त्र में 10 महाविद्या का विशेष महत्व हैं। इनकी उपासना व साधना से विशेष फल की प्राप्ति होती हैं। 10 महाविद्या में से सात महाविद्या दतिया में अलग-अलग स्थानों पर विराजमान है। छह महाविद्याओं के मंदिर दतिया शहर में व सातवी महाविद्या का मंदिर बड़ौनी कस्बे में है। हिंदू धर्म में दशावतार को भी महाविद्याओं का अवतार माना जाता है। पं. ललित बिहारी व्यास बताते है कि दस महाविद्या देवी दुर्गा के दस रूप हैं। इन्हीं 10 रूपों से 10 अवतार जुड़े हैं। इन्हें महाविद्या का ही अवतार माना जाता है। तांत्रिक साधकों द्वारा इन्हें पूजा जाता है। माना जाता है कि यह अपने भक्तों की मनोकामनाएं तत्काल पूर्ण करतीं हैं।
यह हैं दस महाविद्याएं: काली, तारा, छिन्नमस्ता, षोडशी, भुवनेश्वरी, त्रिपुर भैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी व कमला। इन देवियों को दस महाविद्या कहा जाता हैं। इनका संबंध भगवान विष्णु के दस अवतारों से हैं। मसलन भगवान श्रीराम को तारा का तो श्रीकृष्ण को काली का अवतार माना जाता हैं।
कौन सी महाविद्या कहां विराजमान
धूमावती: श्री पीतांबरा पीठ
बगलामुखी: श्री पीतांबरा पीठ पर
तारा: पंचम कवि की टोरिया पर
काली: हनुमान गढ़ी
महात्रिपुर सुन्दरी: बक्सी के शंकर जी मंदिर, भांडेर रोड
छिन्नमस्ता: बड़ौनी कस्बा
भैरवी: गांगौटिया मंदिर, सीता सागर तालाब के पास
सती से हुई महाविद्या की उत्पत्ति
पं. व्यास बताते हैं कि देवी भागवत पुराण में उल्लेख है कि महाविद्या की उत्पत्ति भगवान शिव व उनकी प|ी सती से हुई। सती के पिता दक्ष प्रजापति ने भगवान शिव का अपमान करने के उद्देश्य से यज्ञ का आयोजन किया। जिसमें भगवान शिव व सती को आमंत्रित नहीं किया गया। सती पिता के यज्ञ में जाने के लिए जिद करने लगी। शिव ने इसे अनसुना कर दिया। तब सती ने काली का भयानक रूप धरा। जिसे देखकर भगवान शिव भागने लगे। पति को डरा जानकर माता सती ने उन्हें रोका। भगवान शिव जिस दिशा में भी जाने का प्रयास करते। माता सती का नए रूप का विग्रह उन्हें रोकता। दस दिशाओं में रोकने के सती ने दस रूप धरे। यही दस रूप दस महाविद्या कहलाती हैं।
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