श्री अक्रूरेश्वर महादेव उज्जैन

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श्री अक्रूरेश्वर महादेव मंदिर, अनन्य एकमात्र अर्धनारीश्वर दिव्य लिंग स्वरूप श्री अक्रूरेश्वर महादेव, भगवान ब्रह्मा एवम् श्री कृष्ण तथा शिवगण भृगिरिटी द्वारा पूजित महादेव शिव का यह स्थान उनके विशिष्ठ स्थानों में से एक है । मध्यप्रदेश राज्य के और उज्जैन नगर में श्री महाकालेश्वर मंदिर से यह हा ३ km पर स्थित, श्री अक्रूरेश्वर महादेव मंदिर भगवान शिव का प्रमुख मंदिर है। पुराणों, पौराणिक ग्रन्थ स्कंदपुराण, महाभारत, श्रीमद्भागवत, ब्रह्मपुराण, अग्निपुराण, ब्रह्मवैवर्तपुराण आदि में भी प्रत्यक्ष रूप से श्री अक्रूरेश्वर महादेव एवं अंकपाद तीर्थ का वर्णन मिलता है । स्वयंभू, भव्य और अर्धनारीश्वर होने के कारण श्री अक्रूरेश्वर महादेव की अत्यन्त पुण्यदायी महत्ता है। इनके दर्शन मात्र से ही मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है, ऐसी मान्यता है। बुद्धि को सौम्यता प्रदान करने वाले है श्री अक्रूरेश्वर महादेव।

धर्म संबंधी जानकारी
सम्बद्धताहिन्दू धर्म
देवताशिव/ शंकर/ महाकालेश्वर
अवस्थिति जानकारी
अवस्थितिउज्जैन, मध्य प्रदेश, भारत
वास्तु विवरण
शैलीहिन्दू
निर्मातास्वयंभू; जीर्णोद्धारक उज्जैन शासक/मराठा+विक्रमादित्य
स्थापितअति प्राचीन

यह मंदिर अंकपाद तीर्थ और अक्रूरेश्वर तीर्थ का हिस्सा है  इस मंदिर का इतिहास भी विक्रमादित्य के काल से रहा है और यह दिव्य स्थान अवंतिका के सबसे पुराने पुण्य क्षेत्रो में से एक है, वर्तमान मंदिर का जीर्णोद्धार मराठाओं के काल में हुआ, परमारकालीन और उस से पूर्व के अवशेष भी क्षेत्र से पूर्व में प्राप्त किये गए हैं ।

स्कन्द पुराण के अध्याय ३१ एवं ३२ के अनुसार, अवंतिकापुरी स्थित पवित्र कुशस्थली क्षेत्र में श्री अक्रूरेश्वर तीर्थ, जहाँ स्वयं ब्रह्मा जी ने यज्ञ-तपस्या की एवं उन्हें सिद्धि प्राप्त हुई, जहाँ ब्रह्मदेव को महादेव ने कपाली स्वरुप में दो बार दर्शन दिए (तदन्तर मन्वन्तर एवं वैवस्तव मन्वन्तर)। यहाँ भगवान ब्रह्मा ने स्वयं मन्दाकिनी कुंड अविष्कृत किया। (भगवान ब्रह्मा के कुशस्थली क्षेत्र की वजह से ही पवित्र अवंतिका नगरी को कुशस्थली नाम से भी जाना जाता है )

शृणुव्याससमाहातीर्थ पुण्यंयद् ब्राह्मणार्चितम।

अक्रूरेश्वरमित्याख्यंयत्रसिद्धः पितामहः।।

(-स्कन्द पुराण, पंचम खंड, एकत्रिंशोअध्यायः, श्लोक १)

स्कन्द पुराण के अध्याय ३३ के अनुसार, इसी मन्दाकिनी कुंड के समीप ही रामजनार्दन (श्री कृष्ण एवं बलराम) का निवास स्थान भी था। स्कन्द पुराण के अनुसार, यमराज को पराजित करने के पश्चात् श्री कृष्ण ने स्वयं इस क्षेत्र को वरदान दिया है कि इस अंकपाद तीर्थ पर राम-जनार्दन का दर्शन करने पर मृत्यु ग्रस्त होने पर यम दर्शन नहीं करेंगे।

अवन्त्यामअंकपादख्ये पश्येरामजनार्दनौ।

यथोदर्शनमात्रेण यमलोकंनपश्यति।।

(-स्कन्द पुराण, पंचम खंड, त्रयस्त्रिंशोअध्यायः, श्लोक १)

ब्रह्मा जी स्कन्द पुराण में कहते है-

उज्जैनीति वैनाम कुशस्थाल्यानिवेशितम् ।

कुण्डंमन्दाकिनीतत्र मयाकृतमनन्तरम् ।।

(-स्कन्द पुराण, पंचम खंड, द्वात्रिंशोअध्यायः, श्लोक २२)

ब्रह्मा जी-“मैंने इस कुशस्थली क्षेत्र में एक कुण्ड आविष्कृत किया। इस कुण्ड के निकट ही मन्दाकिनी विराजमान हैं। यहाँ स्नान करने वाले सभी विप्रगण पापमुक्त हो जाते हैं। इस कुण्ड के चारों ओर 4 शुभ अर्धघट स्थापित किये हैं। कार्तिक एवं माघी पूर्णिमा के दिन स्थापित होने पर ये सब विद्या प्रदान करते हैं। (पूर्वस्थ पहला घट – ऋग्वेद , दूसरा दक्षिणस्थ – यजुर्वेद, पश्चिमस्थ- सामवेद तथ चतुर्थ उत्तर दिक्स्थ- अथर्ववेद स्थापित किये गए)।” दीर्घवर्णन के अनुसार, आदि पुरुष चक्री (कृष्ण) और हली (बलभद्र) के अलावा कुंड के निकट ही आदिदेव, पुरुषोत्तम, विश्वरूप, गोविन्द, केशवरूप, पंचमूर्ति भी विराजमन है। इसकी महिमा कहते हुए देवर्षि सनत्कुमार अध्याय ३३ में कहते है की विष्णु के चार क्षेत्र हैं- शंखी, विश्वरूप, गोविन्द तथा चक्री। यह अंकपाद तीर्थ क्षेत्र भगवन विष्णु का पंचम क्षेत्र है। स्कन्द पुराण के अनुसार इसी स्थान पर पूर्वकाल में महादेव के गण भृगिरीटि की तपस्या एवं महादेव तथा माता शक्ति के संयुक्त अर्धनारीश्वर ब्रह्म स्वरुप का भव्य वर्णन है।

अंकपादाग्रतो लिंगम सप्त कल्पानुगं महत ।

यस्य दर्शनमात्रेण शुभाम् बुद्धिः प्रजायते । ।

(-स्कन्द पुराण, पंचम खंड, एकोनचत्वारिंशोअध्यायः, श्लोक २६)

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