भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा
भारत में मनाये जाने वाला देश-विदेश में प्रसिद्ध त्यौहार, देश के ओडिशा के पूरी शहर में १०-११ सदियों से हर साल के अषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष द्वितीय के दिन भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा बड़े ही धूम-धाम से मनाया जाता है। ब्रह्म पुराण, प पुराण, स्कन्दा पुराण तथा कपिला समिथा में इस पर्व के संबंध में पूरी जानकारी का उल्लेख है। वैसे तो जगन्नाथ पूरी के मंदिर में सिर्फ हिन्दू का ही प्रवेश मान्य है। परन्तू यही वो दिन है जिस दिन हर एक जाती और दुसरे देशों से आये हुए लोगों को भी प्रभु को देखने का मौका मिलता है। इस दौरान हर एक भक्त के मन में भगवान जगन्नाथ के रथ को खिंचे जाने वाले रस्से को एक बार छुने की मनोकामना रहती है। वहां के लोगों का मानना है कि रस्से को छुना ही लोक-परलोक से मुक्ति का राह है।
सिर्फ निमार्ण होते है भगवान जगन्नाथ के रथ-
भगवान के रथ का निमार्ण मंंदिर की पूर्व दिशा के मुख्य द्वार(सिंह द्वार) के समिप किया जाता है। इस स्थान का नाम बडदांड है। यहां जगन्नाथ, बलराम और सुभद्रा के तीनों रथ का निमार्ण प्रति वर्ष नए बनाये जाते हैं। इनकी सजावट में लाल रंग का ध्वजा और चमकते हुए पीले, नीले, काले रंग का इस्तेमाल होता है। जिसके बनने के बाद भक्त गण प्रभु की ओर मोहित होने से अपने आप को रोक नही पाते है।
१.नंदिघोषा रथ-
भगवान जगन्नाथ के रथ का नाम नंदिघोषा है। इसे गरूडध्वजा और कपिलध्वजा के नाम से भी जाना जाता है। इस रथ में भगवान का साथ मदनमोहन देते है। भगवान के रथ में कुल लकड़ी के ८३२ टुकड़े, इस रथ की ऊंचाई ४४‘ २’’ और लम्बाई- ३४‘ ६’’ और चौड़ाई- ३४‘ ६’’ है। इनके रथ के कपड़े का रंग लाल और पीले होते है। इनके रथ का रखवाला गरूड़ है। सारथी- दारूका, झंडा- त्रैलोक्यमोहिनी, घोड़े- शंखा, बलाहंखा, सुवेता और हरिदश्व, रस्सी- शंखाचुडा नागुनी और उनके रथ की अध्यक्षता वराह, गोबर्धन, कृष्णा(गोपी कृष्णा), नुर्सिंघा, राम, नारायण, त्रिविक्रमा, हनुमान और रूद्र नौ देवताओं की होती है।
२- तालध्वजा रथ-
भगवान बलभद्र के रथ का नाम तालध्वजा, नंगलध्वजा है। इसमें उनका साथ रामकृष्ण देते है। इनके १४ चक्के के रथ में कुल लकड़ी के ७६३ टुकड़े, इस रथ की ऊंचाई ४३‘ ३’’ और लम्बाई- ३३‘ और चौड़ाई- ३३‘। इनके रथ के कपड़े का रंग लाल, नीले-हरे होते है। इनके रथ का रखवाला बासुदेव है। सारथी- मताली, झंडा- उन्नानी, घोड़े- त्रिब्र, घोरा, दीर्गशर्मा और स्वोर्नानव, रस्सी- बासुकी नागा और उनके रथ की अध्यक्षता गणेश, कार्तिके, सर्वमंगला, प्रलाम्बरी, हतायुधा, मृत्युन्न्जय, नतमवर, मुक्तेश्वर और शेश्देवा नौ देवताओं की होती है।
३.दर्पदला रथ-
सुभद्रा के रथ का नाम है दर्पदलना, देवदलन और पध्वज है। रथ में देवी सुभद्रा का साथ सुदर्शन देता है। इनके १२ चक्के के रथ में कुल लकड़ी के ५९३ टुकड़े, इस रथ की ऊंचाई ४२‘ ३’’ और लम्बाई- ३१‘ ६’’ और चौड़ाई- ३१‘ ६’’। इनके रथ के कपड़े का रंग लाल और काले होते है। इनके रथ का रखवाला जयदुर्गा है। सारथी- अर्जुन, झंडा- नादम्बिका, घोड़े- रोचिका, मोचिका, जीता और अपराजिता, रस्सी- स्वर्नाचुडा नागुनी और उनके रथ की अध्यक्षता चंडी, चामुंडा, उग्रतारा, वनदुर्गा, शुलिदुर्गा, वाराही, श्यामकाली, मंगला और विमला नौ देवीओं की होती है।
भगवान से जुड़ी कुछ रोचक बाते-
१.रथ यात्रा बहुत ही पौराणिक त्यौहार है और इसे भारत के साथ-साथ विश्व के दुसरे देश डबलिन, न्यूयॉर्क, टोरंटो और लाओस में भी मनाये जाने के लिये मसहुर है।
२.पोडा पीठ इस त्यौहार का एक मुख्य मिष्ठान है।
३.तीनो भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्र को कुल २०८ किलो ग्राम सोने से सजाया जाता है।
४.ब्रिटिश शासन के काल में जगन्नाथ रथ यात्रा के त्यौहार को जुग्गेरनट कहा जाता था इसके बड़े और वजनदार रथों के कारण।
५.आज तक जितनी बार भी रथ यात्रा मनाया गया है पूरी में हर बार बारिश हुई है।
६.विश्व भर में जगन्नाथ मंदिर ही ऐसा मंदिर है जहां से भगवान् के स्तूप या मूर्ति को मंदिर से बहार निकाला जाता है।
७.हर साल पूरी रथ यात्रा के तीनों रथों को पूरी तरीके से नया बनाया जाता है।
८.रथ यात्रा त्यौहार के दिन भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलभद्र और छोटी बहन सुभद्रा के रथ को श्रद्धालु खींच कर मुख्य मंदिर जगन्नाथ मंदिर से उनकी मौसी के घर गुंडीचा मंदिर ले कर जाते हैं। वहां तीनों रथ ९ दिन तक रहते हैं। उसके बाद इन तीनो रथ की रथ यात्रा वापस अपने मुख्य जगन्नाथ मंदिर जाती है जिसे बहुडा यात्रा कहा जाता है।