इतिहास के पन्नों में छिप्पे हैं विश्व के महान गुरू
आइयें जानते है ऐसे दस गुरूओं के बारे में
हम लोगों के जहन में आज गुरूओं की छवी धूमील सी हो गई है। आज-कल के गुरू, एक शिक्षक का रूप ले चूकें है जो अपनी विद्या एक शिष्य को देने से पूर्व अपनी विद्या का मोल तय कर लेते है। जिसके फलस्वरूप शिष्य के मन-मस्तिष्क शिक्षक के प्रति आदर व सम्मान सिर्फ एक दिखावा सा रह जाता है। इस लिए आज हम आपकों एक बार फिर से पुन: इतिहास के ऐसे दस गुरूओं से रूबरू करायेंगे जिसने अपने-अपने काल में वे सारे हमारे देश को समय-समय पर एक नई दिशा दी एवं बिखरें हुए देश को एक जूट भी किया था। उनके योगदान से देश को महान से महान योद्धा एवं नायक देखने को मिला। जब प्राचीनकाल में विद्यार्थी गुरू के आश्रम में नि:शुल्क शिक्षा ग्रहण करता था तो इसी दिन श्रद्धा भाव से प्रेरित होकर अपने गुरू का पूजन करके उन्हें अपनी शक्ति सामथ्र्यानुसार दक्षिणा देकर कृतकृत्य होता था। तो आइये जानते है ऐसे ही दस श्रेष्ठ गुरू के बारे में-
१.गुरू वशिष्ठ-
ऋषि वशिष्ठ को कौन नहीं जानता। वे राजा दशरथ के कुलगुरू रहे थे एवं उनके चारों पुत्रों राम, भरत, लक्ष्मण व शत्रुधन के शिक्षा गुरू भी थे। एक बार राजा दशरथ के दरबार में पहुंचे ऋषि विश्वामित्र द्वारा राम और लक्ष्मण को अपने यज्ञ पूर्ण कराने की इच्छा से मांगने पर राजा दशरथ द्वारा किऐ गये इन्कार से ऋषि वशिष्ठ ने ही ऋषि विश्वामित्र को सहमति दिलाई थी। यह वही ऋषि विश्वामित्र थे जिन्होंने अपने राजा होने के समय पर ऋषि वशिष्ठ के आश्रम से कामधेनु गाय के लिए घोर युद्ध किया था। ऋषि वशिष्ठ ने राजसत्ता पर अंकुश का विचार दिया तो उन्हीं के कुल के मैत्रावरूण वशिष्ठ ने सरस्वती नदी के किनारे सौ सूक्त एक साथ रचकर नया इतिहास बनाया। सप्त ऋषियों में गुरू वशिष्ठ की गणना की जाती है।
२.ऋषि विश्वामित्र-
विश्वामित्र, ऋषि होने के पूर्व एक कुशल राजा हुआ करते थे। उन्होंने जिद् स्वरूप ऋषि वशिष्ठ के आश्रम से बहुप्रचलित कामधेनु गाय को बल पुरवक हड़पने की असफल प्रयास किया था। उनके एवं ऋषि वशिष्ठ के बीच हुऐ युद्ध के हार के बाद ही उन्हें अपने आप को भी ऋषि वशिष्ठ के भांति एक महान ऋषि बनने की प्रेरणा मिला। जिसके बाद उनके घोर तपस्या से देवराज र्इंद्र द्वारा उनकी तपस्या भंग करने हेतू भेजी गइ मेनका की कथा जगत प्रसिद्ध है। उन्होंने अपनी तपस्या के बल पर त्रिशंकु को सशरीर स्वर्ग भेज दिया था, लेकिन स्वर्ग में उन्हें जगह नहीं मिलने पर एक नए स्वर्ग की रचना कर डाली थी। राजा राम को परम योद्धा बनाने को श्रेय इन्ही को है। एक क्षत्रिय राजा से ऋषि बने विश्वामित्र भृगु ऋषि के वंशज थे। उन्होंने अपने तपस्या बल पर प्राप्त किये गये सारे दिव्यास्त्र भगवान राम को समर्पित कर दिया था। जो आगे चलकर राम और रावण युद्ध में राम को विजय दिलाने में एक अहम भूमिका निभाई। विश्वामित्र को अपने जमाने का सबसे बड़ा आयुध आविष्कारक माना जाता है। उन्होंने ब्रह्म के समकक्ष एक और सृष्टि की रचना कर डाली थी।
