ऋग्वेद के प्रथम श्लोक में ही जो रत्न धात्तमम् शब्द आया है।
इसका अर्थ आधिभौतिक के अनुसार अग्नि रत्नों या पदार्थों के धारक
अथवा उत्पादक से है। अत: यह सुस्पष्ट है कि रत्नों की उत्पत्ति में
अग्नि सहायक है तथा आधुनिक वैज्ञानिक भी इस बात को स्वीकार
करते हैं कि अधिकांशत: रत्न किसी-न-किसी रूप में ताप प्रक्रिया
अर्थात् अग्नि के प्रभाव के कारण ही हैं। जब विभिन्न तत्व रासायनिक
प्रक्रिया के द्वारा आपस में मिलते हैं बनते हैं। जैसे-स्फटिक, मणिभ,
क्रिस्टल आदि। इसी रासायनिक प्रक्रिया के बाद तत्व आपस में एक
जुट होकर विशिष्ट प्रकार के चमकदार आभायुक्त बन जाते हैं तथा
कई अद्भुत गुणों का प्रभाव भी समायोजित हो जाता है। यह निर्मित
तत्व ही रत्न कहलाता है जो कि अपने रंग रूप व गुणों के कारण
मनुष्य को अपनी तरफ आकर्षित करता है। यथा-
रमन्ते अस्मिन् अतीव अतः रत्नम् इति प्रोक्तंशब्द शास्त्र विशारदैः॥
रत्नों की उत्पत्ति का आधुनिक इतिहास
जैसा कि हमने पहले ही यह बात स्पष्ट कर दी है कि पृथ्वी के
अन्दर अग्नि के प्रभाव के कारण विभिन्न तत्व रासायनिक प्रक्रिया द्वारा
रत्न बनते हैं। अत: यह सुविदित है कि रत्न विभिन्न मात्रा में विभिन्न
रासायनिक यौगिक मेल से बनता है। मात्र किसी एक रासायनिक तत्व
से नहीं बनता। स्थान-भेद से विविध रासायनिक तत्वों के संयोग के
कारण ही रत्नों में रंग, रूप, कठोरता व आभा का अन्तर होता है।
खनिज रलों में मुख्यतः निम्न तत्वों का संयोग होता है-
कार्बन, अल्यूमीनियम, बेरियम, बेरिलियम, कैल्शियम, ताम्बा,
हाइड्रोजन, लोहा फासफोरस, मैंगनीज, पोटैशियम, गन्धक, सोडियम,
टिन, जस्ता, जिर्केनियम आदि।
रत्नों की उत्पत्ति का वैदिक इतिहास
जिस प्रकार रुदाक्ष की उत्पत्ति ब्रह्मा के अश्रु द्वारा, ज्वर की
उत्पत्ति भगवान् शिव के क्रोध द्वारा धर्मग्रन्थों में वर्णित है। ठीक उसी
प्रकार रत्नों की उत्पत्ति का भी अपना वैदिक इतिहास है। पुराणों तथा
अन्य प्राचीन ग्रन्थों में प्राप्त रत्नों की उत्पत्ति कथाओं का संक्षिप्त
विवरण निम्न प्रकार है-
रत्नानि बलादैत्याद्दधिचितोऽन्येदन्ति जातानि।
केचिद्भुव स्वभावद्वैचित्र्यं प्राहुरूपला नाम्॥
(बृहत् संहिता)
बहत् संहिता पुराणों पर आधारित आचार्य वाराहमिहिर द्वारा
स्वरचित सुन्दर ग्रन्थ है। वाराहमिहिर के इस ग्रन्थ में रत्नों की उत्पा
व गुण दोषों का सुन्दर वर्णन मिलता है।
राजा बलि की कथा
दैत्यराज राजा बलि की हड्डियों से रत्नों की उत्पत्ति हुई है।
दैत्यराज बलि बड़ा ही शक्तिशाली राजा था। तथा साथ ही दानवीर भी
था। एक बार राजा बलि यज्ञ कर ब्राह्मणों को दक्षिणा दे रहे थे। तभी
भगवान् विष्णु बौने (वामन) ब्राह्मण का रूप धारण कर राजा बलि से
