Bhagwan Shri Ganesh se judi Rochak aur Gupt Baate, Aayeeye Jante hai!

0
1592
views
Like
Like Love Haha Wow Sad Angry
311

भगवान श्रीगणेश से जुड़ी रोचक एवं गुप्त बातें, आइये जानते हैं!

Ganesh-1 अनेक धर्म ग्रंथों में श्रीगणेश जी के संबंध में विस्तार से वर्णन दिया गया हैं। भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र श्रीगणेश को हम मंगलमूर्ति, लंबोदर, व्रकतुंड एवं अच्छे स्वभाव वाले मनुष्य के लिए विघ्नहर्ता और बुरे स्वभाव वाले मनुष्य के लिए विघ्नकर्ता आदि कई विचित्र नामों से अवगत हैं। ऐसे ही गणेश जी के बारे में कुछ बातों से आपकों रूबरू करा रहें हैं। जो कम लोगों को ही इनके गुप्त एवं रोचक बातों का ज्ञान होगा। आइये जानते हैं।
१.शिवपुराण के अनुसार, माता पार्वती को उनकी सखियां जया और विजया ने यह सोचकर विचार दिया कि सारे गण सिर्फ भगवान शिव की ही आज्ञा का अनुसरण करते हैं। इस स्थान पर एक ऐसा गण होना चाहिए जो सिर्फ पार्वती की ही आज्ञा का पालन करें, जिसके फलस्वरूप माता पार्वती ने अपने शरीर के मैल से श्रीगणेश की रचना किया।
२.ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, एक बार किसी कारण वश भगवान शिव ने सूर्य देवता को दंडीत करने हेतू अपने त्रिशूल से प्रहार कर दिया था। त्रिशूल के प्रहार से सूर्य की चेतना नष्ट हो गई। जिससे चारों ओर घोर अंधेरा छा गया। अपने पुत्र की यह दशा देख कर सूर्य के पिता कश्यप ने शिव को बिना सोचे-समझे, श्राप दे दिया। कि जैसे आपके त्रिशुल के प्रहार से अपने पुत्र के चेतना हिन होने पर मैंं विलाप कर रहा हूं। उसी प्रकार से आप खुद अपने इसी त्रिशुल से अपने ही पुत्र पर प्रहार करोगे और इस कारण वश आपको भी अपने पुत्र की दशा पर विलाप होगा। इसी कारण भगवान शिव ने इस श्राप को फलित करने हेतू अपने पुत्र गणेश का सिर अपने त्रिशूल से काट दिया था। और भगवान श्रीहरि ने अपने गरूड़ पर सवार होकर उत्तर दिशा की ओर गए और पुष्पभद्रा नदी के तट पर हथिनी के साथ सो रहे एक गजबालक का सिर काटकर भगवान शिव के पुत्र के सिर पर स्थापित कर दिया। एवं शिव ने उन्हें पुनर्जीवित कर दिया। तभी से उनका नाम श्रीगणेश पड़ गया।

Ved-Vyas-Ganesh
३.महाभारत का लेखन श्रीगणेश ने किया है ये बात तो सभी भक्तगण भलीभांति जानते हैं लेकिन महाभारत लिखने से पहले उन्होंने महर्षि वेदव्यास के सामने एक शर्त रखी थी इसके बारे में कम ही लोग जानते हैंं। शर्त इस प्रकार थी कि श्रीगणेश ने महर्षि वेदव्यास से कहा था कि यदि लिखते समय मेरी लेखनी क्षणभर के लिए भी न रूके तो मैं इस ग्रंथ का लेखक बन सकता हूं। तब महर्षि वेदव्यास जी ये शर्त मान ली और गणेश जी से कहा कि मैं जो भी बोलूं आप उसे बिना समझे मत लिखना। तब वेदव्यास जी बीच-बीच में कुछ ऐसे श्लोक बोलते कि उन्हें समझने में गणेशजी को थोड़ा समय लगता। इस बीच महर्षि वेदव्यास अन्य कार्य पूर्ण कर लिया कर लेते थें।
४.ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार एक बार परशुराम के मन में भगवान शिव के दर्शन करने की इच्छा हुई। जिस पर वो अपने परशु के साथ कैलाश की ओर निकल पड़े। बिच में श्रीगणेश ने उनका मार्ग यह कह कर रोक दिया कि अभी पिता शिव ध्यान में लिन है। इस कारण आप उनसे नहीं मिल सकते हैं। यह सून कर परशुराम को बहुत क्रोध आ गया और उन्होंने अपने परशु से गणेश पर वार कर दिया। गणेश जी को ज्ञात था कि यह परशु स्वयं उनके पिता शिव ने ही परशुराम को दिया था। इसका वार खाली न जाये, यह सोचकर उस वार को गणेश जी ने अपने एक दंत पर ले लिया। जिससे उनका वो दंत टूट गया। तभी से गणेश जी को एक और नाम एकदंत नाम से पुकारा जाने लगा।
५.ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, माता पार्वती ने पुण्यक नाम का व्रत रखा था। जिसके फलस्वरूप उन्हें श्रीगणेश की प्राप्ती हुई।

Ganesh Pariwar
६.शिवमहापुराण के अनुसार, श्रीगणेश जी का विवाह प्रजापति विश्वरूप की रिद्धी-सिद्धी दो पुत्रियों से सम्पन्न हुआ। जिनसे श्रीगणेश जी के पत्नी सिद्धी से क्षेम और रिद्धी से लाभ नाम के दो पुत्र हुए।
७.शिवमहापुराण के अनुसार, जब भगवान शिव को त्रिपुर नामक असूर का वध करना था। तो तब एक आकाशवाणी हुई जिसमें उन्हें अपने ही पुत्र श्रीगणेश जी का अपनी पत्नी संग पूजा करने की बात कही गई। जिसके बाद शिव ने अपनी पत्नी भद्रकाली के साथ गजानन का पूजन किया और युद्ध में त्रिपुर का नाश कर के विजय प्राप्त की।
८.गणेश पुराण के अनुसार, छन्दशास्त्र में ८ गण होते हैं-मगण,नगण,भगण,यगण,जगण,रगण,सगण और तगण। इनके अधिष्ठाता देवता होने के कारण भी इन्हें गणेश की संज्ञा दी गई है। अक्षरों को गण भी कहा जाता है। इनके ईश होने के कारण इन्हें गणेश कहा जाता है, इसलिए वे विद्या-बुद्धि के दाता भी कहे गए हैं।९.शिवमहापुराण के अनुसार, श्रीगणेश जी के शरीर का रंग लाल और हरा है। इस लिए उन्हें दूर्वा चढ़ाई जाती है। दूर्वा चढ़ाते समय एक बात का विशेष ध्यान देनी चाहिए कि दूर्वा की लम्बाई बारह अंगुल लंबी होनी चाहिए और उसमें तीन गाठ हो और वो जड़ रहित हो। ऐसी दूर्वा १०१ या १२१ चढ़ाने से श्रीगणेश जल्द प्रसन्न होते हैं।

Like
Like Love Haha Wow Sad Angry
311

Warning: A non-numeric value encountered in /home/gyaansagar/public_html/wp-content/themes/ionMag/includes/wp_booster/td_block.php on line 1008

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here