बता दें कि हरिद्वार में आज जहां शांतिकुंज हैं उसी स्थान पर विश्वामित्र ने घोर तपस्या करके देवराज से रूष्ट होकर एक अलग ही स्वर्ग लोक की रचना कर दी थी। उन्होंने इस देश को ऋचा बनाने की विद्या दी और गायत्री मंत्र की रचना की, जो भारत के दिल में और जहन पर हजारों सालों से आज तक अनवरत निवास कर रहा है।
३.परशुराम-
भगवान गणेश जी का एकदंत होने के पिछे भगवान परशुराम जी की एक कथा है। वे एक बार अपने प्रभु भोले नाथ के दर्शन की इच्छा लिऐ कैलाश पहुंच गये थे। लेकिन उनके एवं प्रभु के मिलन के पुर्व ही गणेश जी ने उन्हें रोक दिया था। जिसके फलस्वरूप क्रोध के आवेश में होकर उन्होंने अपने फरसे से गणेश जी का एक दंत को काट दिया था। जिसके बाद गणेश जी एकदंत कहलाए। उन्होंने जनक, दशरथ आदि राजाओं का उन्होंने समुचित सम्मान किया। सीता स्वयंवर में भगवान राम से उनका संवाद हुआ था। कृष्ण युग में हमेशा उनके समर्थन में रहे। वे भीष्म, द्रोण व कर्ण के गुरू थे। वहीं दंडस्वरूप, असत्य बोलकर शिक्षा प्राप्त किये कर्ण को सारी विद्या विस्मृत हो जाने का श्राप दिया था।
४.शौनक-
उन्होंने अपने समय में एक साथ दस हजार शिष्यों के गुरूकुल को चलाकर कुलपति का विलक्षण सम्मान हासिल किया। वैदिक आचार्य और ऋषि जो शुनक ऋषि के पुत्र थे। शौनक वे सात ऋषियों में सामिल है जिन्हें हम आकाश में विद्वमान सप्त ऋषियों के नाम से मसहूर तारों में देखा करते है। इसके अलावा मान्यता है कि अगस्त्य, कश्यप, अष्टावक्र, याज्ञवल्क्य, कात्यायन, ऐतरेय, कपिल, जेमिनी, गौतम आदि सभी ऋषि उक्त सात ऋषियों के कुल के होने के कारण इन्हें भी वही दर्जा प्राप्त है।
५.द्रोणाचार्य-
अपने युग के श्रेष्ठतम शिक्षक द्रोणाचार्य भारद्वाज मुनि के पुत्र थे। उन्होंने कौरवों और पांडवों को एक साथ शिक्षा दी। किन्तु उनके हजारों शिष्यों में सिर्फ अर्जुन ही उनका श्रेष्ठ शिष्य रहा। जिसको उन्होंने विश्व का श्रेष्ठ धनुर्धर होने का आर्शीवाद दिया था। जिसके फलस्वरूप अर्जुन से भी श्रेष्ठ धनुर्धर एकलव्य के सामने आने पर उन्होंने अर्जुन को दिय गये अपने वचन की रक्षा करने हेतू एकलव्य से उसका दाहिने हाथ का अगूठा मांग लिया था। संसार के श्रेष्ठ धनुर्धर द्रोण का जन्म उत्तरांचल की राजधानी देहरादून में बताया जाता है। जिसे हम देहराद्रोण(मिट्टी का सकोरा) भी कहते थे। उनका विवाह कृपाचार्य की बहन कृपि से हुआ जिनसे उन्हें अश्वत्थामा नामक पुत्र मिला। उन्होंने महाभारत युद्ध के दौरान कौरव की तरफ से युद्ध किया था। उनके युद्ध कौशल के वजह से कौरवों को युद्ध में पांडवों द्वारा हराना कठिन सा हो गया था। तब छल से धृष्ट्युम्न ने उनका सिर काट दिया। उन्होंने अपने योगता के बल पर इतिहास में श्रेष्ठ गुरूओं में अपना नाम दर्ज करा लिया था।
