भगवान शिव के ही स्वरूप है बाबा बटुक भैरव
कहाँ है दुनिया का अद्भुत दरबार जहां शिव के बटुक भैरव स्वरूप का होता है त्रिगुणात्मक शृंगार?
कौन सा शहर है जहां बटुक भैरव को पूजा जाता है?
कौन सी ऐसी मंन्दिर है जहां बटुक भैरव को टॉफी-बिस्कुट, चावल-दाल और मदिरा के साथ मीट-मछली का भोग लगाया जाता है?
भारत में एक ऐसा स्थान है जहां भगवान शिव के आठ भैरव के स्वरूपों की पूजा की जाती है। वो स्थान जिसे हम शिव की नगरी काशी के नाम से जानते है। यहां भोले बाबा के आठ स्वरूपों की पूजन-अर्चन की बड़े ही विधी-विधान से पूजा की जाती है। जिसमें छठे स्थान पर बाबा बटुक भैरव है जिनके बारे में आज हम आपकों रूबरू करा रहे हैं।
वैसे अगर हम भैरव के नाम को समझे तो इस नाम में छिपा पूरी सृष्टि नजर आती है। भ– से विश्व का भरण, र- से रमश, व– से वमन अर्थात सृष्टि को उत्पत्ति, पालन और संहार करने वाले शिव ही भैरव हैं। तंत्रालोक की विवेक-टीका में भगवान शंकर के भैरव रूप को ही सृष्टि का संचालक बताया गया है।
तंत्राचार्यों का मानना है कि वेदों में जिस परम पुरूष का चित्रण रूद्र में हुआ, वह तंत्र शास्त्र के ग्रंथों में उस स्वरूप का वर्णन ‘भैरव’ के नाम से किया गया, जिसके भय से सूर्य एवं अग्नि तपते हैं। इंद्र-वायु और मृत्यु देवता अपने-अपने कामों में तत्पर हैं, वे परम शक्तिमान ‘भैरव’ ही हैं। भगवान शंकर के अवतारों में भैरव का अपना एक विशिष्ट महत्व है।
कब हुई थी बाबा बटुक भैरव की उत्पत्ति-
महादेव भगवान शिव के रौद्र रूप को भैरव स्वरूप में पूजा जाता है। मार्ग शीर्ष के कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन स्कन्द महापुराण के अनुसार न्याय के देवता भैरव की उत्पत्ति हुई थी। इस पर्व को भैरव अष्टमी के रूप में मनाने की परंपरा चली आ रही है। शिव की नगरी यूंं तो हर रोज महाभैरव के पूजन और दर्शन में मगन रहती है। वहीं भैरव अष्टमी पर भैरव के बाल स्वरूप बटुक भैरव के दर्शन पूजन की विशेष मान्यता होती है। हिन्दू धर्म में भैरव के सभी रूप पूजनीय हैं। क्योंकि भैरव, भगवान शिव के ही अवतार हैं।
बटुट भैरव अवतार की कथा-
बटुट भैरव ही भूत भावन भगवान शंकर के ही रूप हैं। इसके पीछे पौराणिक और धार्मिक गाथा है, कि एक बार शृष्टि के रचेता भगवान ब्रह्मा को खुद पर अभिमान हो गया और वह खुद को सर्वोपरी कहने लगे। वहीं दूसरी तरफ भगवान शिव की भी निंदा करने लगे, इस पर सभी देवताओं मे उनकी निंदा हुई। ब्रह्मा के इस आचरण से जब भगवान भोले क्रोधित हुए तो उनके क्रोध से तीनों लोक, पूरा ब्रह्माण्ड नीले प्रकाश से आक्षादित हो गया। जिसमें से विकराल और भयंकर रूप में भैरव, भगवान शिव की जटाओं से उत्पन्न हुए। शिव के इस रौद्र रूप को देख ब्रह्मा जी भयभीत हो गए। भैरव ने शिव की निंदा के दुस्साहस के लिए अपनी कनिष्ठा से ब्रह्मा जी के पांचवे मस्तक को काट दिया। भैरव की इस उत्पत्ति का दिन ही भैरव अष्टमी के पर्व पर शहर के कमच्क्षा स्थित भैरव के