पिता दक्ष द्वारा आयोजित यज्ञ में पूत्री सती ने दिया था अपना बलिदान
कहाँ पर यह स्थान?, क्या सावन महिने में माह भर भगवान शिव यहाँ करते है निवास?
आइये जानते है कुछ अनदेखी-कुछ अनसूनी बातें
वायु पुराण में राजा दक्ष के यज्ञ का पूर्ण विवरण दिया गया है। इसके अनुसार दक्षेस्वर महादेव मंदिर, कनखल हरिद्वार उत्तराखण्ड में स्थित है कनखल दक्षेस्वर महादेव मंदिर भारत के प्राचीन मंदिरों में से सबसे अधिक प्रसिद्ध है। यह मंदिर शिव भक्तों के लिए भक्ति और आस्था की एक पवित्र जगह है। भगवान शिव का यह मंदिर सती के पिता राजा दक्ष प्रजापति के नाम पर है।
कौन थे राजा दक्ष प्रजापति- पौराणिक कथाओं के अनुसार, राजा दक्ष प्रजापति भगवान ब्र्रह्मा जी के पुत्र थे और सती के पिता थे। राजा दक्ष ने एक भव्य यज्ञ का आयोजन अपने जैमाता भगवान शिव के अपमान स्वरूप किया जिसमें सभी देवी-देवताओं, ऋषियों और संतो को आमंत्रित किया पर अपने जैमाता भगवान शिव को इस यज्ञ में आमंत्रित नहीं किया था। यज्ञ के संबंध में सुन सती ने अपने पति शिव के समझाने के असफल प्रयास के बाद अपने पिता के आयोजित यज्ञ समारोह में पहुंच गयी थी। अपने पिता द्वारा अपने पति के इस अपमान को देख सती ने अपने आप को अपमानित महसूस किया और स्वयं को यज्ञ की अग्नि में कूद कर अपने प्राण त्याग दिये।
इससे भगवान शिव क्रोधित हो गए और अपने अर्ध-देवता वीरभद्र, भद्रकाली और शिव गणों को कनखल स्थान पर युद्ध के लिए भेज दिया। वीरभद्र ने राजा दक्ष का सिर काट दिया। सभी देवताओं के अनुरोध पर भगवान शिव ने राजा दक्ष के कटे सिर के स्थान पर बकरे का सिर लगा कर जीवन दान दिया। राजा दक्ष को अपनी गलतियों का एहसास हुआ और भगवान शिव से क्षमा मांगी। जिसके फलस्वरूप भगवान शिव ने घोषणा किया कि हर साल सावन के महीनें में वे स्वयं महिने भर कनखल स्थान पर निवास करेगें एवं सभी भक्तगणों की हर मनोकामंना पूर्ण करेंगे।
जिसके बाद भगवान शिव ने अग्नि से अपनी पत्नी के मृत्यु हूई देह को लेकर पूरे ब्रह्माण्ड में भटकने लगे जिसे देख सभी देवी-देवताओं और ब्रह्मा जी के अनुरोध पर भगवान नारायण ने अपने सुर्दशन चर्क से सती के मृत्यु हुई देह को ५१ भागों में काट दिया जिसके बाद पृथ्वी के जिस-जिस भूमि पर उनके अंग गिरे वे आज शक्ति पीठ कहलायें।
बता दें कि यज्ञ कुण्ड के स्थान पर दक्षेस्वर महादेव मंदिर बनाया गया था तथा ऐसा माना जाता है कि आज भी यज्ञ कुण्ड मंदिर में अपने स्थान पर है। दक्षेस्वर महादेव मंदिर के पास गंगा के किनारे पर ‘दक्षा घाट’ है जहां शिव भक्त गंगा में स्नान कर भगवान शिव के दर्शन कर आंनद को प्राप्त करते है। दक्ष महादेव मंदिर एक पुराना मंदिर है जो भगवान् शिव को समर्पित है। इस मंदिर का निर्माण सन् १८१० में पहले रानी धनकौर ने करवाया था और सन् १९६२ में इसका पुनर्निर्माण किया गया। इस मंदिर में एक छोटा गड्ढा है और ऐसा माना जाता है कि यह वही स्थान है जहाँ देवी सती ने अपने जीवन का बलिदान दिया था। मंदिर के मध्य में भगवान् शिव की मूर्ती लैंगिक रूप में रखी गई है। प्रत्येक वर्ष हिंदू महीने सावन में भक्त बड़ी संख्या में यहाँ प्रार्थना करने आते हैं।
हरिद्वार के दक्ष महादेव मंदिर कैसे पहुंचे-
हरिद्वार का शाब्दिक अर्थ है, ‘भगवान् तक पहुँचने का रास्ता’। उत्तराखण्ड राज्य की पहाड़ियों के बीच स्थित, यह एक प्रमुख तीर्थ स्थल है। यह पवित्र शहर भारत के सात पवित्र शहरों अर्थात् ‘सप्त पुरी’ में से एक है। यहाँ पहुंचने के लिए यात्री वायुमार्ग, रेलमार्ग या रास्ते द्वारा हरिद्वार पहुंच सकते हैं। वहां से लगभग ४ किमी दूर पर यह दक्ष महादेव मंदिर स्थित है। हरिद्वार का सबसे निकटतम घरेलू हवाई अड्डा जॉली ग्रांट हवाई अड्डा है जो लगभग २० किमी दूर स्थित है। यह दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे से भी नियमित उड़ानों द्वारा जुड़ा हुआ है। सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन हरिद्वार रेलवे स्टेशन है, जो भारत के सभी मुख्य शहरों से जुड़ा हुआ है। देश के विभिन्न भागों से बसों द्वारा भी यहाँ पहुंचा जा सकता है। इसके अलावा नई दिल्ली से हरिद्वार के लिए नियमित अंतराल पर डीलक्स बसें अपलब्ध है।