एक बार शिव पार्वती दोनों महाकाल वन में भ्रमण कर रहे थे। वहां गणेश बालकों के समूह में खेल रहा था। शिव ने पार्वती से कहा कि यह जो बालक फूलों से खेल रहा है और अन्य बालक उस पर पुष्प वर्षा कर रहे हैं वह उन्हें बहुत प्रिय है। शिव ने वह बालक पार्वती को दे दिया। पार्वती ने पुत्र को देखने की इच्छा से अपनी सखी विजया से कहा कि वह जाए और बालक गणेश को लेकर आए।
विजया गणेश बालकों के समूह में गई ओर उसे मनाकर कैलाश ले आई। यहां गणेश को उन्होंने विभिन्न आभूषणों ओर चंदन व पुष्पों से सज्जित किया ओर फिर शिव गणों के समूह में खेलने के लिए छोड़ दिया। बालक वहां भी पुष्पों से खेलता रहा। पार्वती ने शिवजी से कहा कि यह मेरा पुत्र है इसे आप वरदान दे कि यह सभी गणों में सबसे पहले पूज्य होगा ओर कुसुमों में मंडित होने के कारण इसका नाम कुसुमेश्वर होगा। शिवजी ने कहा कि कुसुमेश्वर का जो भी मनुष्य दर्शन कर पूजन करेगा उसे कभी कोई पाप नहीं लगेगा। कुसुमेश्वर की जो भी पुष्पों से पूजन करेगा वह अंतकाल में शिवलोक को प्राप्त होगा। शिव के वरदान से कुसुमेश्वर शिवलिंग के रूप में महाकाल वन में स्थापित हुआ।
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