व अगर किसी भी प्रकार से मन भयवीत हो या मन अशांत हो तो ऐसी की गई पूजा का हमें कभी शुभ फल नहीं मिलता हैं। इसलिए हमें हमेशा शांत मन और बिना किसी के भय से पूजा करनी चाहिए। शांत मन एवं बिना किसी भय से की गई पूजा से हमारे सारी मनोकामनाए पूरी होती हैं।
२.दबाव में की गई पूजा-
अगर हमारा मन पूजा में नहीं हैं। और परिवार के दबाव या फिर किसी के कहने पर किसी भी प्रकार से की गई पूजा का फल हमें कभी भी नहीं मिलता हैं। बल्कि की गई पूजा निष्फल हो जाती हैं। ऐसे में हमें भगवान की पूजा हमेशा बिना किसी के दबाव और सच्चे मन और सच्चे भाव से करनी चाहिए।
३. नि:स्वार्थ से न किया गया पूजा-
हम हमेशा से पूजा को उसके फल की प्राप्ति से जोड़ कर देखते हैं। अत: पूजा के शुरूआत में ही पूजा का फल तय कर लेते हैं। ऐसे में की गयी पूजा कभी भी अपना पूर्ण फल नहीं देती हैं। अगर हम नि:स्वार्थ से एवं पूरे समर्पण भाव और श्रद्धा के साथ अपने ईष्ट की पूजा करे तो हमें शुभ फल के साथ बिन मांगा फल भी मिल जाता हैं। इसके साथ भगवान का आर्शीवाद सदा-सदा के लिए हम पर बना रहता हैं।
४. गलत विधि से की गई पूजा-
अगर किसी पूजा का सम्पूर्ण ज्ञान न हो तो ऐसी की गई पूजा का हमें नकारात्मक प्रभाव देखने पड़ते हैं। इसलिए किसी भी पूजा की शुरूआत में यह तय कर लेना चाहिए कि की जाने वाली पूजा का सम्पूर्ण विधि-विधान हमें पूर्ण रूप से ज्ञात है कि नहीं। इसके साथ इसका हमेशा ध्यान रखें की जो भी ब्राह्मण हमारें द्वारा आयोजित पूजा करने वाले हैं उन्हें उस पूजा का संपूर्ण विधि का पूर्ण रूप से ज्ञान हो।