६.महर्षि सांदीपनि-
मध्यप्रदेश के उज्जैन में इनका आज भी आश्रम है। यह मान्यता है कि भगवान कृष्ण, बलराम एवं सुदामा को यहीं पर उन्होंने शिक्षा-दिक्षा दी थी। अपने १८ वर्ष की आयु में ही भगवान कृष्ण ने उज्जयिनी के सांदीपनि ऋषि के आश्रम में रहकर अपनी शिक्षा पुरी कर ली थी। अपने शिक्षा के दौरान उन्होंने महर्षि से ६४ कलाओं की शिक्षा का दान प्राप्त कर लिया था। भगवान श्रीकृष्ण जी को शिक्षा-दिक्षा देकर महर्षि सांदीपनि ने विश्व को यह सन्देश दिया की मनुष्य योनी में अवतरण हुये भगवान को भी एक गुरू की आवश्यकता होती है।
७.चाणक्य-
चाणक्य के नाम से विश्व-विख्यात आचार्य विष्णु गुप्त कलिकाल के सबसे राजनीतिक गुरू के रूप में प्रसिद्ध है। उन्होंने छोटे-छोटे जनपदों और राज्यों में बंटे भारत को एकसूत्र में बांधने का कार्य किया था। वे राजनीतिक षड्यंत्र के दुनिया के पहले रचयिता थे। जिन्होंने एक साधारण सा युवक को सिकंदर और धनानंद जैसे महान सम्राटों के सामने खड़ाकर कूटनीतिक युद्ध कराएं। वहीं चंद्रगुप्त मौर्य को अखंड भारत का सम्राट बनाया। वे मूलत: अर्थशास्त्र के शिक्षक थे लेकिन उनकी असाधारण राजनीतिक समझ के कारण वे बहुत बड़े रणनीतिकार माने गए।
८.आद्य शंकराचार्य-
स्वामी शंकराचार्य ने भारत की बिखरी हुई संत परंपरा को एकजुट कर दसनामी संप्रदाय का गठन किया और भारत के चारों कोने में चार मठों की स्थापना की। उन्होंने ही हिंदुओं के चार धामों का पुन: निर्माण कराया और सभी तीर्थोंं को पुनर्जीवित किया। शंकराचार्य हिंदुओं के महान गुरू हैं। उनके हजारों शिष्य थे और उन्होेंने देश-विदेश में भ्रमण करके हिंदू धर्म और संस्कृति का प्रचार-प्रसार किया।
९.स्वामी समर्थ रामदास-
आस्वामी समर्थ रामदास छत्रपति शिवाजी के गुरू थे। उन्होंने ही देशभर में अखाड़ोंं का निर्माण किया था। महाराष्ट्र में उन्होंने रामभक्ति के साथ हनुमान भक्ति का भी प्रचार किया। हनुमान मंदिरों के साथ उन्होंने अखाड़े बनाकर महाराष्ट्र के सैनिकीकरण की नींव रखी, जो राज्य स्थापना में बदली। संत तुकाराम ने स्वयं की मृत्युपर्व शिवाजी को कहा कि अब उनका भरोसा नहीं अत: आप समर्थ में मन लगाएें। तुकाराम की मृत्यु बाद शिवाजी ने समर्थ का शिष्यत्व ग्रहण किया।
१०.रामकृष्ण परमहंस-
स्वामी विवेकानंद के गुरू आचार्य रामकृष्ण परमहंस भक्तों की श्रेणी में श्रेष्ठ माने गए हैं। मां काली के भक्त श्री परमहंस प्रेममार्गी भक्ति के समर्थक थे। ऐसा माना जाता है कि समाधि की अवस्था में वे मां काली से साक्षात वार्तालाप किया करते थे। उन्हीं की शिक्षा और ज्ञान से स्वामी विवेकानंद ने दुनिया में हिंदू धर्म की पताका फहराई।