काशी नगरी वाराणसी में होली बड़ी ही धूमधाम से मनाई जाती है. यहां पर मसान की राख से होली खेली जाती है
होली का पर्व देशभर में बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है. इस साल 24 मार्च को होलिका दहन होगा और 25 मार्च को होली खेली जाएगी. देशभर में मथुरा-वृंदावन की होली बहुत ही प्रसिद्ध है. यहां पर लड्डू मार, लट्ठमार और फूलों वाली खेली जाती है. मथुरा-वृंदावन की तरह ही काशी की होली भी बहुत ही प्रसिद्ध है. यहां पर मसाल की होली खेली जाती है. यह होली चिता की राख से खेली जाती है.
रंगभरी एकादशी
काशी वाराणसी में होली के उत्सव की शुरुआत रंगभरी एकादशी के दिन से होती है. फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को रंगभरी एकादशी होती है इस दिन भगवान शिव माता पार्वती का गौना करके उन्हें काशी लाएं थे. इस दिन भोलेनाथ और मां पार्वती ने गुलाल से होली खेली थी. काशी में रंगभरी एकादशी के अगले दिन मसान की होली होती है. इस बार 20 मार्च को रंगभरी एकादशी है. ऐसे में अगले दिन यानी 21 मार्च को मसान की होली खेली जाएगी.
मसान की होली
काशी में मर्णिकर्णिका घाट पर चिता की राख से होली खेली जाती है. इसे मसान की होली कहते हैं. काशी में सालों से यह परंपरा चली आ रही है. ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव ने रंगभरी एकादशी पर पार्वती माता के साथ होली खेली थी जिस कारण वह भूत-प्रेत के साथ होली नहीं खेल पाएं. ऐसे में अगले दिन भोलेनाथ ने मर्णिकर्णिका घाट पर भूत-प्रेतों के साथ होली खेली थी.
ऐसे मनाते हैं मसान की होली
काशी के मर्णिकर्णिका घाट पर अघोरी और साधु-संत इस होली में शामिल होते हैं. यह मसान की राख को होली के गुलाल की तरह लगाते हैं. काशी की मसान होली पूरे विश्व में प्रसिद्ध है. होली उत्सव के दिन पूरा मणिकर्णिका घाट हर-हर महादेव के नारों के नाम से गूंज उठता है.
सार
मणिकर्णिका घाट पर बाबा अपने गणों के साथ चिता भस्म की होली खेलते हैं। जिसे मसान होली, भस्म होली और भभूत होली के नाम से भी जाना जाता है। इस बार यह होली आज यानि 4 मार्च को खेली जा रही है।
रंगभरी एकदशी के अगले दिन वाराणसी में भभूत होली या मसान होली खेली जाती है। काशी में होली का विशेष महात्मय है। मान्यता है कि रंगभरी एकादशी के दिन बाबा विश्वनाथ अपनी नगरी के भक्तों व देवी देवताओं संग अबीर गुलाल संग होली खेलते हैं। और इसके अगले दिन मणिकर्णिका घाट पर बाबा अपने गणों के साथ चिता भस्म की होली खेलते हैं। जिसे मसान होली, भस्म होली और भभूत होली के नाम से भी जाना जाता है। इस बार यह होली आज यानि 21 मार्च को खेली जा रही है। आइए जानते हैं भस्म होली के महत्व के बारे में।
क्यों मनाई जाती है भस्म होली
हिंदु धर्म शास्त्रों के अनुसार होली के इस उत्सव में बाबा विश्वनाथ की नगरी में देवी देवता, यक्ष, गन्धर्व सभी शामिल होते हैं। और भगवान भोलेनाथ के प्रिय गण यानि भूत पिशाच या प्रेतात्माएं खुद इंसानों के बीच जाने से रोककर रखते हैं। कहते हैं अपनी गणों के लिए भोलेनाथ उनके बीच होली खेलने के लिए घाट पर आते हैं। इसीलिए कहा जाता है कि चिता की राख से होली खेलने मसान आते हैं।
कैसे खेली जाती है चिता भस्म होली
- चिता भस्म होली काशी के मणिकर्णिका घाट पर जलती चिताओं के बीच मनाया जाता हैं।
- इस आयोजन में सबसे पहले बाबा महाश्मशान नाथ और माता मशान काली की मध्याह्न आरती की जाती है।
- इसके बाद बाबा व माता को चिता भस्म और गुलाल चढ़ाया जाता है।
- इसके बाद चिता भस्म होली प्रारंभ होती है।
- मान्यताओं के अनुसार बताया जाता है कि बाबा विश्वनाथ दोपहर के समय मणिकर्णिका घाट पर स्नान के लिए आते हैं।
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