किन पितरों का श्राद्ध किस दिन करना चाहिए। आइए जानें
श्राद्ध पक्ष के दौरान हमें किन-किन बातों का ध्यान देना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को अपने पूर्व की तीन पीढ़ियों- पिता, पितामही तथा प्रपितामही के साथ ही अपने नाना तथा नानी का भी श्राद्ध अवश्य करना चाहिए। श्राद्ध करते वक्त तिथि संबंधी कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए जो इस प्रकार हैं।
१.व्यक्ति की मृत्यु जिस तिथि को हुई हो उसी तिथि को उसका श्राद्ध करना चाहिए। अगर तिथि ज्ञात न हो तो सर्व पितृ अमावस्या को श्राद्ध करें।
२.जिन व्यक्तियों की सामान्य एवं स्वाभाविक मृत्यु चतुर्दशी को हुई होे, उनका श्राद्ध चतुर्दशी तिथि को कदापि नहीं करना चाहिए, बल्कि पितृपक्ष की त्रयोदशी अथवा अमावस्या के दिन उनका श्राद्ध करना चाहिए।
३.जिन व्यक्तियों की अपमृत्यु हुई हो, अर्थात किसी प्रकार की दुर्घटना, सर्पदश, विष, शस्त्रप्रहार, हत्या, आत्महत्या या अन्य किसी प्रकार से अस्वाभाविक मृत्यु हुई हो, तो उनका श्राद्ध मृत्यु तिथि वाले दिन कदापि नहीं करना चाहिए। अपमृत्यु वाले व्यक्तियों को श्राद्ध केवल चतुर्दशी तिथि को ही करना चाहिए, चाहे उनकी मृत्यु किसी भी तिथि को हुई हो।
४.सौभाग्यवती स्त्रियों की अर्थात पति के जीवित रहते हुए ही मरने वाली सुहागिन स्त्रियों का श्राद्ध भी केवल पितृपक्ष की नवमी तिथि को ही करना चाहिए, चाहे उनकी मृत्यु किसी भी तिथि को हुई हो।
५.संन्यासियों का श्राद्ध केवल पितृपक्ष की द्वादशी को ही किया जाता है, चाहे उनकी मृत्यु किसी भी तिथि को हुई हो।
६.नाना तथा नानी का श्राद्ध भी केवल अश्विन शुक्ल प्रतिपदा को ही करना चाहिए, चाहे उनकी मृत्यु किसी भी तिथि में हुई हो।
७.स्वाभाविक रूप से मरने वालों का श्राद्ध उनकी मृत्यु तिथि, भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा अथवा आश्विन कृष्ण अमावस्या को करना चाहिए।