द्वादश ज्योतिर्लिंग के दर्शन कर लिए जाएं तो इंसान के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं. आज एक ऐसे ही ज्योतिर्लिंग के बारे में बताएंगे.
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महाशिवरात्रि का दिन भगवान शिव को प्रसन्न करने का सबसे उत्तम होता है. इस दिन जो लोग व्रत रखकर भक्ति भाव से उनकी पूजा-अर्चना करते हैं, उनकी हर मनोकामना पूर्ण होती हैं. इस दिन द्वादश ज्योतिर्लिंग के दर्शन करना बेहद शुभ माना जाता है. ये सभी 12 ज्योतिर्लिंग भारत के विभिन्न हिस्सों में हैं. ऐसी मान्यता है कि इन ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से ही इंसान के सभी कष्ट दूर होते हैं और हर इच्छा पूरी होती है. आज भगवान शिव के छठे ज्योतिर्लिंग भीमाशंकर की बात करेंगे.
भीमा का जन्म
भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के पुणे से लगभग 110 किलोमीटर दूर सह्याद्रि पर्वत पर स्थापित है. इस ज्योतिर्लिंग के पीछे एक पौराणिक कथा है, जिस वजह से इसकी स्थापना हुई थी. कथा के अनुसार, भगवान श्रीराम ने लंकापति रावण के साथ उसके छोटे भाई कुंभकरण का वध किया था. कुंभकरण के वध बाद उसके पुत्र भीमा का जन्म हुआ था.
कठोर तपस्या
भीमा जब बड़ा हुआ तो उसे भगवान राम द्वारा उसके पिता का वध किए जाने का पता चला. यह बात सुनकर वह बहुत क्रोधित हुआ और उसने श्रीराम की हत्या प्रण लिया. इसके बाद भीमा ने कई वर्षों तक ब्रह्मा जी की कठोर तपस्या की. ब्रह्माजी ने तपस्या से प्रसन्न होकर भीमा को सदा विजय होने का वरदान दिया.
युद्ध
वरदान पाने के बाद भीमा ने कोहराम मचाना शुरू कर दिया. उससे मनुष्य समेत देवी-देवता भी डरने लगे. आखिरकार परेशान होकर सभी देवता भगवान शिव के पास पहुंचे और भीमा से बचाने की प्रार्थना करने लगे. इसके बाद भगवान शिव ने भीमा को युद्ध में परास्त कर दिया. इसके बाद सभी देवताओं ने भगवान शिव से इसी स्थान पर ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित होने की प्रार्थना की. उनकी प्रार्थना सुनकर भोलेशंकर वहीं पर स्थापित हो गए. यही जगह आगे चलकर भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग के नाम से फेमस हुई.
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