मात्र साढ़े तीन पग ही पृथ्वी दान स्वरूप माँगने आये। राजा बलि ने प्रेम
पूर्वक, श्रद्धा व भक्ति से ओतप्रोत होकर साढ़े तीन पग पृथ्वी वामन
रूप विष्णु को देना स्वीकार किया। तत्पश्चात् भगवान् विष्णु ने अति
विशालकाय स्वरूप धारण कर अपने तीन पग में ही तीनों लोक पृथ्वी,
आकाश व पाताल को नाप दिया तथा शेष आधा पग दैत्यराज बलि की
पीठ पर रख कर पूरा किया। अतः भगवान् विष्णु के चरण स्पर्श से
दैत्यराज का शरीर रत्नों के समान आभायुक्त हो गया। तत्पश्चात्
देवेन्द्र इन्द्र ने अपने वज्र प्रहार से राजा बलि के शरीर के टुकड़े-टुकड़े
कर दिए जिससे रत्नों की उत्पत्ति हुई। तत्पश्चात् भगवान् शंकर उन
रत्नों को अपने त्रिशूलों पर स्थापित कर उनमें नव ग्रह व बारह राशियों
को समायोजित कर दिया और पृथ्वी पर चारों दिशाओं में बिखेर
दिया। अत: जहाँ-जहाँ ये रत्न गिरे वहाँ-वहाँ ही रत्नों के भण्डार का
पृथ्वी में सृजन हो गया।
२१ प्रमुख रत्न
राजा बलि के अंगों-प्रत्यंगों से ८४ प्रकार के
रत्न-उपरत्न उत्पन्न हुए। जिनमे २१ प्रमुख रत्न व माणिक्य निम्न अंगो-प्रत्यंगों से उत्पन्न हए-
१. हीरा-मस्तक से उत्पन्न हूआ। जो कि सभी रत्नों में श्रेष्ठ
माना जाता है ।
२. माणिक्य – यह बलि के रक्त से उत्पन्न हूआ है जों कि
पृथ्वी पर गिरा ।
३. प्रवाल-यह राजा बलि का मस्तक फटने पर जो रक्त
समद्र में गिरा उससे उत्पन्न हुआ ।।
४.मोती-यह बलि के मन से प्रकट हुआ।
५. पन्ना-यह राजा बलि के पित्त के पृथ्वी पर गिरने सें उत्पन्न हुआ ।
६. नीलम्-इसकी उत्पत्ति बलि के नेत्र सें हुई ।
७. गोमेद-यह रत्न बलि के मेदा से उत्पन्न हुआ ।।
८. लहसनिया-यह राजा बलि के जनेऊ से उत्पन्न हुआ ।
९. पुखराज-यह रतन राजा बलि के मास से उत्पन्न हुआ ।
१०. फिरोजा-यह राजा बलि के नसां से उत्पन्न हआ ।।
११. चन्दृकान्त-यह राजा बलि के नेत्रों के प्रकाश से उत्पन्न
हआ ।
१२. घृतमणि-यह राजा बलि के काख से उत्पन्न हआ।
१३. तैलमणि-यह राजा बलि की त्चचा से ऊत्पन्न हआ ।
१४.भिष्मक-राजा बलि का सिर धड से काटकर पृथ्वी पर ।
गिरने से उत्पन्न हुआ ।
१५. उपलकमणि-यह राजा बलि के कफ से उत्पन्न हुआ ।
१६. स्कटिकमणि-यह राजा बलि के पसीने से उत्पन्न हुआ ।
१७. पारसमणि-यह राजा बलि के ह्रदय फटने से उल्पन्न
हुआ ।
१८. अलूकमणि-यह राजा बलि की जीभ सें उत्पन्न हुआ।
१९. लाजावर्तमणि-यह राजा बलि के कैश व मूकूट से
बना ।
२०-मासरमणि-यह राजा बलि के मल से उत्पन्न हुआ।।
२९-भीष्म पाघाण या ईसब संग-यह मणि राजा बलि के
वीर्य से उत्पन्न हुआ।
इसी प्रकार ८४ में से शेष रत्न व मणि राजा बलि के भिन्न -भिन्न अंगों के पृथ्वी पर गिरने से उत्पन्न हुए।
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