क्या आप जानते है काशी नगरी के स्वामी विश्वनाथ मंदिर से जुड़ी रहस्यमयी बातें?
भगवान शिव की नगरी काशी में स्थापित भगवान शिव का काशी विश्वनाथ मंदिर में कई ऐसे रहस्य बाते है जिनसे आज हम आपको रूबरू करा रहें है। पुराणों और ग्रंथों में उल्लेखित कि काशी भगवान शिव के त्रिशूल पर टिका हुआ है। इसलिए कहा जाता है कि यहां पर कभी भी प्रलय का दस्तक नहीं होगा। भगवान शिव का प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग, काशी विश्वनाथ में स्थापित है। यहां वाम रूप में शिव अपनी पत्नी पार्वती संग विराजीत है। पूरे विश्व में यह एक एकलौता मंदिर है। ऐसे ही कुछ रोजक और रहस्य से भरी बातों को हम आप से अवगत करा रहें है।
१. मंदिर के ऊपर एक सोने का बना छत्र लगा हुआ है। इस छत्र को चमत्कारी माना जाता है और इसे लेकर एक मान्यता प्रसिद्ध है। अगर कोई भी भक्त इस छत्र के दर्शन करने के बाद कोई भी प्रार्थना करता है तो उसकी वो मनोकामना जरूर पूरी होती है।
२. मोक्ष दायनी नगरी काशी में माना जाता है कि भगवान शिव अपने भक्तों को मोक्ष देने हेतू तारक मंत्र देकर लोगों को तारते हैं। कहा जाता है, अगर मरने वाला व्यक्ति एक बार शिव अराधना कर ले तो उसकी मुक्ति का रासता आसान हो जाता है। वहीं जीवन-मरण से उसे मुक्ति मिल जाती है।
३. काशी में १२ ज्योतिर्लिंग में से एक ज्योतिर्लिंग, दो भागों में स्थापित है। वहां के पुरोहितों का कहना है कि एक भाग में माता भगवती विराजमान हैं। तो दूसरे भाग में भगवान शिव वाम(सुंदर) रूप में विराजमान हैं। इन दोनों के एक साथ होने से मानव की मुक्ति का द्वार खुल जाता है।
४. तांत्रिक सिद्धि हेतू बाबा विश्वनाथ का मंदिर बिलकूल अनूकूल है। क्योंकि इस मंदिर का गर्भ गृह का शिखर है। इसमें ऊपर की ओर गुंबद श्री यंत्र से मंडित है। इसे श्री यंत्र-तंत्र याधना के लिए प्रमुख माना जाता है।
५. शिव का ज्योतिर्लिंग गर्भगृह में ईशान कोण में मौजूद है। इस कोण का मतलब होता है, संपूर्ण विद्या और हर कला से परिपूर्ण दरबार। तंत्र की १० महा विद्याआें का अद्भुत दरबार, जहां भगवान शंकर का नाम ही ईशान है।
६. विश्वनाथ मंदिर में कुल चार द्वार है, पहला शांति द्वार, दूसरा कला द्वार, तीसरा प्रतिष्ठा द्वार और चौथा निवृत्ति द्वार। इन चारो द्वारों को तंत्र की दृष्टि से बहुत महत्व माना जाता है। ऐसा वहां के लोगों का मानना है किे पूरी दुनिया में ऐसा कोई स्थान नहीं है जहां शिवशक्ति एक साथ विराजमान हों और तंत्र द्वार भी हो।
७. दक्षिण दिशा में मंदिर का मुख्य द्वार है जिससे मंदिर में प्रवेश के दौरान भक्त को बाबा भोले का मुख अघोर की ओर होने से उनका अघोर रूप में दर्शन होता है। ऐसा माना जाता है कि इस द्वार से प्रवेश करने से भक्तों का पूर्व कृत पाप-ताप विनष्ट हो जाता है।
८. मान्यता है कि जब औरंगजेब इस मंदिर का विनाश करने के लिए आया था, तब मंदिर में मौजूद लोगों ने यहां के शिवलिंग की रक्षा करने के लिए उसे मंदिर के पास ही बने कुएं में छुपा दिया था। कहा जाता है कि वह कुआं आज भी मंदिर के आस-पास कहीं मौजूद है।
९. ऐसा माना जाता है कि भोले नाथ और माँ भगवती काशी में प्रतिज्ञाबद्ध है। जिसके फलस्वरूप काशी निवासी के भरण-पोषण की जिम्मेदारी माँ भगवती की है और मृत्यु के बाद आत्मा की मुक्ति हेतू तारक मंत्र देकर आत्मा की मुक्ति सरल करा कर अपनी वचन पूर्ण करते है बाबा भोले नाथ।
१०. भौगोलिक दृष्टि से भोले शिव को त्रिकंटक विराजते यानि त्रिशूल पर विराजमान माना जाता है। काशी नगर के इतिहास में देखा जाये तो पूर्व समय में मैदागिन क्षेत्र में मंदाकिनी नदी और गौदोलिया क्षेत्र में गोदावरी नदी का बहाव हुआ करता था। इन दोनों के बीच में ज्ञानवापी में भोले शिव स्वयं विराजमान है।
११. इस मंदिर में श्रृंगार के समय सारी मूर्तियां पश्चिम मुखी होती है।