भगवान कोटेश्वर के पैरों के अंगूठे से बना था यह कुंड, महाकाल का होता है इसी जल से अभिषेक

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रंगाई-पुताई से चमक उठा महाकाल मंदिर का कोटितीर्थ कुंड, साफ-सफाई के बाद बदला पानी और आसपास के शिवलिंग मंदिरों की भी हुई पुताई

रंगाई-पुताई से चमक उठा महाकाल मंदिर का कोटितीर्थ कुंड, साफ-सफाई के बाद बदला पानी और आसपास के शिवलिंग मंदिरों की भी हुई पुताई

उज्जैन। महाकाल मंदिर परिसर स्थित कोटितीर्थ कुंड रंगाई-पुताई के बाद चमक उठा है। बताया जाता है कि यह अतिप्राचीन कुंड है। सदियों से पुण्य सलीला क्षिप्रा एवं मंदिर परिसर में पावन कुंड के जल से ही भूतभावन भगवान महाकालेश्वर के ज्योतिर्लिंग का अभिषेक पूजन होता रहा है।

पौराणिक मान्यता अनुसार अवंतिका में महाकाल रूप में विचरण करते समय कोटितीर्थ भगवान के पैर के अंगूठे से प्रकट हुआ था। मंदिर में भगवान महाकाल को शिव नवरात्रि में नौ दिन अलग-अलग स्वरूपों से शृंगारित किया जाता है। कुंड की सफाई और पुताई के बाद पानी बदला गया एवं आसपास बने शिवलिंग मंदिरों के शिखरों की भी रंगाई-पुताई की गई।

महाशिवरात्रि पर दर्शन व्यवस्था
महाशिवरात्रि पर्व पर दर्शनार्थी दर्शन उपरांत निर्गम गेट से बाहर होकर बेगमबाग रोड एवं रूद्र सागर में बनाए गए रोड से अपने गन्तव्य की ओर जाएंगे। उल्लेखनीय है कि बेगमबाग वाले रूट से वीआईपी एवं मीडिया का आना-जाना रहेगा। हरिफाटक ओवर ब्रिज की तीसरी भुजा से इंटरप्रिटेशन सेंटर से बेगमबाग की ओर आने वाले मार्ग पर निर्माण कार्य चलने के कारण उस रास्ते को बंद कर रूद्रसागर वाले रूट से दर्शनार्थी जा सकेंगे।

खड़े होकर ही की जाती है यह कथा
महाकालेश्वर मंदिर प्रांगण में 13 से 20 फरवरी तक शिवनवरात्रि निमित्त 1909 से इंदौर के कानड़कर परिवार द्वारा वंश परंपरानुसार हरि कीर्तन की सेवा दी जा रही है। बताया जाता है कि इसे नारदीय कीर्तन भी कहते हैं, जो कि खड़े होकर ही वर्णन सुनाया जाता है। कथारत्न हरि भक्त परायण पं. रमेश कानड़कर द्वारा महाकाल मंदिर प्रांगण के चबूतरे पर शिव कथा, हरि कीर्तन प्रतिदिन शाम 4 से 6 बजे तक किया जा रहा है। तबले पर संगत तुलसीराम कार्तिकेय द्वारा की जा रही है।

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