बाल स्वरूप श्री बटुक मंदिर में विशेष आयोजन और पूजन होता है। भैरव बाबा जिस संध्या बेला में यहां प्रकट हुए थे, वह दिन को पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र था। व्रती महिलाएं और पुरूष अष्टमी तिथि को दर्शन-पूजन के अलावा पूरी रात जागरण करते है। व्रत एवं पूजन से सौभाग्य, कांति, ऐश्वर्य, अपत्य, यश, सुख-समृद्धि की प्राप्ति एवं पापों के शमन से मुक्ति की कामना पूरी होती है। बटुक भैरव मंदिर में भैरव स्वरूप ही मानकर १००८ धर्म-शास्त्र की शिक्षा प्राप्त करने वाले बटुको और स्कूली बच्चों को प्रसाद में भोजन कराया जाता है और टॉफी-बिस्किट भी वितरित किेया जाता है। यूं तो भैरव को मदिरा का भोग लगता है, लेकिन काशी के बटुक भैरव को किसी बच्चे के ही जन्मदिन की तरह केक, टॉफी, बिस्किट और खिलौने उपहार स्वरूप भेंट किया जाता है।
सुनकर थोड़ा अजीब लगेगा कि महादेव का एक ऐसा दरबार जहां महादेव एक साथ सात्विक, राजसी और तामसी तीनों रूपों में विराजते है। शरद ऋतु के विशेष दिन में बाबा का त्रिगुणात्मक शृंगार किया जाता है। सुबह बाल बटुक के रूप में बाबा को टॉफी, बिस्कुट, फल का भोग दिया जाता है। दोपहर को राजसी रूप में चावल दाल रोटी सब्जी का और शाम को बाबा की महाआरती के बाद उनके इस रूप को मटन करी, चिकन करी, मछली करी, आमलेट के साथ मदिरा का भोग लगाया जाता है। इतना ही नहीं बाबा को प्रसन्न करने के लिये शराब से खप्पड़ भी भरा जाता है। मदिरा स्नान कराया जाता है। हवन कुण्ड की अग्नि को स्वत: प्रज्वलित किया जाता है। यह दुनिया का अद्भुत दरबार है जहां बाबा तीनों रूप में विराजते हैं।
भैरव कि अराधना में तामसी चीजों को अर्पित किया जाता है, अद्भुत है। बाबा का दर्शन करने मात्र से जीवन के हर दुखों का अंत होता है। यही वजह है कि भक्त अपनी श्रद्धा के अनुसार बाबा को चीजों का भोग लगाते हैं। कोई बाबा को मंदिरा चढ़ाता है तो कोई टॉफी और बिस्कुट। टॉफी बिस्कुट चढ़ाने के पीछे की वजह है कि बाबा यहां बटुक यानि बाल रूप में हैं और बच्चे को छोटी बातों पर नाराजगी से बचाने के लिए हर कोई परेशान रहता है। इसलिए यहां भी भक्त बाबा को अपने-अपने तरीकों से मनाने के लिए टॉफी, बिस्कुट, गुब्बारों से लेकर मदिरा तक का भोग लगाते हैं।
यहां पर आने वाले श्रद्धालुओं के लिए मंदिर प्रशासन की ओर से मंदिर परिसर के एक तरफ ऐसे दिवाल का निर्माण करवाया गया है कि जिसमें बने एक होल के माध्यम से भी भक्त अपने ईष्ट बटुक भैरव की प्रतिमा का प्रत्यक्ष दर्शन कर पून्य अर्जित कर सकता हैं।
प्रतिवर्ष यहां पर वार्षिक श्रृंगार का कार्यक्रम आयोजित किया जाता है जो इतना भव्य होता है कि काशी के लोग इस दिन का इंतजार करते हैं। जिसमें कि बाबा को सुबह पांच बजे पंचामृत स्नान कराया जाता है। इसके बाद नवीन वस्त्र धारण करा कर मंगला आरती की जाती है। इस अवसर पर जानी-मानी कलाकार लोग अपनी-अपनी कला का प्रदर्शन कर वहां मौजूद सभी का मन मोह लेते हैं।