एक समय पार्वती ने महान तप किया। उनके तप से तीनों लोक जलने लगे। इसे देखते हुए ब्रह्मा पार्वती के पास आए और उनसे कहा कि तुम किस कारण से तप कर रही हो, तुम जो भी चाहो वह मुझसे मांग लो। पार्वती ने कहा कि शिव मुझे काली कहते हैं मुझे गौर वर्ण चाहिए।
इस पर ब्रह्मा ने कहा कि कुछ समय के बाद तुम्हारा मनोरथ पूरा होगा। ब्रह्मा के वचन सुनकर पार्वती को क्रोध आ गया, उनके क्रोध के कारण एक सिंह उत्पन्न हुआ। सिंह भूखा था और पार्वती को खाने के लिए आगे बढ़ा परंतु पार्वती के तप और तेज के कारण वह उन्हें खा नहीं सका और जाने लगा। उसे जाता देख पार्वती को उस पर दया आ गई और उन्होंने दूध की अमृत वर्षा की। इसके बाद सिंह फिर पार्वती के पास आया और उनसे कहा कि मैं माता को मारने का पापी हूं, मुझे नर्क में जाना पड़ेगा। सिंह की बात सुनकर माता पार्वती ने उससे कहा कि तुम महाकाल वन में आओ और कंटेश्वर महादेव के पास एक उत्त्म लिंग है। उसका पूजन और दर्शन करो, तुम्हें पाप से मुक्ति मिलेगी। माता पार्वती के वचन सुनकर सिंह महाकाल वन में आया और यहां आकर उसने शिवलिंग के दर्शन किए और दिव्य देह को प्राप्त किया।
ममता के कारण पार्वती भी वहां पहुंचीं और सिंह के दर्शन के कारण शिवलिंग का नाम सिंहेश्वर रख दिया। उसी दौरान ब्रह्मा भी वहां पहुंचे और पार्वती से कहा कि तुम्हारे क्रोध के कारण यह सिंह उत्पन्न हुआ है यह तुम्हारा वाहन होगा। इसके बाद पार्वती का गौर वर्ण हो गया।
मान्यता है कि जो भी मनुष्य सिंहेश्वर के दर्शन और पूजन करेगा वह अक्षय स्वर्ग में वास करेगा। दर्शन मात्र से सभी पापों का नाश होगा और उसकी सात पीढ़ी पवित्र हो जाएंगी।
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