जय माता की…. दस महाविद्याओं में काली प्रथम हैं। महाभागवत के अनुसार महाकाली ही मुख्य है और उन्हीं के उग्र और सौम्य दो रूपों में अनेक रूप धारण करने वाली दस महाविद्याएँहै।दार्शनिक दृष्टि से भी कालतत्व की प्रधानता सर्वोपरि हैं। कालिकापुराण में कथा आती है कि एक बार हिमालय पर अवस्थित मांग मुनि के आश्रम में जाकर देवताओं ने महामाया की स्तुति की। स्तूति से प्रसन्न होकर मंतग- वनिताके रूप में भगवतीने देवताओं को दर्शन दिया और पूछा कि तुम लोग किस की ।स्तू ति कर रहे हो। उसी समय देवी के शरीर से काले पहाड़के समान वर्ण वाली एक और दिव्यक्ति नारी का प्रकट हुआ। वे काजल के समान कृष्णा थी इसीलिए उनका नाम काली पड़ा ।काली को नीलरूपा होने के कारण तारा भी कहते है।नारद-पाच्ञरात्र
के अनुसार एक बार काली के मन में आया कि वे पुनः गौरी हो जाएँ ये सोच कर वे अन्तर्धान हो गई शिवजी ने नारद जी से पूछा तो उन्होंने सुमेर के उतर में देवी के प्रत्यक्ष उपस्थित होने की बात की ।शिव जी की प्रेरणा से नारद मुनि देवी के पास शिव जी के साथ विवाह का प्रस्ताव रखा ।ये सुन कर देवी क्रोधित हो गयी और उन कि देह से एक अन्य षोडशी विग्रह प्रकट हुआ और उससे छायाविग्रह त्रिपुरभैरवी काप्राकटय हुआ।
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