श्रीमद्भगवद्गीता
गीता में १८ चैप्टर और ७०० श्लोक है। जिसमे ७०० श्लोकों में पहला श्लोक धृतराष्ट्र से, ४० श्लोक संजय से, ८४ श्लोक अर्जुन से और ५७५ श्लोक श्रीकृष्ण से संबंधित है।
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ।।७।।
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ।।८।।
(श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय ४)
(यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानि: भवति भारत, अभि-उत्थानम् अधर्मस्य तदा आत्मानं सृजामि अहम् ।
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुस्–कृताम्, धर्म-संस्थापन-अर्थाय सम्भवामि युगे युगे।)
(टिप्पणी: श्रीमद्भगवद्गीता वस्तुत: महाकाव्य महाभारत के भीष्मपर्व का एक अंश है; इसके १८ अध्याय भीष्मपर्व के क्रमश: अध्याय २५ से ४२ हैं।)
भावार्थ: जब जब धर्म की हानि होने लगती है और अधर्म आगे बढ़ने लगता है, तब तब मैं स्वयं की सृष्टि करता हूं, अर्थात् जन्म लेता हूं। सज्जनों की रक्षा एवं दुष्टों के विनाश और धर्म की पुन:स्थापना के लिए मैं विभिन्न युगों (कालों) मैं अवतरित होता हूं।
गीता सार: संक्षिप्त में गीता रहस्य-
हिन्दु धर्म में गीता को बहुत खास स्थान दिया गया है। यह अपनी गर्भ में भगवान श्रीकृष्ण के उपदेशो को पुर्णत: समेटी हुई है। इसे आम संस्कृत भाषा में लिखा गया है, संस्कृत की आम जानकारी रखने वाला भी गीता को आसानी से पढ़ एवं समझ सकता है। गीता में चार योग(कर्म योग, भक्ति योग, राज योग और जन योग) के बारे में विस्तार से बताया गया है, गीता को वेदों और उपनिषदों का सार माना जाता है।
जो लोग वेदों को पूरा नहीं पढ़ सकते है। सिर्फ गीता के पढ़ने से भी ज्ञान की प्राप्ति हो सकती है। गीता न सिर्फ जीवन का सही अर्थ समझाती है बल्कि परमात्मा के अनंत रूप से हमे रूबरू भी कराती है। इस संसारिक दुनिया मे दुख, क्रोध, अंहकार व ईष्र्या आदि से पिड़ित आत्माओं को, गीता सत्य और आध्यात्म का मार्ग दिखाकर मोक्ष की प्राप्ति करवाती है।
गीता में लिखे उपदेश किसी एक मनुष्य विशेष या किसी खास धर्म के लिए नही है, इसके उपदेश तो पूरे जग के लिए है। जिसमें आध्यात्म और ईश्वर के बीच जो गहरा संबंध है उसके बारे में विस्तार से लिखा गया है। गीता में धीरज, संतोष, शांति, मोक्ष और सिद्धि को प्राप्त करने के बारे में उपदेश दिया गया है।
गीता हमे जीवन के शत्रुआें से लड़ना सीखाती है, और ईश्वर से एक गहरा नाता जोड़ने मे भी मदद करती है। गीता त्याग, प्रेम और कर्तव्य का संदेश देती है। गीता मे कर्म को बहुत महत्व दिया गया है। मोक्ष उसी मनुष्य को प्राप्त होता है जो अपने सारे सांसारिक कामों को करता हुआ ईश्वर की आराधना करता है। अहंकार, ईष्र्या, लोभ आदि को त्याग कर मानवता को अपनाना ही गीता के उपदेशो का पालन करना है। गीता सिर्फ एक किताब तक सीमित नहीं है यह तो जीवन मृत्यु के दुर्लभ सत्य को अपने मे समेटे हुए है।
श्रीकृष्ण ने एक सच्चे मित्र और गुरू की तरह अर्जुन का न सिर्फ मार्गदर्शन किया बल्कि गीता का महान उपदेश भी दिया। उन्होंने अर्जुन को बताया कि इस संसार मे हर मनुष्य के जन्म का कोई न कोई उद्देश्य होता है। मृत्यु पर शोक करना व्यर्थ है, यह तो एक अटल सत्य है जिसे टाला नही जा सकता। जो जन्म लेगा उसकी मृत्यु भी निश्चित है। जिस प्रकार हम पुराने वस्त्रों को त्याग कर नए वस्त्रों को धारण करते है। उसी प्रकार आत्मा पुराने शरीर के नष्ट होने पर नए शरीर को धारण करती है। जिस मनुष्य ने गीता के सार को अपने जीवन में अपना लिया उसे ईश्वर की कृपा पाने के लिए इधर-उधर नही भटकना पड़ेगा।