कलयुग के अंत से क्या है संबंध?
कहाँ मौजूद है शिवगण नंदी की प्रतिमा, जो प्रतिदिन अपना आकार बढ़ा रही है?
क्यों इस मंदिर में कौवे नही कर पाते है प्रवेश?
क्या कलयुग के अंत में जाग उठेंगे नंदी?
देशभर में भगवान शिव के कई करिश्माई मंदिर मौजूद हैं जो हमारे देश के ऐतिहासिक धरोहर है उन्हीं में से एक आंध्र प्रदेश के कुरनूल जिले में स्थित यागंती उमा महेश्वर मंदिर अपने अद्भुत रहस्यों के लिए प्रसिद्ध है। यह मंदिर कुरनूल शहर से ५२ किमों की दूरी पर स्थित है। यह आस-पास के क्षेत्रों में मौजूद मंदिरों में बेहद खास है। यहां पर ऐसी कहानी प्रचलित है जिसको जानने एवं देखने के बावजुद भी विश्वास नही होता है। कि वहां मौजूद पत्थर के नंदी बैल का आकार साल दर साल बढ़ता जा रहा है। इसके कारण मंदिर प्रशासन को वहां मौजूद एक खम्बे को भी हटाना पड़ा। वहां रहने वाले लोगों के मुताबिक पहले वो नंदी बैल की परिक्रमा आसानी से कर लेते थे लेकिन बढ़ते आकार के कारण अब वो संभव नहीं है।
यहां पर एक बात और भी बहुत चौकाने वाली यह है कि मंदिर परिसर में कभी भी कौवे नहीं आते हैं। ऐसी मान्यता है कि ‘‘तपस्या के समय विघ्न डालने की वजह से ऋषि अगस्त ने कौवों को यह श्राप दिया था कि अब कभी भी कौवे मंदिर प्रांगण में नही आ सकेंगे।’’
इसके अलावा वहां पर मौजुद पुष्करिणी भी अपने आप मे एक रहस्य संजोया हुआ है। इस मंदिर में नंदी प्रतिमा के मुख से लगातार पानी गिरता रहता है, बहुत कोशिशों के बाद भी आज तक कोई पता नही लगा सका की पुष्करिणी में पानी कैसे आता है। जिसकी जांच-पड़ताल करने पर मालूम चला है कि यहां पर ऐसी मान्यता है कि ‘‘ऋषि अगस्त्य ने भगवान शिव की आराधना करने से पूर्व स्नान हेतू पुष्करिणी में यह सरोवर का निर्माण किया था।’’
जिसके बाद नंदी रूपी प्रतिमा के मुख से आज तक निरंतर जल प्रवाह हो रहा है। यहां एक कथा से इस स्थान का अस्तित्व का मालूम चलता है। जिसमें ‘‘ऋषि अगस्त्य इस स्थान पर भगवान वेंकटेश्वर का मंदिर बनाना चाहते थे। मंदिर में मूर्ति की स्थापना के समय मूर्ति के पैर के अंगुठे का नाखून टूट गया जिसका कारण जानने के लिए उन्होेंने भगवान शिव की घोर तपस्या की उसके बाद भगवान शिव के आशीर्वाद से ऋषि अगस्त्य ने इस स्थान पर उमा महेश्वर मंदिर की स्थापना की।’’
१५वीं शताब्दी में हुआ था इस मंदिर का पून:निर्माण-
इस मंदिर का निर्माण १५वीं शताब्दी में किया गया था। संगमा राजवंश राजा हरिहर बुक्का ने इस मंदिर को बनवाया था।
पुरातत्व विभाग के मुताबिक-
पुरातत्व विभाग ने बताया कि ये मूर्ती हर २० साल में १ इंच बढ़ी हो जाती है। उन्होेंने बताया कि इस मूर्ती पर शोध किया गया था और जिस पत्थर से इस मूर्ती को बनाया गया था उसकी प्रकृति में बढ़ना निश्चित है। ऐसा बताते हैं कि पहले इस मूर्ती के आस-पास के लोग इसकी परिक्रमा करते थे जो अब संभव नहीं है।
गौरतलब है कि यह कहना मुश्किल होगा कि क्या वाकई में पत्थरों की प्रकृति की वजह से नंदी की प्रतिमा बढ़ रही है या फिर इसके पीछे कोई रहस्य है आमजनमानस का कहना है कि विशालकाय होते नंदी को देखकर यह कहना गलत नहीं होगा कि वो दिन दूर नहीं है। जब नंदी महाराज जाग उठेंगे और कलयुग की लीला समाप्त हो जाएगी।