चौरासी महादेवों की शृंखला में 35वें क्रम पर श्री इंद्रेश्वर महादेव का मंदिर आता है। इनके दर्शन-पूजन करने से मनुष्य सभी पापों से मुक्त होता है। इंद्र के समान स्वर्ग को प्राप्त करता है।
उज्जैन. चौरासी महादेवों की शृंखला में 35वें क्रम पर श्री इंद्रेश्वर महादेव का मंदिर आता है। इनके दर्शन-पूजन करने से मनुष्य सभी पापों से मुक्त होता है। इंद्र के समान स्वर्ग को प्राप्त करता है। श्रावण-भादौ मास में पत्रिका डॉट कॉम के जरिए आप 84 महादेव की यात्रा का लाभ ले रहे हैं।
जटा से एक बाल तोड़ा ओर उसे अग्नि में डाल दिया
प्राचीन समय में त्वष्टा नाम के राजा थे, उनका एक पुत्र था कुषध्वज। वह दान-धर्म करता था। इंद्र ने उसे मार दिया। इस पर राजा ने क्रोध में अपनी जटा से एक बाल तोड़ा ओर उसे अग्नि में डाल दिया। अग्नि से वृत्रासुर दैत्य उत्पन्न हुआ। राजा की आज्ञा से वृत्रासुर ने दवताओं से युद्ध किया ओर इंद्र को बंधक बना लिया। स्वर्ग में राज करने लगा। कुछ समय बाद देवगुरु बृहस्पति वहां पहुंचे और इंद्र को बंधनों से मुक्त कराया। इंद्र ने पुन: स्वर्ग प्राप्ति का मार्ग बृहस्पति से पूछा। बृहस्पति ने कहा कि इंद्र तुम जल्द महाकाल वन जाओ ओर खंडेश्वर महादेव के दक्षिण में विराजित शिवलिंग का पूजन करो।
इंद्र ने किया था पूजन
इंद्र ने शिवलिंग का पूजन किया। भगवान शिव ने प्रकट होकर इंद्र को वरदान दिया कि वह शिव के प्रभाव से वृत्रासुर से युद्ध करे ओर विजय प्राप्त करे। इंद्र ने वृत्रासुर का नाश किया और स्वर्ग पर अपना अधिकार प्राप्त किया। इंद्र के पूजन किए जाने के कारण शिवलिंग इंद्रेश्वर के नाम से विख्यात हुआ। जो भी मनुष्य शिवलिंग का दर्शन-पूजन करता है, वह सभी पापों से मुक्त होता है। इंद्र के समान स्वर्ग को प्राप्त करता है।
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