श्रावण माह में श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं और विभिन्न नदियों के जल से अभिषेक करते हैं।
नगर से महज एक किलोमीटर दूर अति प्राचीन स्वयंभू अनादि कल्पेश्वर महादेव का मंदिर एक छोटीसी पहाड़ी की गोद में स्थित है। प्राकृतिक सुंदर से परिपूर्ण यह स्थल जनजन की आस्था और श्रद्धा का केंद्र है। यहां विराजित शिवलिंग स्वयंभू है। यह राजा नल-दमयंती की तपस्या से प्रसन्न होकर प्रकट हुए थे। इस स्थान पर कनक पर्वत, कलेवा कुंड और पर्वत पर हनुमान जी के पदचिह्न, विश्राम करते हुए हनुमान जी भी विराजमान हैं। पर्वत में भृतहरि गुफा भी है, जो उज्जैन तक निकलती है। इस तीर्थ स्थल के पौराणिक महत्व और मनोहारी प्राकृतिक सौंदर्य के कारण श्रद्धालु दूर-दूर से आते हैं। श्रावण माह में श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं और विभिन्न नदियों के जल से अभिषेक करते हैं। भगवान की शाही सवारी भी नगर में हर वर्ष निकलती है। महाशिवरात्रि पर मेला भी आयोजित होता है।
पुजारी जितेंद्र व्यास ने बताया कि यह मंदिर तत्कालीन देवास स्टेट की रियासत के समय उनके पूर्वजों ने बनाया था। तत्कालीन देवास स्टेट के राजा विक्रमसिंह ने उक्त मंदिर में आकर पुत्र रत्न की मांग की थी। उनके स्वजन यहां आते रहते हैं। हनुमान जी जब संजीवनी बूटी लेकर जा रहे थे, तब इस पर्वत पर कुछ क्षण के लिए रुके थे। आज भी उनके पैरों के निशान हैं।
धरोला की पहाड़ियों के बीच स्वयंभू अनादि कल्पेश्वर महादेव मंदिर का इतिहास पुराना है। शास्त्रों के अनुसार स्वयंभू से आशय भक्त की प्रेरणा उत्पन्ना होने वाले शिवलिंग को स्वयंभू शिवलिंग कहा जाता है। कहा जाता है कि राजा नल एवं दमयंती ने विपत्ति काल में इसका चमत्कार देखकर अपने वजन के बराबर स्वर्ण का तुलादान किया था।
कागजों में अटकी कोटेश्वर तीर्थ विस्थापन की प्रक्रिया
शैलेंद्र लड्ढा नसुसारी (धार) धार जिले के निसरपुर के समीप स्थित कोटेश्वर तीर्थ गुजरात में नर्मदा नदी पर बने बांध सरदार सरोवर के बैक वाटर में डूबने वाला बड़ा क्षेत्र है। यहां साल 1738 में बना कोटेश्वर महादेव मंदिर शासन संधारित है। पिछले चार साल से यह तीर्थ करीब नौ माह तक डूब में रहता है। तीर्थस्थल पर ऐसे नौ मंदिर हैं, जिसमें जग के तारणहार जलमग्न हो जाते हैं। वहीं जिम्मेदार विभाग तीर्थ को बसाने को लेकर अब भी कागजों में ही अटका हुआ है। कोटेश्वर तीर्थ का उल्लेख नर्मदा पुराण में है। तीर्थ पर संवत 1808 में कृपाल पुरी महाराज ने कोटेश्वर महादेव मंदिर बनवाया था। मंदिर के गर्भगृह में प्राचीन शिवलिंग के पीछे थोड़ी ऊंचाई पर एक सिंहासन पर मां पार्वती की प्राचीन मूर्ति विराजित है। यहां आने वाले साधुसंत व नर्मदा परिक्रमावासी कहते हैं कि इस तरह के बहुत कम मंदिर हैं, जहां भोलेनाथ से ऊंचाई पर मां पार्वती विराजित हैं।
प्रकिया चल रही है
एनवीडीए लोक निर्माण विभाग कुक्षी के कार्यपालन यंत्री राजेंद्र गुप्ता ने बताया कि अगस्त के पहले सप्ताह में भोपाल व इंदौर विभाग के वरिष्ठ अधिकारी का दौरा है। इसके बाद तय हो जाएगा कि तीर्थ को कहां बसाया जाए।
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