7 प्रमुख अघोर पीठ!
भगवान शिव का एक रूप अघोर भी है। पृथ्वी लोक पर अघोरियों के रूप में साक्षात शिव ही विचरण करते हैं। इन अघोरियों का अघोर पंथ हिंदू धर्म का एक संप्रदाय है। इसका पालन करने वालों को अघोरी कहते हैं। इसी क्रम में आज हम आपकों भारत में मौजूद कुछ ७ प्रमुख अघोर पीठ के संबंध में रूबरू करा रहें हैं।
१.विंध्याचल-
विंध्याचल पर्वत पर विंध्यवासिनी माता का एक प्रसिद्ध मंदिर है। कहा जाता है कि महिषासुर वध के पश्चात् माता दुर्गा इसी स्थान पर भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण हेतू सदा-सदा के लिए निवास करने लगी। मान्यता है कि भगवान राम अपने बनवास के दौरान अपनी पत्नी सीता के साथ यहां पर आए थें और माता का तप किया था। कहा जाता है कि इस पर्वत पर अनेक गुफाएं हैं जिनमें आज भी अनेक साधक, सिद्ध महात्मा, अवधूत, कापालिक आदि अपने अघोर तपस्या में लिन आसानी से दिख जाते हैं।
२.तारापीठ-
तंत्र के संबंध में तारापीठ को बहुता पूजनीय स्थान माना गया हैं। यहां सती के रूप में तारा माता का मंदिर है और इसी मंदिर के पीछे एक श्मशान है। मान्यता है कि इस मंदिर का निमार्ण महर्षि वशिष्ठ ने की थी। और अपने घोर तपस्या से माता को प्रसन्न नही कर सके थे। क्योंकि तारा माता को सिर्फ वामाचार साधना विधि ही प्रिय है। जिसकों छोड़ कर माता तारा कोई और साधना से प्रसन्न नही होती है। इस पीठ के प्रमुख अघोराचार्य में बामा चट्टोपाध्याय का नाम लिया जाता है। इन्हें बाताखेपा कहा जाता था।
३.कोलकाता का काली मंदिर-
कोलकाता के उत्तर दिशा में विवेकानंद पुल के समिप स्थित माँ कालिका का विश्वप्रसिद्ध मंदिर है जिसे रामकृष्ण परमहंस की आराध्या देवी माना जाता हैं। इस मंदिर को दक्षिणेश्वर काली मंदिर के नाम से भी जाना जाता हैं और स्थानिय लोग इस पूरे क्षेत्र को कालीघाट कहते हैं। मान्यता है कि इस स्थान पर सती देह के दाहिने पैर की ४ उंगलियां गिरी थीं। यह स्थान सती के शक्तिपीठ से जुड़ा हुआ हैं। इसलिए अघोरियों के लिए यह स्थान अत्यन्त महत्वपूर्ण है।
४.चित्रकूट-
इस तीर्थ स्थान को अघोर पथ के आचार्य दत्तात्रेय की जन्मस्थली के नाम से भी जाना जाता हैं। मान्यता है कि औघड़ों की कीनारामी परंपरा की उत्पत्ति यहीं से मानी गई है। इस स्थान पर माँ अनुसूया का आश्रम है। और अघोराचार्य शरभंंग का आश्रम भी हैं। यहां का स्फटिक शिला नामक श्मशान अघोरपंथियों का प्रमुख स्थल है। इसके पीछे स्थित घोरा देवी का मंदिर अघोर पंथियों का साधना स्थल है।
५. हिंगलाज धाम-
हिंगलाज धाम अघोर पंथ के प्रमुख स्थलों में शामिल है। यह हिंगोल नदी के किनारे स्थित है। माता के ५२ शक्तिपीठ में इस पीठ को भी गिना जाता है। अचल मरूस्थल में होने के कारण इस स्थल को मरूतीर्थ भी कहा जाता है। इसे भावसार क्षत्रियों की कुलदेवी माना जाता है। यह हिस्सा पाकिस्तान में चले जाने के बाद वाराणसी की एक गुफा क्रीं कुंड में बाबा कीनाराम हिंगलाज माता की प्रतिमूर्ति स्थापित की थी। कीनाराम जी के बारे में कहा जाता है कि ये अघोर गुरूओं में प्रमुख माने जाते हैं।
६.कपालेश्वर मंदिर-
भारत के दक्षिण दिशा की ओर बसा चेन्नई नगर में औघड़ों का कपालेश्वर मंदिर स्थित हैं। इस मंदिर के प्रांगण में एक अघोराचार्य की मुख्य समाधि है। इसके साथ अन्य और भी सिद्ध महात्माओं की भी समाधि स्थित हैं। इस मंदिर कपालेश्वर की पूजा औघड़ विधि-विधान से की जाती है।
७.कालीमठ-
जगदगुरू शंकराचार्य ने इस मंदिर की स्थापना किये थे। इन्हें देवी का महान साधक कहा जाता है। यह स्थान हिमालय की तराइयों में नैनीताल से आगे गुप्तकाशी से भी ऊपर कालीमठ नामक एक अघोर स्थल है। यहां अनेक साधक मिल जाते है। किन्तु इसके ५००० हजार फीट ऊपर एक एैसी पहाड़ी हैं जहां पर पहुंचना नामुकिन है। इस स्थान को काल शिला कहा जाता है और यहां पर मुख्य रूप से अघोरियों का वास है।