सूर्य देव हर सुबह अपने रथ पर सवार होकर पूर्व दिशा से दिन का प्रकाश लेकर आते हैं। पुराणों में बताया गया है कि सूर्य देव के रथ के सारथी अरुण हैं। अरुण भगवान विष्णु के वाहन गरुड़ के भाई हैं।
ऋग्वेद में कहा गया है कि ‘सप्तयुज्जंति रथमेकचक्रमेको अश्वोवहति सप्तनामा’ यानी सूर्य चक्र वाले रथ पर सवार होते हैं जिसे सात नामों वाले घोड़े खींचते हैं।
पुराणों में उल्लेख मिलता है कि सूर्य के रथ में जुते हुए घोड़े के नाम हैं ‘गायत्री, वृहति, उष्णिक, जगती, त्रिष्टुप, अनुष्टुप और पंक्ति।’ यह सात नाम सात छंद हैं। यानी सात छंत हैं जो अश्व रुप में सूर्य के रथ को खींचते हैं।
रथ की खूबी और सूर्य के घोड़े का रहस्य
सूर्य के रथ की खूबियों के विषय में शास्त्रों में बताया गया है कि इस रथ का विस्तार नौ हजार योजन है। इसका धुरा डेड़ करोड़ सात लाख योजन लम्बा है।
संवत्सर इसके पहिये हैं जिसमें छः ऋतुएं नेमी रुप से लगे हुए हैं। बारह महीने इसमें आरे के रुप में स्थित हैं।
शास्त्रों और पुराणों के मत से अलग वैज्ञानिक दृष्टि यह कहती है कि सूर्य हमारी पृथ्वी से बहुत दूर स्थित है। सूर्य में वहन करने वाली सात किरणें जो इंद्र धनुष में भी मौजूद होता है। इन्हीं किरणों को शास्त्रों में सूर्य के सात अश्व मान लिए गए होंगे।