मां दुर्गा के नौ रूपों में एक है मां काली का अवतार। मां काली की उत्पत्ति राक्षसों और दैत्य शक्तियों का नाश करने के लिए हुई। मां काली को लेकर शास्त्रों में कई तरह की कथाएं मिलती हैं। मां काली की सभी तस्वीरों और प्रतिमाओं में उनकी जीभ बाहर निकली हुई होती है, जोकि हमेशा भक्तों के बीच जिज्ञासा का केंद्र रही है।
मुख्य बातें
- भगवती दुर्गा का ही स्वरूप है मां काली
- राक्षसों का नाश करने के लिए हुई मां काली की उत्पत्ति
- मां काली की शक्ति से स्वयं काल भी भय खाता है
महाकाली या मां काली भगवती दुर्गा का ही एक अवतार है, जो कि विकराल रूप के लिए जानी जाती हैं। कहा जाता है मां काली के क्रोध को समस्त संसार की शक्तियां भी काबू नहीं कर सकती। मां काली अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं। जो भी पूरी श्रद्धा और निष्ठा से उनकी भक्ति करता है, मां काली का आशीर्वाद सदैव उसपर बना रहता है। मां काली का यह रौद्र रूप केवल राक्षसों और दैत्य के लिए है। मां काली के विकराल और क्रोध रूप को लेकर शास्त्रों में कई तरह की कथाएं वर्णित हैं।
आपने ऐसी कई तस्वीरें देखी होंगी जिसमें मां काली के चरणों के नीचे भगवान शंकर लेटे हुए दिखाईृ देते हैं। शिवजी के सीने पर मां काली का चरण होता है और मां काली की चीभ बाहर निकली होती है। कहा जाता है कि मां काली के क्रोध के आगे भगवान शंकर भी नतमस्तक हो गए थे।लेकिन क्या आप जानते हैं आखिर क्यों भगवान शिव मां काली के चरणों ने नीचे आ गए और क्यों मां काली ने अपनी जीभ बाहर निकाल ली। मां काली की कई कथाओं में एक है रक्तबीज नामक दैत्य की कथा, जोकि इस प्रकार है।
रक्तबीज दैत्य से जुड़ी कथा
रक्तबीज नाम के दैत्य ने अपनी कठोर तपस्या से शक्तिशाली वरदान प्राप्त कर लिया। इस वरदान के अनुसार यदि रक्तबीज के खून की एक बूंद भी धरती पर गिरी तो उससे कई दैत्यों का जन्म हो जाएगा। इस तरह का वरदान प्राप्त कर रक्तबीज अपनी शक्तियों का गलत तरीके से प्रयोग करने लगा। धीरे-धीरे उसका आतंक बढ़ता गया है और तीनों लोकों पर वह अपनी शक्तियों का प्रयोग करने लगा। सभी रक्तबीज के आतंक से परेशान हो गए।
रक्तबीज को पराजित करने के लिए देवताओं और दानवों के बीच युद्ध हुआ। लेकिन जैसे जैसै रक्तबीज का खून जमीन पर गिरता गया एक-एक कर सैकड़ों दैत्य पैदा होते गए। इसलिए रक्तबीज को हराना नामुमकिन हो गया था। इसके बाद देवताओं ने मां काली की शरण ली। देवताओं की मदद के लिए मां काली ने विकराल रूप धारण किया। इस रूप में मां काली के हाथों में अस्त्र-शस्त्र, एक हाथ में खप्पर और गले में खोपड़ियों की माला थी। लेकिन रक्तबीज का खून जमीन पर गिरते ही कई राक्षस पैदा होते जा रहे हैं।
तब मां काली ने खप्पर से दैत्यों के खून को रोकना शुरू किया और वध करने के बाद उसका खून पीने लगीं। इस तरह से मां काली ने रक्तबीज का वध कर दिया। लेकिन इस दौरान मां काली का क्रोध इतना विकराल रूप ले चुका था कि उन्हें शांत करना असंभव हो गया था। मां काली के क्रोध को कम करने से लिए सभी देवतागण शिवजी की शरण में पहुंचे और उनसे मां काली को शांत करने के लिए विनती की। तब भगवान शिव मां काली के मार्ग पर लेट गए। जैसे ही भगवान शिवजी के सीने पर मां काली का चरण स्पर्श हुआ तो उनकी जिह्वा (जीभ) बाहर आ गई और इसके बाद मां काली का क्रोध स्वत: शांत हो गया।
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