21 जुलाई को पूर्णिमा तिथि, जानें शुभ मुहूर्त और राहुकाल का समय

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21 July 2024 का दैनिक पंचांग -: 21 जुलाई 2024 को आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि है। इस तिथि पर उत्तराषाढ़ा नक्षत्र और विष्कंभ योग का संयोग रहेगा। दिन के शुभ मुहूर्त की बात करें तो रविवार को अभिजीत मुहूर्त 11:59 − 12:54 मिनट तक रहेगा। राहुकाल शाम 17:31 -19:13 मिनट तक रहेगा। चंद्रमा धनु राशि में मौजूद रहेंगे। 

हिंदू पंचांग को वैदिक पंचांग के नाम से जाना जाता है। पंचांग के माध्यम से समय और काल की सटीक गणना की जाती है। पंचांग मुख्य रूप से पांच अंगों से मिलकर बना होता है। ये पांच अंग तिथि, नक्षत्र, वार, योग और करण है। यहां हम दैनिक पंचांग में आपको शुभ मुहूर्त, राहुकाल, सूर्योदय और सूर्यास्त का समय, तिथि, करण, नक्षत्र, सूर्य और चंद्र ग्रह की स्थिति, हिंदूमास और पक्ष आदि की जानकारी देते हैं।

तिथिपूर्णिमा15:43 तक
नक्षत्रउत्तराषाढ़ा24:04 तक
प्रथम करण बावा15:43 तक
द्वितीय करणबालवा26:29 तक
पक्षशुक्ल 
वाररविवार 
योग विष्कंभ21:07 तक
सूर्योदय05:40 
सूर्यास्त19:13 
चंद्रमा  धनु 
राहुकाल17:31 − 19:13 
विक्रमी संवत्2081  
शक संवत1944  
मासआषाढ़ 
शुभ मुहूर्तअभिजीत11:59 − 12:54

पंचांग के पांच अंग


तिथि
हिन्दू काल गणना के अनुसार ‘चन्द्र रेखांक’ को ‘सूर्य रेखांक’ से 12 अंश ऊपर जाने के लिए जो समय लगता है, वह तिथि कहलाती है। एक माह में तीस तिथियां होती हैं और ये तिथियां दो पक्षों में विभाजित होती हैं। शुक्ल पक्ष की आखिरी तिथि को पूर्णिमा और कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि अमावस्या कहलाती है।

तिथि के नाम- प्रतिपदा, द्वितीया, तृतीया, चतुर्थी, पंचमी, षष्ठी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी, अमावस्या/पूर्णिमा।

वार: वार का आशय दिन से है। एक सप्ताह में सात वार होते हैं। ये सात वार ग्रहों के नाम से रखे गए हैं – सोमवार, मंगलवार, बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार, शनिवार, रविवार। 

योग: नक्षत्र की भांति योग भी 27 प्रकार के होते हैं। सूर्य-चंद्र की विशेष दूरियों की स्थितियों को योग कहा जाता है। दूरियों के आधार पर बनने वाले 27 योगों के नाम – विष्कुम्भ, प्रीति, आयुष्मान, सौभाग्य, शोभन, अतिगण्ड, सुकर्मा, धृति, शूल, गण्ड, वृद्धि, ध्रुव, व्याघात, हर्षण, वज्र, सिद्धि, व्यातीपात, वरीयान, परिघ, शिव, सिद्ध, साध्य, शुभ, शुक्ल, ब्रह्म, इन्द्र और वैधृति।

करण: एक तिथि में दो करण होते हैं। एक तिथि के पूर्वार्ध में और एक तिथि के उत्तरार्ध में। ऐसे कुल 11 करण होते हैं जिनके नाम इस प्रकार हैं – बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज, विष्टि, शकुनि, चतुष्पाद, नाग और किस्तुघ्न। विष्टि करण को भद्रा कहते हैं और भद्रा में शुभ कार्य वर्जित माने गए हैं।

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