शिवलिंग के रूप में भगवान शिव जहां भी विराजमान हुए, वह प्रसिद्ध तीर्थस्थलों के रूप में जाने जाते हैं। वैसे तो शिव के अनगिनत शिवलिंग जगह-जगह स्थापित हैं लेकिन इनमें से 12 शिवलिगों को दिव्य ज्योतिर्लिंग का महत्व दिया जाता है। शिव के इन्हीं 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है घुष्मेश्वर ज्योतिर्लिंग। हिंदू धर्म में घुष्मेश्वर ज्योतिर्लिंग को अंतिम ज्योतिर्लिंग का दर्जा प्राप्त है। बाकी 11 ज्योतिर्लिंगों की तरह शिव के अंतिम ज्योतिर्लिंग घुष्मेश्वर की महिमा अपरमपार है। शिवमहापुराण में भी घुष्मेश्वर ज्योतिर्लिंग का उल्लेख है। मान्यता है कि घुष्मेश्वर में आकर शिव के इस स्वरूप के दर्शन से सभी तरह की मनोकामनाओं की पूर्ति होती हैं। आइए जानते हैं इस अंतिम ज्योतिर्लिंग की कहानी और यहां की खास बातें।
कहां है मंदिर
महाराष्ट्र राज्य के दौलताबाद में वेरुलगांव में घुष्मेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थित है। मंदिर को घृष्णेश्वर के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर अजंता और एलोरा की गुफाओं के निकट स्थित है। यह शिवलिंग शिव की अपार भक्त रही घुष्मा की भक्ति का स्वरूप है। उसी के नाम पर ही इस शिवलिंग का नाम घुष्मेश्वर पड़ा था। मान्यता है कि इस मंदिर का अंतिम जीर्णोद्धार 18 वीं शताब्दी में इंदौर की महारानी पुण्यश्लोका देवी अहिल्याबाई होलकर ने करवाया था। शहर के शोर-शराबे से दूर स्थित यह मंदिर शांति एवं सादगी से परिपूर्ण माना जाता है। हर साल देश-विदेशों से लोग यहां दर्शन के लिए आते हैं तथा आत्मिक शांति प्राप्त करते हैं।
शिव की भक्त घुष्मा की है कहानी
इस ज्योतिर्लिंग के बारे में एक पौराणिक कथा प्रचलित है जो कि इस प्रकार है। दक्षिण देश में देवगिरि पर्वत के पास सुधर्मा नाम का ब्राह्मण अपनी पत्नी सुदेहा के साथ निवास करता था। उनके जीवन का एक ही कष्ट था कि उन्हें कोई संतान नहीं थी। कई प्रयास के बाद भी उनके आंगन में बच्चे की किलकारी नहीं सुनाई पड़ी। तब ब्राह्मण की पत्नी सुदेहा ने छोटी बहन घुष्मा से विवाह अपने पति का विवाह करा दिया। घुष्मा भगवान शिव की परम भक्त थी। वह प्रतिदिन 100 पार्थिव शिव बनाकर पूरी भक्ति और निष्ठा से पूजा करती थी और फिर एक तालाब में उन्हें विसर्जित करती थी। उस पर भोलेनाथ की महान कृपा थी। समय के साथ उसने एक पुत्र को जन्म दिया। बच्चे के आने से घर में खुशी और उल्लास का माहौल छा गया लेकिन घुष्मा से मिली खुशी उसकी बड़ी बहन सुदेहा को रास न आई और वह उससे जलने लगी। उसका पुत्र सुदेहा को खटकने लगा और एक रात अवसर पाकर सुदेहा ने उसके पुत्र की हत्या करके उसी तालाब में फेंक दिया।
शिव की कृपा से जीवित हुआ पुत्र
इस घटना से पूरे परिवार में मातम छा गया सब विलाप करने लगे लेकिन शिवभक्त घुष्मा को अपनी भक्ति पर पूर्ण विश्वास था वह बिना किसी दुख विलाप के रोज की तरह उसी तालाब में सौ शिवलिंगों की पूजा कर रही थी। इतने में उसे तालाब से ही अपना पुत्र वापस आता दिखा। यह सब भगवान शिव की महिमा थी कि घुष्मा ने अपने मृत पुत्र को फिर से जीवित पाया। उसी समय स्वयं शिव वहां प्रकट होकर घुष्मा को दर्शन देते हैं।भगवान उसकी बहन को दंड देना चाहते थे लेकिन घुष्मा अपने अच्छे आचरण के कारण भगवान से अपने बहन को क्षमा करने की विनती करती है। अपनी अनन्य भक्त की प्रार्थना पर शिव ने घुष्मा से वरदान मांगने को कहा, तब घुष्मा कहती है कि मैं चाहती हूं कि आप लोक कल्याण के लिए हमेशा के लिए यहां पर बस जाएं। भक्त के नाम को जग में अमर करने के लिए शिव ने कहा कि मैं अपनी भक्त के नाम से यहां घुष्मेश्वर के नाम से जाना जाऊंगा। तब से यह जगत में शिव के अंतिम ज्योतिर्लिंग के तौर पर पूजा जाता है।
पूरी होती है यह मनोकामना
ज्योतिर्लिंग ‘घुष्मेश्वर’ के पास ही एक सरोवर भी है जो शिवालय के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि ज्योतिर्लिंग के साथ जो भक्त इस सरोवर के भी दर्शन करते हैं। भगवान शिव उनकी सभी इच्छाएं पूर्ण करते हैं। शास्त्रों के अनुसार जिस दंपत्ती को संतान सुख नहीं मिल पाता है उन्हें यहां आकर दर्शन करने से संतान की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि यह वही तालाब है जहां पर घुष्मा बनाए गए शिवलिंगों का विसर्जन करती थी और इसी के किनारे उसने अपना पुत्र जीवित मिला था। हर साल यहां सावन माह के दौरान लाखों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। आम दिनों में भी यहां भारी संख्या में लोग पहुंचते हैं।