हमारे शास्त्रों में पूजा के लिए शंख का विशेष महत्व माना गया हैं। शंख के द्वारा लगभग सभी देवी-देवताओं को जल से स्नान कराना शुभ माना जाता हैं। वहीं दूसरी तरफ सिर्फ भगवान शिव को ही शंख के द्वारा जल चढ़ाना पूरी तौर से वर्जित माना गया हैं। हम सभी भक्तगण ये जानते है कि भगवान शिव को जल चढ़ा कर आसानी से प्रसन्न किया जा सकता हैं। पर जब बात शंख से जल चढ़ाने की आती है तो यह विधि पूर्ण रूप से निषेध मानी जाती हैं। इसके पीछे शिव पुराण में एक कथा का वर्णन मिलता हैं। आइये जानते हैं क्यों वर्जित हैं शिवलिंग पर शंख से जल चढ़ाना।
शिव पुराण की कथा- शिवपुराण के अनुसार, दैत्यराज दंभ एक बहुत बलसाली दैत्य था। परन्तु उसको कोई संतान सुख नहीं था। जिसपर उसनें भगवान श्री हरि विष्णु जी को प्रसन्न कर अजय पुत्र प्राप्ति की अपनी कामना पूरी की। कुछ समय बाद दैत्यराज दंभ के यहां एक पुत्र ने जन्म लिया। जिसका नाम शंखचूड़ रखा गया। शंखचूड़ ने बड़े होकर पुष्कर क्षेत्र में ब्रह्मा जी की तपस्या किया। जिसपर ब्रह्मा जी प्रकट होकर शंखचूड़ से वरदान मांगने को कहा। शंखचूड़ ने त्रिलोक विजय होने का वरदान मांगा। ब्रह्मा जी ने उसे त्रिलोक विजय हेतू श्रीकृष्ण कवच प्रदान किया। इसके अलावा ब्रह्मा जी ने शंखचूड़ को धर्मध्वज की कन्या तुलसी से विवाह करने की आज्ञा भी दी।
तुलसी से विवाह के बाद शंखचूड़ तीनो लोको में अपना आधिपत स्थापित कर लिया। जिसपर देवता गण त्राहिमाम त्राहिमाम करते हुए श्री विष्णु जी से मदद मांगी। परन्तु श्री विष्णु जी ने स्वयं ही दंभ को ऐसे अजय पुत्र का वरदान दिया था। इसलिए उन्होंने भगवान शंकर जी के पास जा कर अपनी याचना कहने को कही। जिसपर सारे देव भगवान शंकर जी के पास गयें और अपनी व्यथा बताई। भगवान शिव देवताओं के शंकट समाप्त करने हेतू दैत्यराज शंखचूड़ का वध करने हेतू चल दिये। परन्तु भगवान शिव देवी तुलसी की अपने पति शंखचूड़ की लम्बी ऊर्म की तपस्या और ब्रह्मा जी द्वारा रक्षण कर रहा श्रीकृष्ण कवच के कारण शंखचूड़ का बाल भी बाका न कर सके। इस उत्पन्न हुए समस्या के लिए भगवान श्री विष्णु जी ने ब्राह्मण रूप बना कर शंखचूड़ से उसका श्रीकृष्ण कवच दान में ले लिया। इसके बाद उन्होंने शंखचूड़ का भेष बनाकर तुलसी के शील का हरण किया। अब भगवान शिव ने अपने त्रिशूल से शंखचूड़ से वध कर डाला। मान्यता है कि शंखचूड़ के अंत पश्चात् उसके हड्डियों से शंख का निर्माण हुआ। इसलिए शंख से सभी देवी-देवताओं का जलाभिषेक होता है परन्तु शिव ने शंखचूड़ का वध किया था। इसलिए शिवलिंग पर जलाभिषेक के समय शंख का उपयोग वर्जित माना गया हैं।