क्या दान करना भी शुभ और अशुभ फल के चक्र में आते हैं?
किन चीजों का दान करने से शुभ फल मिलते हैं?
किन लोगों को दान करने से मिलते है शुभ और अशुभ फल?
मान्यता हैं कि किया गया दान-पुण्य हमेशा हमारे संकट के समय आड़े आते है जिसका मतलब है कि दान करने से शुभता मिलती है। भगवान शिव को समर्पित शिव पुराण जिसमें हमारें दैनिक जीवन से जुड़ी समस्याओं के कई चकत्कारिक उपायों का उल्लेख किया गया है। इन्हीं में से कुछ उपाय दान के सम्बन्ध में बताया गया है। जिन्हें हम कर के अपने जीवन में खुशियाँ ला सकते हैं एवं बुरा समय को दूर कर सकते हैं। इसी संबंधित कुछ ६ चीजों के बारे में शिवपुराण में विस्तार से उल्लेख किया गया हैं। जिसके करने के बाद हमारी सारी मनोकामनाऐं पूरी हो सकती हैं।
तिल-
तिल के दान के बारे में शिवपुराण में बताया गया है कि अगर हम तिल दान करें तो हमारे शरीर में शक्ति का समावेश होता है और मन में घर कर गया मौत का खौफ भी दूर हो जाता है।
वस्त्र-
शिव पुराण के अनुसार अगर किसी जातक के हस्त में जिन रेखा(आयू रेखा) छोटी हो तो ऐसे में अगर आप अपनी हैस्यित के अनुसार नए या पुराने कपड़ों का दान करते है तो आपकी उम्र बढ़ सकती है और आप लम्बें समय तक निरोगी रह सकते हैं।
गुड़-
शिवपुराण के अनुसार मनचाहा एवं शुद्ध भोजन के प्राप्ति की इच्छा हेतू अगर हम गुड़ का दान करें तो हमारी यह इच्छा पूरी हो सकती हैं।
अनाज-
कहा जाता है कि अगर हम समय-समय पर गरीबों की मद्द स्वरूप अनाज का दान करें तो हमारे अनाज भण्डार में कभी भी अनाज की कमी नही आती है एवं उनके आर्शीवाद रूप में हमारें घर में आये हुए अतिथियों को कराते हुए भोजन कभी कम नही पड़ता हैं।
नमक-
भगवान शिव को समर्पित शिवपुराण के अनुसार नमक का दान करने से आप अपना बुरा समय को काफी हद तक कम कर सकते है। वहीं ऐसा करने से आपको भगवान शिव के आर्शीवाद स्वरूप हमेशा आपके भोजन के समय आपको श्रेष्ठ भोजन की भी प्राप्ति हो सकती है।
घी-
शिव पुराण में घी का दान भी महत्वपूर्ण माना गया हैं। अगर हम इसका दान करते है तो लम्बे समय से शरीर में चली आ रही कमजोरियों का नाश हो जाता है एवं हमारा शरीर स्वस्थ हो सकता है।
दान किसे करना चाहिए और किसे नहीं-
शिवपुराण में बताया गया है कि हमें किसे दान करना चाहिऐ और किसे नहीं करना चाहिए। पुराण में बताऐ गये किन नौ लोगों को दिया गया दान सफल होता है और असफल होता हैं। इसी के बारे में हम आपको आज रूबरू करा रहें है। जो निम्नवत् है-
माता, पिता, गुरू, विनयी, दीन, उपकार करने वाला, मित्र, सज्जन पूरूष और अनाथ को दिया गया दान सफल होता हैं। वहीं बंदी, मूर्ख, धूर्त, अयोग्य चिकित्सक, चाटुकार, शठ, जुआरी, चोर और चारण को दिया गया दान असफल होता है। कहा जाता है जैसे कि ”भरे हुए पेट वाले मनुष्य को भोजन देना असफल होता है वैसे ही एक भूके को भर पेट भोजन कराना सफल माना जाता है।”