Rahshyo se bhara Is Mandir me Raat me rukane per ho jati hai Bhakt ki Mrityu.

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रहस्यों से भरा इस मंदिर में रात में रूकने पर हो जाती है भक्त की मृत्यु!

क्यों विज्ञान ने अपने घुटने टेक दिया है इस रहस्य पर?
क्यों वर्जित है २ से ५ बजे के दरम्यान जाना इस मंदिर में?
कौन है आल्हा और ऊदल, कैसे यह माता का पहला दर्शन कर जाते है?
जानिए कुछ अनसूनी-अनदेखी बातें
Maihar Maayi

सतना जिले के मैहर तहसील से ५ किलोमीटर के दूरी पर त्रिकूट पर्वत पर स्थित माता के इस मंदिर को मैहर देवी का मंदिर कहा जाता है। माता के मंदिर के परिसर तक पहुंचने में हमें १०६३ सीढ़ियों को पार करना पड़ता है।

रात में यहां रूकना मना हैं-

Night Time Maihar Dham

मैहर माता का मंदिर सिर्फ रात्रि २ से ५ बजे के बीच बंद किया जाता है, इसके पीछे एक बड़ा रहस्य छुपा है। वस्तुत: ऐसी मान्यता है कि माता के सबसे बड़े भक्त आल्हा और ऊदल, 900 वर्षों के बाद, माता के पास रात्रि २ से ५ बजे के बीच आज भी रोज मंदिर आकर माता रानी का सबसे पहले दर्शन करते हैं। और दर्शन के साथ ही साथ माता का पूरा शृंगार भी करते है। माता ने अपने प्रथम दर्शन और शृंगार का अवसर सिर्फ अपने परम भक्त आल्हा और ऊदल को दिया हुआ है। इस दौरान अगर यहां कोई भक्त छिप कर रूक जाता है और यह दृश्य देखने की चेष्ठा करता है तो उसकी अगले दिन मृत्यु हो जाती है। जो आज तक एक रहस्य का विषय बना हुआ है। आज के युग में बहुत बार विज्ञान, धर्म पर सवाल उठाता हैं पर चाहे वो मैहर शारदा माँ का मंदिर हो या फिर मथुरा का निधि वन, धर्म के आगे विज्ञान घुुटने टेक देता है।

इस मंदिर में दिया जाता था बलि-
Maihar Dham me pratibandhit todana Nariyal

इस मंदिर में प्राचीन काल से ही बलि देने की प्रथा चली आ रही थी, लेकिन १९२२ में सतना के राजा ब्रजनाथ जूदेव ने पशु बलि को पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया गया था। वहीं इस प्रथा को निभाने हेतू नारियल चढ़ा कर माता की पूजा को पूर्ण किया जाता है।

शक्ति पीठ नहीं है। फिर भी है लोगों की आस्था-

Maihar Dham Temple

सतना का मैहर मंदिर शक्ति पीठ नहीं है। फिर भी लोगों की आस्था इतनी अडिग है कि यहां सालों से माता के दर्शन के लिए भक्तों का रेला लगा रहता है।

बता दें की माता के सती रूप में अपने पिता दक्ष द्वारा अपने पति शिव की अपमान होने से छुब्द हुई सती ने पिता द्वारा आयोजित समारोह के अग्निकुंड में प्रवेश कर अपने प्राण त्याग दी थी। जिसके बाद शिव द्वारा अग्निकुंड से अपनी पत्नी सती की मृत्य देह लेकर पूरे ब्राह्माण्ड में भटकने लगे थे। जिस पर भगवान नारायन द्वारा अपने सुदर्शन चक्र से उनके मृत्य देह को ५२ भागों में विभाजित कर दिया। इस दौरान मैहर क्षेत्र के त्रिकूट पर्वत पर माता का हार गिरा था। जिसके परिणाम स्वरूप इस स्थान का नाम मैहर (माता का हार) पड़ गया है। इसलिए शक्ति पीठ न होकर भी लोगों का आस्था का केन्द्र बना हुआ है। इस पर्वत पर माता के साथ ही श्री काल भैरवी, हनुमान जी, देवी काली, दुर्गा, श्री गौरी शंकर, शेष नाग, फूलमति माता, ब्रह्म देव और जलापा देवी की भी पूजा की जाती है।

