सनातन धर्म में कोई भी पूजन अनुष्ठान मंत्रों के बिना पूर्ण नहीं होता है। प्रत्येक धार्मिक अनुष्ठान में मंत्रों का उच्चारण अवश्य किया जाता है। वैदिक काल से ही सनातन धर्म में मंत्र उच्चारण और जाप करने की परंपरा रही है। धार्मिक शास्त्रों में मंत्र जाप का विशेष महत्व बताया गया है। धार्मिक महत्व के साथ ही मंत्र जाप के कई वैज्ञानिक लाभ भी बताए गए हैं। ईश्वर को प्रसन्न करने के लिए मंत्र जाप करना सर्वश्रेष्ठ माना जाता है, लेकिन मंत्र जाप के बारे में पूरी जानकारी न होने के कारण हम कई गलतियां करते हैं, जिसके कारण हमें मंत्र जाप का पूर्ण फल प्राप्त नहीं हो पाता है। यदि मंत्र जाप का पूर्ण फल प्राप्त करना है तो इसके नियमों को ध्यान में रखना बहुत आवश्यक होता है। तो चलिए जानते हैं इस बारे में।
तीन प्रकार से होता है मंत्र जाप-
- वाचिक जप- जब सस्वर मंत्र का उच्चारण किया जाता है तो वह वाचिक जाप की श्रेणी में आता है।
- उपांशु जप- जब जुबान और ओष्ठ से इस प्रकार मंत्र उच्चारण किया जाए कि जिसमें केवल ओष्ठ कंपित होते हुए प्रतीत हो और मंत्र का उच्चारण केवल स्वयं को ही सुनाई दे तो ऐसा जाप उपांशु जप की श्रेणी में आता है।
- मानसिक जाप- जैसा कि नाम से ही पता चल रहा है कि यह जाप केवल अंतर्मन से किया जाता है। इस तरह जाप करने के लिए सुखासन या पद्मासन में ध्यान मुद्रा लगाई जाती है।
मंत्र जाप करते समय इन नियमों का रखें ध्यान-
- मंत्र जाप से पहले शुद्धि आवश्यक है इसलिए दैनिक क्रिया से निवृत्त होने और स्नानादि करने के पश्चात ही जाप करना चाहिए।
- जाप के स्थान को भी भलिभांति साफ कर लेना चाहिए और एक स्वच्छ आसन पर बैठकर ही जाप करना चाहिए।
- जाप के बाद आसन को इधर-उधर नहीं छोड़ना चाहिए और न ही पैर से हटाना चाहिए। आसन को एक जगह संभाल कर रख देना चाहिए।
- मंत्र जाप के लिए कुश का आसन उत्तम माना जाता है, क्योंकि कुश ऊष्मा का सुचालक है,जिससे मंत्र जाप करते समय ऊर्जा हमारे शरीर में समाहित होती है।
- साधारण रूप से जाप करने के लिए तुलसी की माला उत्तम रहती है लेकिन यदि किसी कार्य सिद्धि के लिए जाप किया जाए तो उक्त देवी-देवता के अनुसार ही माला लेनी चाहिए। जैसे भगवान शिव के लिए रुद्राक्ष तो लक्ष्मी जी के लिए स्फटिक या कमलगट्टे की माला श्रेष्ठ मानी जाती है।
- मंत्र जाप करने के लिए एक शांत स्थान को चुनना चाहिए ताकि जाप में किसी प्रकार की कोई बाधा न पड़े और ध्यान न भटके।
- जाप करने के लिए प्रातः काल का समय सबसे उत्तम रहता है, क्योंकि इस समय वातावरण शांत, शुद्ध और सकारात्मक रहता है।
- यदि हमेशा जाप करते हैं तो प्रतिदिन एक ही स्थान और एक निश्चित समय पर भी मंत्र जाप करना चाहिए।
- मंत्र जाप करते समय माला को खुला न रखें। माला सदैव गौमुखी के अंदर ढक कर ही रखनी चाहिए।
- जाप की माला खरीदते समय भलिभांति देख लें कि उसमें 108 मनके होने चाहिए और हर मनके के बीच में एक गांठ लगी होनी चाहिए। ताकि जाप करते समय संख्या में कोई त्रुटि न हो।
- जिस देवी-देवता का जाप कर रहे हैं उनकी छवि को मन में रखकर जाप करना चाहिए और नित्य कम से कम एक माला का जाप पूर्ण अवश्य करना चाहिए।