कब और कैसे प्रसिद्ध एवं स्थापित हुआ यह स्थान-

maiher

क्षेत्रीय लोगों के मुताबिक आल्हा और उदल जिन्होंने पृथ्वीराज चौहान के साथ युद्ध किया था, वे शारदा माता के बड़े भक्त थे। इन दोनों ने ही सबसे पहले जंगलों के बीच में शारदा देवी के इस स्थान की खोज की थी। और बाद में आल्हा ने इस स्थान पर १२ वर्षों तक तपस्या कर देवी को प्रसन्न किया था। जिसके फलस्वरूप माता ने आल्हा और उदल को अमरत्व का वरदान दिया। आल्हा माता को शारदा माई कह कर पुकारा करता था। जिससे ये मंदिर भी माता शारदा माई के नाम से प्रसिद्ध हो गया। आज भी मान्यता है कि माता शारदा के दर्शन हर दिन सबसे पहले आल्हा और उदल ही करते हैं।

Aala Talab
मंदिर के पीछे पहाड़ों के नीचे एक तालाब है, जिसे आल्हा तालाब कहा जाता है।

Aala Udal Akhada

यही नही, तालाब से २ किलोमीटर और आगे जाने पर एक अखाड़ा भी मिलता है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यहां आल्हा और उदल कुश्ती लड़ा करते थे।
बता दें कि त्रिकूट पर्वत पर मैहर देवी का मंदिर भू-तल से छह सौ फीट की ऊंचाई पर स्थित है। मंदिर तक जाने वाले मार्ग में तीन सौ फीट तक की यात्रा गाड़ी से भी की जा सकती है। मैहर देवी माँ शारदा तक पहुंचने की यात्रा को चार खंडों में विभक्त किया जा सकता है। प्रथम खंड की यात्रा में ४८० सीढ़ियों को पार करना होता है। मंदिर के सबसे निकट त्रिकूट पर्वत से सटा मंगल निकेतन बिड़ला धर्मशाला है। इसके पास से ही येलजी नदी बहती है। दूसरे खंड में  २४० सीढ़ियों का क्रम है। इस यात्रा में पानी व अन्य पेय पदार्थोंं का प्रबंध है। यहां पर आदिश्वरी माई का प्राचीन मंदिर है। यात्रा के तीसरे खंड में १४७ सीढ़ियां है। चौथे और अंतिम खंड में १९६ सीढ़ियां पार करनी होती हैं। तब माँ शारदा का मंदिर आता है।

Rop Ve in Maihar Dham
विकलांगों के सुविधा के नजरियों से स्थानीय प्रसाशन के द्वारा सितम्बर २००९ से एक बड़ी सुविधा रोप-वे प्रणाली के परिचालन के जरिए तीर्थयात्रियों(विशेष रूप से वृद्धों और विकलांगों) की देवी माँ शारदा के दर्शनों की इच्छा को पूरा किया जा रहा है।

कैसे पहुंचा जाये माता के दरबार-

Maihar Dham Dwar

आपको भी माँ के दर्शन करने है तो किसी भी सुविधा के द्वारा यहां पहुंच सकते हैं। जिसमें- हवाई मार्ग के द्वारा सतना से १६० कि.मी. की दूरी पर जबलपूर और १४०कि.मी. की दूरी पर खजुराहो एयरपोर्ट है। वहां तक हवाई मार्ग से आकर सड़क मार्ग से सतना पहुंचा जा सकता है। वहीं मैहर जिले के लिए देश के कई शहरों से रेल गाड़ियां चलती है। मैहर जिला, देश के कई शहरों के मुख्य सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है इस कारण यहां बस या निजी वाहन से भी पहुंजा जा सकता है।

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